पानी का बुलबुला नहीं
तू झरना बन
स्वीकार कर हर चुनौती
तू आगे बढ़
न देख मुंह किसी का
खुद का यकीन बन
ये महज चंद लाइनें नहीं है बल्कि इन लाइनों के एक एक शब्द प्रेरणास्रोत है..वो भरोसा है…. जिनका नाम है पूजा कसौधन…जो आज सैकड़ों बच्चों को पढ़ाने की और उनकी मदद करने की जिम्मेदारी उठा रही हैं।
बचपन में पूजा अक्सर उन बच्चों को लेकर पिता के पास लेकर आती थीं। जो पढ़ना तो चाहते थे लेकिन फीस भरने के लिए रूपये नहीं होते थे…पूजा पापा से उनकी सहायता करने को कहतीं। पिता अपनी बेटी के दयाभाव को देख मुस्करा देते और उन बच्चों की मदद कर देते थे। इससे पूजा का चेहरा खुशी से चमक उठता था। छोटी उम्र में ही दूसरों का दुख देख द्रवित होने वाली कोमलहृदय पूजा को पिता का प्रोत्साहन मिला। इस प्रोत्साहन ने पूजा को एक बेहतर इंसान बनाया और जरूरतमंदों की मदद का जज्बा स्वभाव में शामिल हो गया। नतीजा, आज पूजा 300 से ज्यादा बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठा रही हैं।
दिल्ली की महानगरीय संस्कृति में पली गीता उर्फ पूजा कसौधन को मां कुसुम व पिता काली प्रसाद गुप्ता के संस्कार मिले। अचानक उनकी मां गंभीर रूप से बीमार हो गईं। उनकी इच्छा पर पूजा की शादी भी समय से पहले हो गई। ब्याह कर वह सुल्तानपुर आ गईं। तब उनकी शिक्षा बारहवीं तक ही पूरी हुई थी।
पूजा ने पहले अपनी शिक्षा की पूरी की फिर गरीब बच्चों को गोद लिया…..पूजा को आगे की शिक्षा में पति संदीप कुमार व ससुर हरिश्चंद्र गुप्ता का पूरा सहयोग मिला। समाजशास्त्र व अंग्रेजी में एमए की डिग्री ली। साल 2016 में तीन बच्चों को शिक्षा से संपन्न करने के लिए गोद लिया। इसी बीच एक घटना हुई। शहर से सटे अमहट के पास एक व्यक्ति की करंट लगने से मौत हो गई। परिवार में पत्नी के अलावा पांच बेटियां व तीन बेटे थे। घर में खाने तक को कुछ नहीं था। विधवा जूठे बर्तनों को धुलकर दो वक्त की रोटी का किसी तरह जुगाड़ करती थी। पूजा ने उसे बाटी-चोखे की दुकान खुलवा दी और बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा उठा लिया। उसमें एक लड़का दिल्ली में अब एसी का काम सीख रहा है। इसी तरह परी, आदित्य, सचिन, राजन, खुशबू सहित नौनिहालों का एक बड़ा समूह उनके संरक्षण में ज्ञान पा रहा है। अब करीब 300 बच्चे विभिन्न स्कूलों में उनकी मदद से पढ़ाई कर रहे हैं। आज पूजा कसौधन की सहायता से देश का भविष्य…बच्चे शिक्षित हो रहे हैं।