उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) से पहले हर पहल सम्मीकरण बदलता नजर आ रहा है. 10 साल पहले जिस पार्टी की यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार रही हो, उसकी हालात इतनी खस्ता हो जाएगी, ये किसी ने सोचा भी नहीं होगा. बहुजन समाज पार्टी (BSP) के बारे में ऐसा माहौल इसलिए बनता जा रहा है क्योंकि दिनों- दिन बसपा खण्डित होती जा रही है. प्रदेशस्तर पर पहचान रखने वाले उसके ज्यादातर नेता पार्टी छोड़ चुके हैं. विधायकों के एक बड़े दल ने पाला बदल लिया है. चुनाव करीब हैं. ऐसे में टूटती बसपा की ओर सभी पार्टियां तिकोनी नजरों से देख रही हैं. अब बड़ा सवाल ये खड़ा हो जाता है कि बसपा के टूटने से किस पार्टी को सबसे ज्यादा फायदा होगा. सपा या भाजपा को?
बसपा के बारे में कहा जाता है कि उसका कोर वोटबैंक कमोबेश अभी भी उससे जुड़ा हुआ है लेकिन, ये पूरा सच नहीं है. बसपा का कोर वोटबैंक भी दरक चुका है. पिछले तीन चुनाव के आंकड़े इसकी गवाही देते हैं. 2007 में जब यूपी में बसपा की सरकार बनी थी तब पार्टी को 30.43 फीसदी वोट मिले थे. 2012 में न सिर्फ पार्टी हारी बल्कि उसका वोट शेयर घटकर 25.95 फीसदी रह गया. 2017 में तो हालत और पतली हो गयी. बसपा को महज 22.23 फीसदी ही वोट मिले. इसके मुकाबले यदि सपा की बात करें तो 2007 से लेकर 2017 तक उसके वोट शेयर में महज 2 फीसदी की ही गिरावट देखी गयी. बसपा में ये गिरावट इन्हीं सालों में 8 फीसदी रही. जाहिर है कि बसपा की जमीन लगातार दरकती जा रही है. एक एक करके उसके सभी बड़े नेता पार्टी छोड़ते गये.
बता दें कि यूपी में 22 फीसदी के करीब दलित और 18 फीसदी मुसलमान वोटबैंक माना जाता है. दलितों में से 10 फीसदी जाटव वोट है जो पूरा बसपा को मिलता रहा है. सीटों के हिसाब से उसे मुस्लिम वोट भी मिलता रहा है. इस बार हालात जुदा हैं. आशंका जाहिर की जा रही है कि इस बार 2022 के चुनाव में बसपा के वोट शेयर में और गिरावट आ जायेगी. दलित वोटबैंक में तो पहले ही सेंध लग चुकी है. अब जाटव वोटबैंक में भी सेंध की आशंका गहरा गयी है. भाजपा और सपा जैसी पार्टियां बसपा से टूट चुके या टूट रहे वोटबैंक को समेटने को लेकर लालायित हैं. तो फिर इन वोटों का बटवारा किन पार्टियों के बीच और कैसे होगा.
विशेषज्ञों का मानना है कि मायावती के दलित वोटबैंक में तो पहले ही भाजपा ने सेंध लगा ली है लेकिन, जाटव वोटबैंक में सेंधमारी कितनी हो पाती है, ये आगे देखने को मिलेगा. ये बहुत कुछ इस बात पर निर्भर कर रहा है कि चुनाव में कौन सा गठबंधन साथ उतर रहा है. संभव है कि अभी दिख रहा गठबंधन चुनाव तक कायम न रह पाये. ऐसा होने पर आगे चलते हुए दिख रही पार्टी पीछे दिखाई देने लगेगी. यदि नये गठबंधनों के चलते बसपा मुकाबले में दिखने लगेगी तो उसके वोटबैंक में टूटन नहीं आएगी. ये अलग बात है कि मायावती ने अभी तक अकेले ही चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. फिर भी इस बात की उम्मीद ज्यादा है कि बसपा में जो भी बिखराव होगा उसका फायदा सपा को मिलेगा.
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