मुख्यमंत्री जेल में, लोग जाम में, दिल्ली पानी में… आखिर किसके सहारे है राजधानी

बारिश ने दिल्ली की तरक्की और इंतजाम की पोल खोलकर रख दी है. गर्मी से बेहाल दिल्ली को पहले जल संकट ने तरसाया. जब ऊपर से जल बरसा तो राजधानी उसे सहेज न पाई. जो बूंद-बूंद को तरस रहे थे, अब पानी-पानी हो गए हैं. मुख्यमंत्री जेल में हैं, लोग जाम में हैं और दिल्ली पानी में. आखिर राष्ट्रीय राजधानी के लोग किससे गुहार लगाएं?

कभी-कभी लगता है दिल्ली की गर्मी, जल संकट और अब जलजमाव पर एक ‘खुला खत’ लिख देना चाहिए? पर किसके नाम. जब पत्र में लिखी बातें वाकई पढ़ी जाती थीं, लोग मन लगाकर लिखा भी करते थे. उन्हीं दिनों ओपेन लेटर, बोले तो खुला खत लिखने की एक रवायत चल पड़ी थी. जब कोई पूरे तंत्र और प्रक्रिया से थक-हार जाता, उसे कुछ नहीं सूझता और उसके पास कहने को कुछ ठोस होता तो वह एक खुला खत लिख मारता था. इस तरह के खुले खत में से कितनों का संज्ञान लिया गया, इसका पुख्ता आंकड़ा हमारे पास नहीं है. लेकिन बाज लोगों का मानना है कि यह ईडी की ओर से दर्ज किए गए कुल मामलों की तुलना में दोषियों की सजा की जो दर (0.42 फीसदी) है, उससे अधिक नहीं रहा होगा.

ऐसे खत के लिए सबसे आवश्यक चीज, वह नाम होती थी जिन्हें संबोधित करते हुए यह लिखा जाता था. मिसाल के तौर पर प्रधानमंत्री के नाम, देश के सीजेआई के नाम एक खुला खत वगैरा-वगैरा. खैर हो कि आज इस तरह के खुले खत को कोई तनिक भी सीरियसली लेता नहीं. और लेने की बात भी तो तब आती जब आपको मालूम रहता कि अमुक मुद्दे पर लिखना किसके नाम है. अब देखिए, किसी राज्य विशेष की बात नहीं, देश की राजधानी है दिल्ली. वह ऐसा खत आज की तारीख में अगर लिखना भी चाहे तो तय नहीं कर पाएगी कि जेल में बंद मुख्यमंत्री को लिखे, अस्पत अभी ही लौटीं मंत्री जी से दरख्वास्त करे या उपराज्यपाल से अनुनय-विनय कर थोड़ी धीरज पाए?

पार्ट 1: पहले प्रचंड गर्मी से बेहाल दिल्ली

दिल्ली के लोग पहले तो इस उलझन में रहे कि तापमान 50 डिग्री से ऊपर चला गया है या अभी नीचे ही है ताकि उस हिसाब से वे घबरा सकें. चिलचिलाती धूप, हीटवेव से परेशान होकर जब कुछ लोगों ने दिन-रात एसी चलाया तो आग लग गई. अब गर्मी भ्रष्टाचार तो है नहीं कि लोगों को समझ आता इसके लिए कोसना किसको है, सो लोगों ने गर्मी कम होने की दुआ ईश्वर से की. गर्मी कुछ कम हुई भी लेकिन जल संकट गहरा गया. हां, पानी को लेकर दिल्ली वालों को मालूम था किस पर अपनी खीझ निकालनी है. इससे पहले की लोग जल बोर्ड, मंत्री आतिशी पर तल्ख रुख अख्तियार करते, मामला हरियाणा बनाम पंजाब, बीजेपी बनाम आप, सीएम बनाम एलजी हो गया. और अदालत में चला गया.

पार्ट 2 लो अब जल संकट की समस्या

दिल्ली के लोग फिर से कन्फ्यूज हो गए कि जल संकट के लिए किस से गुहार लगाएं, किसको जिम्मेदार ठहराएं. भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने आपदा में अवसर तलाशा, लोगों की आवाज उठाने का दावा करते हुए सड़कों पर जा उतरे. इससे बड़ी विडंबना और क्या होती कि जब वे ‘दिल्ली जल बोर्ड’ के बाहर ‘जल संकट’ के मुद्दे पर आम आदमी पार्टी की सरकार के खिलाफ नारे लगा रहे थे, दिल्ली पुलिस उन पर ‘पानी की बौछारें’ कर तितर-बितर कर रही थी. मानो ये कहते हुए कि पानी पर्याप्त है, बताइये और कितना चाहिए. हालांकि, आम लोग जानते थे कि प्रदर्शनकारियों पर बौछार के लिए पानी उपलब्ध कराना आसान है, मगर पीने का पानी दिलाना कठिन.

पार्ट 3: जलभराव का क्या किया जाए

शायद जलमंत्री आतिशी को भी इस बात का अंदाजा था. लिहाजा, इससे पहले कि उन्हें कोई खुला खत लिखता, उन्होंने खुद ही जल का त्याग कर दिया. और अनशन पर बैठी गईं. मगर जैसा अनशन में होता है, स्वास्थ्य बिगड़ गया, वह अस्पताल में भर्ती हुईं. अब जब वह बाहर आईं हैं तो जल संकट वाली दिल्ली जलजमाव से परेशान है. अव्वल तो झमाझम बारिश से न सिर्फ गर्मी बल्कि जल संकट में भी कुछ कमी आनी चाहिए थी. लेकिन यहां तो हाहाकार मच गया. इस हाहाकार की भी वजहें हैं. चूंकि दिल्ली वालो को सुबह दफ्तर जाना होता है, ऊपर से उनके पास कार भी है, सो वे जलभराव के आलम में घर से बाहर निकले तो दिल्ली रेंगने लगी.

हाल ये है कि जो बूंदबूंद को तरस रहे थे, वे अब पानीपानी हो गए हैं. मगर खत लिखें तो किसे.

इतनी बातें भी इसलिए हो गईं क्योंकि दिल्ली में इस बार की बारिश का पानी वीवीआईपी इलाकों – लुटियंस में रहने वाले सांसदों, मंत्रियों के बंगलों तक जा पहुंचा. सदन में स्पीकर मालूम नहीं कितने निष्पक्ष रहे हैं मगर बारिश ने बिना किसी भेदभाव के क्या पक्ष, क्या विपक्ष, प्रोटेम स्पीकर तक बराबर कृपा की. कुछ दिनों के लिए लोकसभा स्पीकर की कुर्सी संभालने वाले भाजपा नेता भर्तृहरि महताब हों, कांग्रेस सांसद तारिक अनवर या फिर सपा सांसद रामगोपाल यादव, सभी का घर पानी-पानी हो गया. यहां तक कि दिल्ली की जल मंत्री आतिशी का भी घर जल में मग्न दिखा. और तो और देश के लिए नीति बनाने वाले ‘नीति आयोग’ के सदस्य विनोद कुमार पॉल का बंगला डूब गया. सो, खत किसे लिखते.

इस बदइंतजामी का जिम्मेदार कौन?

हमेशा की तरह आप पूछेंगे कि ये सब जो हो रहा है, इसका जिम्मेदार कौन है? दिल्ली नगर निगम, आम आदमी पार्टी की सरकार, मोदी सरकार या कोई और? जैसे लुटियंस की सड़के उलझाऊ हैं, इस सवाल का जवाब भी उतना ही जलेबीनुमा है. दिल्ली के अंदर आने वाली 60 फीट से ज्यादा चौड़ी सभी सड़कें पीडब्ल्यूडी संभालती है जबकि 60 फीट से कम चौड़ी सड़कें नगर निगम के अधीन है.

पीडब्ल्यूडी और नगर निगम, दोनों जगहों पर आम आदमी पार्टी का नियंत्रण है. मगर उनका कहना है कि एलजी की अतिरिक्त सक्रियता की वजह से वे काम नहीं कर पा रहे हैं. जिसे आम आदमी पार्टी की सरकार एलजी का ‘अड़ंगा’ बता रही है, एलजी उसे अपनी ‘भूमिका’ कहते हैं.

सवाल है कि एलजी और दिल्ली सरकार की इस राजनीतिक छींटाकशी और तकरार में भारतीय जनता पार्टी के 7 सांसदों की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती? जिनमें से एक मनोज तिवारी जलभराव को दिल्ली सरकार का निकम्मापन बता रहे हैं. जहां तिवारी जी जैसे बड़े नेता रहते हैं, उस लुटियंस जोन का क्या. वह तो सीधे तौर पर केन्द्र के अधीन है. सभी ‘बड़े बाबू, लोकसेवक’ उधर ही तो रहते हैं. लुटियंस के नगर निगम का जिम्मा जिन एनडीएमसी के चेयरमैन नरेश कुमार पर है, उनकी कोई भूमिका नहीं? इसी तरह दिल्ली जल बोर्ड, लोक निर्माण विभाग, दिल्ली नगर निगम, दिल्ली विकास प्राधिकरण, सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग के दफ्तरों में बैठे अधिकारियों का क्या?

तो क्या कुछ नहीं हो रहा?

बहरहाल, ऐसा न समझें कि कुछ भी नहीं हो रहा है. तालाब में तब्दील हो चुकी सड़कों की स्थिति सुधारने के लिए उपराज्यपाल वी. के. सक्सेना ने आपातकालीन बैठक बुलाई है. ‘आपातकाल’ की संसद में आलोचना के ठीक एक दिन बाद आपात बैठक बुलाने के अपने मायने हैं.

सबसे जरूरी बात यह है कि उपराज्यपाल ने केवल स्थिति का जायजा नहीं लिया है बल्कि कंट्रोल रूम बनाने, जल निकासी के लिए पंप लगाने, छुट्टी पर गए अधिकारियों को तुरंत वापस आने और दो महीने किसी भी की छुट्टी मंजूर न करने का फरमान सुनाया है.

एक और समानांतर बैठक इसके साथ हुई है. ये बैठक है दिल्ली सरकार की. इस बैठक में जलभराव वाले लगभग 200 हॉटस्पॉट की पहचान की गई है. और कुछ की सीसीटीवी निगरानी की भी बात हुई है. सीसीटीवी, कंट्रोल रूम को खत लिखा जा सकता है क्या?

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