इंडिया गठबंधन में संयोजक पद अब किसी को नहीं, क्या नीतीश के रवैये से कांग्रेस ने बदला फैसला?

इंडिया गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने यह फैसला किया है कि इंडिया गठबंधन में कोई संयोजक नहीं होगा. कांग्रेस एक ग्रिवांस सेल बना रही है, जिसका नेतृत्व कांग्रेस नेता जयराम रमेश करने वाले हैं. यह सेल घटक दलों के शिकायतों का निपटारा करेगी. संयोजक पद पर नीतीश कुमार की नाराजगी के मद्देनजर कांग्रेस ने यह फैसला किया है.

कांग्रेस पार्टी अब संयोजक का पद गठबंधन में किसी नेता को देने के लिए तैयार नहीं है. इंडिया गठबंधन का संयोजक कोई नहीं होगा. यह कांग्रेस ने तय कर लिया है. सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस एक ग्रिवांस सेल बना रही है, जिसका नेतृत्व कांग्रेस नेता जयराम रमेश करने वाले हैं. जाहिर है कि इंडिया गठबंधन के घटक दलों को कोई शिकायत होती है तो उसके निपटारे के जिम्मेदार जयराम रमेश सहित समन्वय समिति के सदस्य करेंगे. ऐसा इंडिया गठबंधन की प्रमुख घटक दल कांग्रेस ने तय कर लिया है.

नीतीश कुमार के रवैये को लेकर कांग्रेस के भीतर अविश्वास की भावना कम नहीं हो पा रही है. हाल के दिनों में चल रही गतिविधियां नीतीश कुमार को लेकर शक की वजहें बढ़ा रही हैं. इसलिए इंडिया गठबंधन के भीतर नीतीश का रवैया कौतुहल का विषय बना हुआ है.

दरअसल राष्ट्रीय परिषद की बैठक में जेडीयू ने कांग्रेस को सवालों के घेरे में लिया था और इंडिया गठबंधन के सूत्रधार नीतीश कुमार को पूरा क्रेडिट नहीं देने को लेकर कई सवाल खड़े किए थे. जेडीयू ने साफ तौर पर कहा था कि जाति जनगणना के मुद्दे को लेकर कांग्रेस जेडीयू क्रेडिट देती नहीं दिखी रही है.

नीतीश क्यों नहीं बनाए जा रहे हैं संयोजक ?

जेडीयू ने तय किया था कि बिहार में किए गए कार्यों को जेडीयू पूरे देश में भ्रमण कर स्वयं प्रचारित करेगी. हाल के दिनों में जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्त केसी त्यागी ने भारत जोड़ो न्याय यात्रा की टाइमिंग को लेकर भी कांग्रेस के खिलाफ गंभीर सवाल खड़े किए हैं.

जाहिर है जब से नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद स्वयं ग्रहण किया है तब से जेडीयू कांग्रेस के खिलाफ खुलकर आक्रामक दिखाई पड़ रही है. अरुणाचल प्रदेश और बिहार में सीटों को लेकर दावेदारी पेश करने का जेडीयू का तरीका आरजेडी और कांग्रेस के लिए गले की फांस बन गई है. जेडीयू 17 सीटों पर चुनाव लड़ने को लेकर दावे कर रही है. वहीं, 16 सीटें जहां उसके जीते हुए सांसद हैं. उन्हें छोड़ने को लेकर जेडीयू तैयार नहीं दिख रही है.

इतना ही नहीं जेडीयू साफ कह चुकी है कि जेडीयू का गठबंधन आरजेडी से है. इसलिए वो आरजेडी को अपनी भावनाओं से अवगत करा चुकी है. जहां तक लेफ्ट और कांग्रेस का सवाल है तो आरजेडी बिहार में बाकी बचे लोकसभा सीटों पर बात करने के लिए स्वतंत्र है. बिहार में सीटे शेयरिंग को लेकर होने वाली मीटिंग कांग्रेस नेता मुकुल वासनिक के घर सोमवार को हुई थी, जिसमें जेडीयू के तरफ से कोई नेता शामिल नहीं हुआ था. सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस इस मीटिंग में आरजेडी के साथ वार्ता कर बिहार में जेडीयू द्वारा जीते हुए 16 सीटों को छोड़कर बातचीत करने पर फोकस कर रही थी.

कांग्रेस समझ चुकी है जेडीयू पर किसी तरह का दबाव इंडिया गठबंधन के लिए काउंटर प्रोडक्टिव हो सकता है. इसलिए कांग्रेस ने आरजेडी के प्रतिनिधि मनोज झा के सामने बाकी बचे सीटों में से आठ सीट पर चुनाव लड़ने की मांग कर चुकी है. कांग्रेस इस रणनीति पर काम कर रही है कि जेडीयू की 16 सीटों को छोड़कर बाकी के 24 सीटों पर कांग्रेस, आरजेडी और वाम दलों के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर बातचीत को आगे बढ़ाया जाना ही उचित है.

जेडीयू के रवैये पर कांग्रेस और आरजेडी रख रही पैनी नजर

कांग्रेस ने मुकुल वासनिक के घर बैठक में आठ सीटों की मांग कर चुकी है. कांग्रेस ने कहा है कि आरजेडी को लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बड़ा दिल दिखाने की जरूरत है, क्योंकि विधानसभा चुनाव में आरजेडी हमेशा से बड़ी पार्टनर रही है. कांग्रेस दरअसल समस्तीपुर, नवादा, औरंगाबाद, वैशाली, मुजफ्फरपुर, बक्सर, किशनगंज सहित एक अन्य सीट पर चुनाव लड़ने की इच्छा ज़ाहिर की है.

कांग्रेस कटिहार सीट को लेकर दावेदारी जोरदार तरीके से पेश नहीं कर रही है, क्योंकि जेडीयू के सांसद दुलारचंद गोस्वामी वहां से जीते हुए सांसद हैं. वैसे कटिहार से कांग्रेस के दिग्गज नेता तारीक अनवर वहां से चुनाव लड़ना चाहते हैं, लेकिन जेडीयू के कड़े तेवर को देखते हुए कांग्रेस ने कटिहार सीट को लेकर हथियार डालने में ही भलाई समझी है.

दरअसल कांग्रेस की मांग के बाद आरजेडी पर दबाव बढ़ गया है. आरजेडी के नेता मनोज झा मीटिंग में शामिल थे और मनोज झा ने कांग्रेस की मांग को देखते हुए मीटिंग में ये कहा है कि वो आरजेडी के शीर्ष नेतृत्व के सामने कांग्रेस की डिमांड को रखने का काम करेंगे. जाहिर है आरजेडी जेडीयू के रवैये को देखते हुए पशोपेश में है.

आरजेडी के 79 विधायक हैं और 35 फीसदी मत पर आरजेडी की पकड़ मजबूत बताई जाती है. लेकिन जेडीयू जिस तरीके से व्यवहार कर रही है, उससे आरजेडी के भीतर दबाव बढ़ गया है. आरजेडी जानती है कि जेडीयू की बात इस समय नहीं मानी गई तो जेडीयू आरजेडी से नाता तोड़ सकती है. इसलिए लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में गठबंधन की सरकार को खतरा हो सकता है.

कांग्रेस के एक नेता के मुताबिक जेडीयू के एक बड़े नेता और नीतीश कुमार के बेहद करीबी अशोक चौधरी इन दिनों राजभवन से लगातार संपर्क बनाए हुए हैं. कांग्रेस और आरजेडी उनकी गतिविधियों पर नजर बनाए हुए है. इसलिए इंडिया गठबंधन और सरकार को बिहार में मजबूत रखने के लिए आरजेडी और कांग्रेस पांव फूंक- फूंक कर चल रही है.

आरजेडी क्यों है पशोपेश में?

आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव इन दिनों चुप्पी साधे हुए हैं. जेडीयू के विरोध में आरजेडी तकरीबन दर्जन भर सीटों पर साल 2019 में चुनाव हारी थी, जिनमें कुछ सीटें आरजेडी हर हाल में जेडीयू कोटे से वापस चाहती हैं. इनमें मधेपुरा, जहानाबाद, कटिहार, मधुबनी, झंझारपुर जैसी सीटें शामिल हैं. मधेपुरा से लालू प्रसाद पहले चुनाव लड़ चुके हैं,. वहीं जहानाबाद से जेडीयू के जीते हुए सांसद हैं, लेकिन बिहार सरकार में वर्तमान मंत्री सुरेंद्र यादव वहां से चुनाव लड़ना चाहते हैं. सुरेंद्र यादव पिछले चुनाव में महज 1700 वोटों से चुनाव हारे थे.

जाहिर है आरजेडी जहानाबाद को अपने कोटे में रखना चाहती है. यही हाल मधुबनी का है, जहां से आरजेडी के अब्दुल बारी शिद्दकी को चुनाव लड़ाना चाहती है, लेकिन उस इलाके के दरभंगा सीट पर भी जेडीयू संजय झा को उतारने का मन बना चुकी है.

जेडीयू के समान बराबर सीट पर चुनाव लड़ने और जेडीयू द्वारा जीती कुछ सीटों पर अदलाबदली की चाहत रखने वाली आरजेडी अब दबाव में है. आरजेडी हर हाल में राष्ट्रीय राजनीति पर मजबूत पकड़ कायम रखने के लिए 12 लोकसभा सीटें जीतने की मंशा पाले हुए है. लेकिन जेडीयू के साथ-साथ कांग्रेस द्वारा आठ सीटों की मांग आरजेडी की मुश्किलें कई गुणा ज्यादा बढ़ा चुकी है.

नीतीश के बदले तेवर से क्यों मची सियासी हलचल ?

जेडीयू नेता और मंत्री विजय चौधरी ने बुधवार को एकतरह से कह दिया है कि जेडीयू का मतलब सिर्फ और सिर्फ आरजेडी से है. इतना ही नहीं विजय चौधरी ने बार-बार बीजेपी की तर्ज पर विपक्षी गठबंधन का नाम इंडी गठबंधन कहकर संबोधित किया है, जिससे इंडिया गठबंधन के घटक दलों की भौहें तन गई हैं. कहा जा रहा है कि राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के आमंत्रण पर नीत क्या फैसला करेंगे? इसको लेकर सियासी हलचल तेज हो चुकी है.

सूत्रों के मुताबिक नीतीश कुमार राम लला के प्राण प्रतिष्ठा में शिरकत कर जी-20 की तरह ही सबको चौंका सकते हैं. जाहिर है इसलिए कहा जा रहा है 22 जनवरी के बाद बिहार में नया सियासी खेल शुरू हो सकता है और नीतीश कुमार एक बार फिर एनडीए के पाले में जा सकते हैं. कांग्रेस इसी अविश्वसनिय छवि की वजह से नीतीश कुमार के प्रमुख जिम्मेदारी देने से बचने का मन बना चुकी है.

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