माटी के मोल बिकते हैं मिट्टी के दीये, दुकानदारों का झलका दर्द

दिवाली का त्योहार खुशियों का त्योहार है। इस दिन भगवान गणेश और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। दीपावली या दीवाली अर्थात “रोशनी का त्योहार” यह हर वर्ष मनाया जाता है। दीवाली भारत के सबसे बड़े और प्रतिभाशाली त्योहारों में से एक है। यह त्योहार आध्यात्मिक रूप से अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति और प्रकाश की ओर जाइए’ यह बताता है।

इस दिवाली डिस्काउंट ना मांगे बल्कि स्वदेशी सामग्री को ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करके छोटे दुकानदारों की सहायता करने का प्रयास करें। क्योंकि दीवाली का दीप तो इन्हें भी अपने घर में जलाना होता है और परिवार के संग खुशियां मनाना है़। आपको बता दें कि 27 नवंबर को हर्षोल्लास के साथ दिवाली का पर्व मनाया जाएगा जिसको लेकर तैयारियों शुरू हो गई है। बाजारों में दिवाली की रौनक नजर आने लगी दुकानदारों ने मूर्तियों, दीये व अन्य सामान जिससे दिवाली में घरों की सजावट होती है।

दीपावली के पर्व का हर किसी को बेसब्री से इंतजार होता है दुकानदारों के द्वारा दीपावली को लेकर विशेष तैयारियां की जाती हैं और इस अवसर पर इन्हें धंधे को लेकर काफी उम्मीद भी होती है कुछ दुकानदारों का कहना है कि विशेषकर दीया बनाने वाले कलाकारों की मिट्टी से बने दिए को लोग मिट्टी के भाव ही खरीदना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि लोग दिए कम खरीदते हैं, मोलभाव ज्यादा कर रहे हैं। दीया बनाने वाले कलाकारों बढ़ती हुई महंगाई के कारण एक मायूसी दिख रही है।

वही दिए के साथ अन्य दुकानदारों का भी यही कहना है कि महंगाई की दुकानदारी पर साफ असर नज़र आ रहा है। उन्होंने कहा कि लोग मोल भाव ज़्यादा और खरीदारी कम करते हैं जिसके कारण अब बहुत अच्छी दुकानदारी नहीं हो पा रही है। वही मूर्ति बेचने वाले दुकानदारों का कहना था कि वह अधिकतर लोग कोलकता से मूर्तियां लाते हैं जिसमें काफी ज़्यादा खर्चा होता है। मगर अब उस हिसाब से आमदनी नहीं हो पा रही है जितनी उम्मीद रहती, वहीं कुछ दुकानदारों का यह भी कहना था कि महंगाई का इतना खास फर्क नही पड़ेगा दीपावली के 1 दिन पहले ही अच्छे दुकानदारी होती है।

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