इन दिनों लालू यादव (Lalu Yadav) और मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) की चर्चा जोरों पर है. सतही तौर देखें तो मामला गैर-राजनीतिक लगता है, लेकिन इसमें गहरे राज़ छिपे हैं. एक तरफ लालू यादव ने पटना की सड़कों पर सिंघम स्टाइल में जीप चलाई तो दूसरी तरफ मुलायम सिंह यादव ने लखनऊ में सपा कार्यालय पहुंचकर लोगों को नसीहतें दीं. उम्र का तकाज़ा है कि अब दोनों नेता आगे चुनाव नहीं लड़ेंगे, फिर कौन सी राजनीतिक मांग उन्हें अपने आप को इतना फिट दिखाने के लिए मजबूर करती है ? कारण बहुतेरे हैं. आइये एक-एक करके समझते हैं.
नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड के सीनियर लीडर केसी त्यागी ने इसे सहजता से समझाया. इन्होंने लालू यादव और मुलायम सिंह को राजनीति की शुरुआत से देखा और समझा है. केसी त्यागी ने न्यूज़ 18 से बातचीत में इन दोनों नेताओं की इस गैर-मामूली सक्रियता के पीछे कई कारण गिनाये. उन्होंने कहा कि इन दोनों नेताओं के परिवार के जो लोग हैं वो उनकी सक्रियता को दिखाकर उनकी उपयोगिता को बताते रहते हैं. बरगद के पेड़ तो वही हैं. अभी भी इन दोनों नेताओं की औलादें केयर ऑफ हटाने (C/O) को तैयार नहीं हैं.
दूसरा, इनको ये भी डर लगा रहता है कि कहीं ये किसी दूसरे को आशीर्वाद न दे दें. परिवार में जब कलह रहती है तो उसमें आधिपत्य जमाने के लिए औलादों में भी संघर्ष रहता है. राजनीतिक विरासत के सहारे जो औलाद स्थापित हो गई है, उसमें भी सेंस ऑफ इनसेक्यूरिटी बनी रहती है. अब मुलायम सिंह और अखिलेश यादव को ही देखिये. ये वही पार्टी है जिसमें बाप-बेटे ने एक दूसरे को निकाल दिया था. शिवपाल से कहीं मुलायम सिंह की करीबी न हो जाये इसलिए अखिलेश यादव उन्हें अपने ज्यादा करीब दिखाने में लगे रहते हैं. यही हाल बिहार में लालू जी का है. एक बेटे के मन में डर रहता है कि कहीं दूसरे बेटे के साथ न चले जायें. इन नेताओं की सक्रियता के पीछे इसी पारिवारिक टकराव का हाथ दिखाई देता है. ये काल्पनिक है और मैन्यूफैक्टर्ड है.
यूपी में पीसीएस संघ के अध्यक्ष रहे और अब राजनीति में सक्रिय बाबा हरदेव सिंह ने इसके पीछे कई दूसरे पहलुओं का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि लालू यादव और मुलायम सिंह यादव की एक अपनी अलग विचारधारा है. वे जीते-जी अपनी उस विचारधारा को जिन्दा रखना चाहते हैं. वे अपने को वृद्ध मानकर अपनी विचारधारा के प्रसारण को क्यों रोक दें. यही मानसिकता इनकी एनर्जी है.
आज भी भाजपा का कोई नेता लालकृष्ण आडवाणी को इग्नोर नहीं करता. वे कहते हैं कि इन्हीं की बदौलत हम पार्टी को इस तरह खड़ा कर सकें. लालकृष्ण आडवाणी, लालू यादव और मुलायम सिंह यादव के बोलने का अलग मतलब होता है. ऐसा सभी पार्टियों में हैं. इसके पीछे एक बड़ी वजह ये भी गिनाई जाती है कि लालू यादव और मुलायम सिंह यादव का जो पॉलिटिकल रेनबो रहा है उसे याद दिलाते रहा जाये.
बिहार में तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम बने. यूपी में अखिलेश यादव सीएम रहे, लेकिन दोनों के पास लालू और मुलायम जैसा आभामण्डल कायम नहीं हो सका है. समाज के अलग अलग लोगों को जोड़ने की जो कुव्वत इन नेताओं में है वो अभी इनकी दूसरी पीढ़ी के पास नहीं आ पाई है. लिहाजा जीवनभर इनके सहारे की जरूरत पड़ती रहेगी.
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