भाजपा के एक पूर्व मंत्री से जुड़े ई-टेंडरिंग घोटाले की जांच से उठा राजनैतिक कोलाहल

सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार इस कदम को अपने चुनावी प्रचार अभियान में भ्रष्टाचार खत्म करने के वादे को पूरा करने का प्रयास बता रही है, लेकिन करोड़ों रुपए के ई-टेंडरिंग घोटाले की जांच में पूर्व जल संसाधन मंत्री और वर्तमान भाजपा विधायक नरोत्तम मिश्र के दो कर्मचारियों की गिरफ्तारी से राज्य का माहौल गरमाया हुआ है।

27 जुलाई को राज्य की आर्थिक अपराध शाखा ने दो लोगों को गिरफ्तार किया। एक, निर्मल अवस्थी जो पूर्व मंत्री के निवास पर बतौर टेलीफोन ऑपरेटर नियुक्त थे और दूसरे, उनके ओएसडी वीरेंद्र पांडे। दोनों पर जल संसाधन विभाग (डब्ल्यूआरडी) के ई-टेंडर को तय करने की साजिश रचने और ऑनलाइन सेवा प्रदान करने वाले पोर्टल का कामकाज देखने वाले विभाग के इंजीनियरों और एक निजी कंपनी के साथ मिलीभगत करने का आरोप है।

निर्मल अवस्थी और वीरेंद्र पांडे फिलहाल न्यायिक हिरासत में हैं। सूत्रों का कहना है कि नरोत्तम मिश्र के निजी स्टाफ के इन दो व्यक्तियों की भूमिका टेंडर तय करने की प्रक्रिया में बिचैलिए की थी. मई में गिरफ्तार किए गए एक अन्य बिचैलिए मनीष खरे ने साफ तौर पर उनके नाम का उल्लेख करते हुए इस संबंध में उनकी भूमिका की ओर इशारा किया था। खरे और उन दोनों कर्मचारियों के खिलाफ गुजरात की एक फर्म को सवा सौ करोड़ रुपए का टेंडर देने का आरोप है।

पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्र का आरोप है कि घोटाले में उनका नाम जोडऩे के लिए उन दोनों पर दबाव डाला जा रहा है। वे कहते हैं, ”ई-टेंडर देने की प्रक्रिया में वरिष्ठ अधिकारी शामिल रहते हैं, … इसमें क्लास 3 और 4 स्तर के कर्मचारी हेरफेर नहीं कर सकते।”

निर्मल अवस्थी और वीरेंद्र पांडे की पत्नियों ने भी हाइकोर्ट में अर्जी दायर की है कि उनके पतियों को मंत्री मिश्र को फंसाने के लिए इस्तेमाल करने के लिए पकड़ा गया है. उनका आरोप है कि कर्नाटक में कांग्रेस-जद (एस) की सरकार गिरने के बाद, सत्तारूढ़ पार्टी आशंकित है कि कहीं मध्य प्रदेश में भी कुर्सी न छिन जाए, इसलिए विपक्षी नेताओं पर दबाव बनाकर परेशान किया जा रहा है।

लेकिन अब लोकसभा चुनावों के बाद पिछले शासन के कथित घोटालों की जांच में तेजी आई है। (चुनावों के दौरान इसका नजारा मुख्यमंत्री कमलनाथ के सहयोगियों और रिश्तेदारों के निवासों पर आइटी छापे में साफ देखा गया)। लेकिन भोपाल के राजनैतिक गलियारे में इसमें कोई हैरानी नहीं जताई जा रही है कि मिश्र आरोपों की जद में हैं।

पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्र राजनीति की जोड़तोड़ में माहिर हैं और कांग्रेस के विधायक चौधरी राकेश सिंह और संजय पाठक को भाजपा में लाने का श्रेय उन्हीं को जाता है। वे कमलनाथ सरकार को गिराने के लिए कांग्रेस के कुछ विधायकों को अपने पाले में लाने की बात पर भी मुखर रहे हैं। उन्हें भाजपा अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का करीबी भी माना जाता है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मिश्र की सुरक्षा बढ़ाते हुए उन्हें वाई श्रेणी की सुरक्षा दी है, जो सामान्य तौर पर विधायकों को नहीं मिलती। यानी उन पर आंच बढ़ाकर कमलनाथ सियासी मकसद साध रहे हैं।

निर्मल अवस्थी पहले पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्र के पास निजी हैसियत से नौकरी किया करते थे, लेकिन एक साल पहले उन्हें कानून विभाग में चपरासी की नौकरी मिल गई थी। मिश्र कानून विभाग के भी मंत्री थे। दूसरी तरफ, वीरेंद्र पांडे कई वर्षों से मिश्र के साथ हैं और जल संसाधन विभाग में तृतीय श्रेणी के कर्मचारी हैं।

निर्मल अवस्थी और वीरेंद्र पांडे अभी आर्थिक अपराध शाखा की हिरासत में हैं। अगर उन्होंने जबान खोली तो मिश्र के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। एजेंसी 2008 के एक पुराने मामले की भी जांच कर रही है जिसमें आयकर विभाग को मिश्र और संदेहास्पद कारोबारी मुकेश शर्मा के बीच तार दिखाई दिए थे। मिश्र उस समय शहरी प्रशासन मंत्री थे और शर्मा के घर पर मिले दस्तावेज दिखाते हैं कि मिश्र को हैदराबाद की एक कंपनी ने पैसे दिए। पूर्व मंत्री का दावा है कि उन्हें उस मामले में आइटी विभाग ने बरी कर दिया था। लेकिन, आर्थिक अपराध शाखा एक अलग एजेंसी है।

इस बीच, राज्य के सूत्रों का कहना है कि व्यापम और इंदौर के पेंशन घोटालों की जांच फिर से शुरू होने की संभावना है, जिसमें कथित तौर पर भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय शामिल थे। विजयवर्गीय मध्य प्रदेश में बहुत कम रहते हैं। वे पश्चिम बंगाल के पार्टी प्रभारी हैं, लेकिन अमूमन उनकी नजर मध्य प्रदेश और कमलनाथ सरकार पर टिकी रहती है।

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