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Lithium: भारत के लिए किसी जैकपॉट से कम नहीं है लिथियम का भंडार, ऐसे समझें पूरा गणित

भारत में पहली बार ‘लिथियम आयन’ का भंडार मिला है। अब तक लिथियम भारत को चीन और दूसरे देशों से खरीदना पड़ता था लेकिन अब भारत को इतना लिथियम मिल गया है अब शायद किसी की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। लिथियम आयन एक चांदी जैसी सफेदी वाला कैमिकल मेटल है, जो बहुत ही हल्का होता है। पिछले कुछ वर्षों में लिथियम का सबसे ज्यादा इस्तेमाल बैटरियां बनाने में हो रहा है। लिथियम का इस्तेमाल मोबाइल, लैपटॉप, टैबलेट, ब्लूटूथ डिवाइस, बैटरी से चलने वाले खिलौने, कैमरा, टू व्हीलर, कार और सीसीटीवी में होता है।

इनके अलावा भी बहुत सी ऐसी चीजें हैं जिनमें लिथियम आयन का इस्तेमाल होता है। सबसे बड़ी बात ये है कि इनके दाम क्या होंगे ये तय होने में भी सबसे बड़ी भूमिका लीथियम की होती है। अब स्मार्टफोन और लैपटॉप से लेकर इलेक्ट्रिक गाड़ियों तक की बैटरियों में लिथियम का इस्तेमाल हो रहा है। यही वजह है कि दुनियाभर की कंपनियां लिथियम के पीछे पड़ी हैं।

किसी जैकपॉट से कम नहीं
लीथियम का यह भंडार भारत के लिए किसी जैकपॉट से कम नहीं है। ये खनीज से ज़्यादा एक बहुमूल्य ख़जाना है। देश में पहली बार 59 लाख टन लिथियम का भंडार मिला है। अगर इसकी कीमत की बात की जाए तो ये करीब 36 लाख 34 हज़ार 400, करोड़ रुपये बैठती है। दुनिया में अभी लीथियम आयन का बाज़ार 57,898 करोड़ रुपये का है, यानी भारत तो पूरी दुनिया के लिए लीथियम किंग बन गया और अकेला ही दुनिया के देशों को लीथियम की सप्लाई कर सकता है। अभी तक भारत 100 प्रतिशत लीथियम का इंपोर्ट बाहर से कर रहा है इसमें दो तरह का लीथियम होता है। पहला लीथियम (जिसे रॉ मैटेरियल कह सकते हैं )और दूसरा लीथियम आयन (जिसका बैटरी और इलेक्ट्रिकल डिवाइस में इस्तेमाल करता है)।

70 प्रतिशत लीथियम चीन से
भारत करीब 70 प्रतिशत लीथियम चीन से और करीब 73 प्रतिशत लीथियम आयन चीन और हॉन्ग-कांन्ग से आता है। लेकिन माइनिंग से फाइनल प्रोडक्ट बनने के बाद चीन पर ये डील ख़त्म हो सकती है। भारत के लिए दूसरी सबसे अच्छी बात ये है कि मोबाइल- इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण में कीमतों को कम किया जा सकता है । लीथियम आयन बैटरी भविष्य का ईंधन है और इसकी इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमतों पर सीधा असर पड़ता है। यानी भारत के लिए मोबाइल और इलेक्ट्रिक व्हीकल में बहुत बड़ा स्कोप है इसलिए चीन की नींद उड़ी हुई है हालांकि भारत को फाइनल प्रोडक्ट बनाने में कई लेवल पार करने होंगे लेकिन चीन की चिंता अभी से शुरू हो गई है ।

लीथियम के सबसे बड़े भंडार
चिली – 92 लाख टन
भारत- 59 लाख टन (रिजर्व मिलने के बाद)
ऑस्ट्रेलिया- 57 लाख टन
चीन- 15 लाख टन
लीथियम सप्लाई करने वाले देश
ऑस्ट्रेलिया- 52%
चिली – 25%
चीन- 13%
इस आंकड़े को देखकर किसी के भी मन में ये सवाल आ सकता है कि जब ऑस्ट्रेलिया के पास इतना लीथियम का भंडार है तो भारत चीन से क्यों खरीदता है तो इसका सीधा जवाब है दूरी। समंदर के रास्ते भारत से चीन की दूरी करीब 3400 किलोमीटर और ऑस्ट्रेलिया से दूरी – 7500 किलोमीटर है। साल 2000 से 2015 के बीच लिथियम की डिमांड 30 गुना बढ़ी है।
2015 के मुकाबले 2025 में इसकी डिमांड 1000 % बढ़ सकती है।
इससे लिथियम की कीमत का बढ़ना भी तय है।
2035 तक दुनिया की सड़कों पर चलने वाली आधी गाड़ियां इलेक्ट्रिक कारें होंगी।
चीन ने 2030 तक 40% इलेक्ट्रिक कारों बनाने का टारगेट तय किया है।
इसके अलावा दुनियाभर के लीथियम बैटरी के कुल उत्पादन का 77% चीन में होता है।
यानी इस वक़्त लीथियम बैटरी पर चीन का कब्ज़ा है लेकिन इस भंडार के मिलने की वजह से चीन की सारी गणित गड़बड़ा सकती है।

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