EWS QUOTA HEARING IN SUPREME COURT

सवर्ण गरीबों को आरक्षण क्यों नहीं? EWS कोटा पर जज पूछ रहे सवाल, वकील दे रहे आंकड़े

सवर्ण गरीबों के लिए की गई आरक्षण की व्यवस्था के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। याचिकाकर्ताओं की तरफ से दी जा रही दलीलों पर जज सवाल पूछ रहे हैं। जवाब में वकील आंकड़े दे रहे हैं। याचिकाकर्ताओं ने 103वें संविधान संशोधन को असंवैधानिक बताया है। उनका कहना है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण का प्रावधान नहीं किया जा सकता। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान कोई जड़वत व्यवस्था नहीं है बल्कि वह जिंदा दस्तावेज है। सर्वोच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं की तरफ से दलील दे रहे वकील से पूछा कि आखिर गरीबी के आधार पर आरक्षण क्यों नहीं दिया जा सकता है जबकि देश की बड़ी आबादी गरीबी रेखा के नीचे (BPL) है और जो अपनी गरीबी के कारण अच्छी शिक्षा से वंचित हैं।

वकील की दलील पर सुप्रीम कोर्ट के सवाल
बीते तीन दिनों से दलीलें पेश कर रहे याचिकाकर्ताओं के वकील ने जब कहा कि संविधान निर्माताओं ने गरीबी हटाने के लिए आरक्षण की व्यवस्था नहीं की थी बल्कि उनके उत्थान का लक्ष्य रखा था जो सदियों के उत्पीड़न के कारण समाज के हाशिये पर रहे हैं, तब सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पूछा कि आखिर गरीबों को आरक्षण के दायरे में क्यों नहीं लाया जा सकता है जिससे उनकी आर्थिक स्थिति सुधर सकती है? चीफ जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस एस. रवींद्र भट्ट, जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस जेपी पारदीवाला की बेंच ने याचिकार्ताओं के वकीलों से यह भी पूछा कि आखिर गरीबों को एक सामाजिक वर्ग क्यों नहीं माना जा सकता है?

103वें संविधान संशोधन को चुनौती
दरअसल, वकीलों ने कहा कि 103वें संशोधन में सिर्फ सवर्ण गरीबों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है और एसी-एसटी, ओबीसी और एसईबीसी समूहों को इससे वंचित रखा गया है। इस पर पांच सदस्यीय पीठ में शामिल जज जस्टिस रवींद्र एस. भट्ट ने कहा, ‘सुविधाओं से वंचित रखने की बात को थोड़ी देर अलग रखें तो 75 वर्षों से हम पीढ़ी दर पीढ़ी गरीबी देख रहे हैं। बड़ी संख्या में लोग गरीबी रेखा ने नीचे जीवन व्यतीत कर रहे हैं। देश की कुल आबादी का यह 20 प्रतिशत है जो बहुत बड़ी संख्या है। आखिर आर्थिक स्थिति पर आधारित सकारात्मक कार्रवाई (Economic Status-Based Affirmative Action) क्यों नहीं हो सकती है? उन लोगों के साथ भेदभाव नहीं हुआ है, लेकिन कमजोर आर्थिक दशा के कारण कई सुविधाओं से दूर हैं। वो उतने ही वंचित हैं जितने आरक्षण पाने वाले समूहों के लोग। आखिर इस समूह को चिह्नित करने में गलत क्या है?’

वकील ने पेश किया सवर्ण गरीबों का आंकड़ा
एक याचिकाकर्ता के वकील शदन फरसत (Shadan Farasat) ने कहा कि देश में कुल 31.7 करोड़ लोग गरीबी रेखा ने नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। इनमें सिर्फ 5.8 करोड़ सवर्ण जातियों से हैं। यह कुल बीपीएल आबादी से 20 प्रतिशत से भी कम है और इसी छोटी आबादी को आर्थिक आधार पर किए गए आरक्षण के प्रावधान का फायदा होगा। यानी, ईडब्ल्यूएस कैटिगरी से पिछड़े वर्गों को हटाने का अंतिम परिणाम यह होगा कि जिन्हें सामान्य श्रेणी के तहत इस 10 प्रतिशत का फायदा उठा रहे थे, उन्हें अब इसके लिए खुली प्रतियोगिता का मौका नहीं मिलेगा। हालांकि, समानता के हर संवैधानिक पहलू से पिछड़े वर्ग के वो लोग उन लोगों के मुकाबले बहुत बुरी स्थिति में हैं जिनका अब 10 प्रतिशत पर अब एकाधिकार होगा।

20 सितंबर को होगी अगली सुनवाई
फरसत ने कहा कि समानता की कोई भी अवधारणा में समानता के उलट ऐसी परिस्थिति की कल्पना नहीं की गई है। खासकर संविधान में समानता की जो कल्पना की गई है, उनमें तो बिल्कुल नहीं। उन्होंने कहा, ‘सिर्फ इसलिए कि पिछड़े वर्गों को सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण दी जाती है, उन्हें आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण से वंचित नहीं किया जा सकता है।’ वहीं, सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकर नारायणन ने कहा कि गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण की जरूरत लंबे समय से थी, लेकिन 50 प्रतिशत की सीमा पार नहीं की जा सकती है। वो ‘यूथ फोर इक्वैलिटी’ नामक संस्था का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। बहरहाल, बहस अभी खत्म नहीं हुई है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की अगली तारीख 20 सितंबर तय की है।

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