दोस्ती हो या दुश्मनी ! हर भूमिका ईमानदारी से निभाते रहे नीतीश, 9 साल पहले मांझी को CM बनाने वाला किस्सा क्या है

बिहार विधानसभा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पूर्व सीएम जीतन राम मांझी की एक न छोड़ी। सदन में आरक्षण कोटा बढ़ाने पर चर्चा के दौरान नीतीश कुमार भड़क गए। इसके बाद तो ऐसे आपे से बाहर हुए कि जेडीयू कोटे के मंत्री भी अनकम्फर्टेबल हो गए। ये सच्चाई है कि 9 साल पहले नीतीश कुमार ने ही मांझी को सीएम बनाया था।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए इन दिनों तू-तड़ाक की भाषा पर उतर जाना कोई नई बात नहीं है। हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी कोई अकेले शख्स नहीं हैं, जिन्हें नीतीश कुमार के बिगड़े बोल का सामना करना पड़ा। इसके बरक्स तीश कुमार का एक चेहरा देश की राजनीति में नजीर बनने वाला भी है, जब नैतिकता के सवाल पर सीएम पद इस्तीफा दिया बल्कि मुसहर जाति से आने वाले जीतन राम न केवल मांझी को अपनी कुर्सी सौंपते सत्ता की चाबी थमा दी थी। ये वो समय था जब 2014 में लोकसभा चुनाव में जदयू को जानता ने नकार दिया था। हार की जिम्मेदारी लेते नीतीश कुमार ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। 9 मई 2014 को महादलित समाज से आने वाले जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी।

गुरुवार को सदन में जीतन राम मांझी पर उखड़ पड़े मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि ‘मेरी गलती थी कि इस आदमी को मैंने मुख्यमंत्री बना दिया। कोई सेंस नहीं है। ऐसे ही बोलते रहता है। इसको मुख्यमंत्री बनाना मेरी मूर्खता थी। इस आदमी को कोई आइडिया नहीं है। दो महीने के अंदर ही मेरी पार्टी के लोग कहने लगे इसको हटाइए। ये गड़बड़ है।’

दशरथ मांझी को भी बिठाया था अपनी कुर्सी पर

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जीतन राम मांझी से पहले भी एक शख्स को सीएम की कुर्सी छोड़ी थी। ये शख्स थे बिहार के ‘पर्वत पुरुष’ दशरथ मांझी । ये वही दशरथ मांझी थे जिन्होंने 22 वर्षों तक अकेले ही गया की पहाड़ियों को खोदकर अत्री और वजीरगंज के बीच रास्ता बना डाला था। पहाड़ का सीना चीरने के बाद लगभग 40 किलोमीटर की दूरी घटाकर 8 किलोमीटर की हो गई। वो वर्ष 2007 था, जब दशरथ मांझी नीतीश से मिलने आए थे। तब नीतीश कुमार ने सदाशयता दिखाते हुए 75 वर्षीय पर्वत पुरुष दशरथ मांझी को 5 मिनट के लिए अपनी कुर्सी पर बैठा कर राजनीति के विशाल हृदय को दिखाया था।

… और जब जीतन राम मांझी सीएम बने

ये समय था जब नीतीश कुमार 2014 के लोकसभा चुनाव में महज दो सीटों पर सिमट गए। तब सुशासन और विकास के नायक नीतीश कुमार ने हार का जिम्मा लेते हुए सीएम के पद से इस्तीफा दे दिया। तमाम अटकलों पर विराम लगाते हुए मुसहर जाति से आने वाले जीतन राम मांझी को सीएम कर एक मिसाल कायम की। इसके पहले कांग्रेस ने 22 मार्च 1968 में भोला पासवान शास्त्री को मुख्यमंत्री बनाया था।

भोला पासवान शास्त्री को तीन बार सीएम बनने का मौका मिला।

काफी दिनों बाद 2014 में नीतीश कुमार ने एक महादलित को सीएम बना कर एक नजीर पेश की। हर तरफ नीतीश कुमार के इस कदम का स्वागत हुआ। विश्लेषक नीतीश कुमार को हिम्मत मानते हुए, ये टिप्पणी कर रहे थे कि दल में तमाम सवर्ण और पिछड़ी जाति के नेताओं के दबाव से मुक्त होकर जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाना कोई छोटे दिल का काम नहीं। उस वक्त दलितों में नीतीश कुमार के प्रति आकर्षण बढ़ गया था। ये दीगर की, तब भी इस बात को लेकर चर्चा होती थी कि प्रायः उनके आसपास रहने वाले सवर्ण और पिछड़ी जाति के नेताओं पर उनका विश्वास नहीं जमा । हालांकि, तब मीडिया में भी नए सीएम के नाम की सबसे ज्यादा चर्चा थी तो मंत्री नरेंद्र नारायण यादव की । ये दोनों चेहरे तेज-तर्रार नेताओं जैसी नहीं थी। ये अति महत्वाकांक्षी भी नहीं थे।

सच्चाई बयां तो जीतन राम मांझी ने भी की

पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने भी गुरुवार को नीतीश कुमार पर अपनी भड़ास निकाली। उन्होंने कहा कि वे मानसिक संतुलन खो बैठे हैं। रहा मुख्यमंत्री बनाने की बात तो नीतीश कुमार ने 2014 के लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद अपनी लाज बचाने के लिए मुझ जैसे सीधे-साधे आदमी को सीएम बनाया था। उन्हें लगा कि जीतन मांझी रबर स्टांप है लेकिन जब मैं काम करना शुरू किया तो नीतीश कुमार और उनके आसपास लोगों को अखरने लगी । भय ये हो गया कि मांझी आपने कार्यों से कोई मुकाम न हासिल कर लें, इसलिए उन्होंने सीएम के पद से हटा दिया।

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