Congress President

कांग्रेस पार्टी के पुनरुद्धार की दूर-दूर तक कोई संभावना नजर नहीं आती

असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी विधानसभा चुनावों के 2 मई को आए नतीजों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि कांग्रेस और उसका मौजूदा नेतृत्व चुनावी राजनीति में जीत हासिल करने लायक नहीं है। खासकर केरल में उसकी हार ने उसके विरोधियों को भी चौंका दिया है, क्योंकि इस राज्य के मतदाता पिछले 40 साल से हर चुनाव में सत्ताधारी पार्टी को बाहर का रास्ता दिखाते रहे हैं, लेकिन इस बार उन्होंने वाम गठबंधन की सरकार को फिर से चुनकर यह स्पष्ट कर दिया कि उन्हें कांग्रेस पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है।

जाहिर है कि देश को आजादी दिलाने और उसे वैज्ञानिक सोच के साथ विकास के पथ पर ले जाने का दावा करने वाली कांग्रेस अपने इतिहास के सबसे कठिन दौर से गुजर रही है। हालांकि कांग्रेस इससे पहले 1980 और 2004 में केंद्र की सत्ता में वापसी कर चुकी है, लेकिन अब न तो उसके पास कोई दृष्टि और न ही कोई नेता। कांग्रेस की इस दुर्गति को पार्टी के प्रवक्ता रहे संजय झा ने अपनी ताजा पुस्तक द ग्रेट अनरैवेलिंगः इंडिया आफ्टर 2014 में बेहतरीन ढंग से पेश किया है।

पिछले साल जुलाई में पार्टी से निलंबित किए जाने से पूर्व संजय झा कांग्रेस के वर्तमान और भविष्य को लेकर अपनी बेबाक टिप्पणियों के कारण पार्टी प्रवक्ता पद से हटाए जा चुके थे। पिछले साल जून में एक अंग्रेजी अखबार में लिखे अपने लेख के कारण उन्हें प्रवक्ता पद से हटाया गया था। प्रस्तुत पुस्तक एक तरह से उनके उसी लेख का विस्तार है, जिसमें उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व के इस दावे को खारिज किया था कि पार्टी के अंदर विचारों के खुले आदान-प्रदान के लिए मंच उपलब्ध है। इसके बाद कांग्रेस के 23 वरिष्ठ नेताओं (जी-23) की चिट्ठी ने कांग्रेस नेतृत्व पर सवालों की बौछार कर दी, लेकिन इसके बावजूद पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की नींद नहीं खुली और उसके नतीजे सबके सामने हैं।

कांग्रेस की कार्यशैली और उसके नेतृत्व पर प्रश्न खड़े करने वाले संजय झा ने पिछले साल जब जी-23 की चिट्ठी को लेकर पहली बार ट्वीट किया था तो पार्टी प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने उन्हें भाजपा का एजेंट तक कह दिया था, लेकिन इस पुस्तक को पढ़ने के बाद यह स्पष्ट हो जाएगा कि वे अब भी कांग्रेसी ही है और पार्टी के भविष्य को लेकर वाकई में चिंतित हैं। सोनिया गांधी के आमंत्रण पर 2004 में पार्टी से जुड़ने वाले संजय झा की इस पुस्तक की सबसे खास बात यह है कि उन्होंने कांग्रेस के पराभव के कारणों के विश्लेषण में काफी ईमानदारी बरती है। हालांकि वे राहुल गांधी को अब भी लंबी रेस का घोड़ा मानते हैं, लेकिन उनकी कमियां बताने में भी वे पीछे नहीं रहे हैं। शाहबानो प्रकरण के बहाने उन्होंने राजीव गांधी की भी जमकर आलोचना की है।

पार्टी को पटरी पर लाने के लिए हालांकि उनके सुझाव नए नहीं है। उनकी राय है कि किसी गैर-गांधी को पार्टी का नेतृत्व संभालना चाहिए। कोई ऐसा नेता जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की जोड़ी का मुकाबला कर सके। उन्होंने इसके लिए कुछ नेताओं के नाम भी सुझाए हैं, लेकिन दिक्कत यही है कि पार्टी का एक वर्ग नहीं चाहता है कि कांग्रेस का नेतृत्व किसी गैर-गांधी के पास जाए क्योंकि ऐसा होने की सूरत में उनकी और उनके बेटे-बेटियों की राजनीति खत्म हो जाएगी। संजय झा की नजर में सोनिया गांधी और राहुल गांधी के जरिए पार्टी पर कुंडली मारे बैठे इन नेताओं के रहते तो पार्टी का भविष्य अंधकारमय ही लगता है।

कांग्रेस को लेकर चिंता जताने के अलावा इस पुस्तक का एक बहुत बड़ा हिस्सा केंद्र की मौजूदा भाजपा सरकार और उसकी विचारधारा एवं नीतियों पर केंद्रित है। जैसी कि किसी कांग्रेसी से उम्मीद थी, इस लेखक को भी लगता है कि मोदी सरकार के कारण भारत की उदार, सेक्युलर और वैज्ञानिक अवधारणा पर बहुत बड़ा सवालिया निशान लग गया है और इस वजह से इस महान देश की छवि को गहरा धक्का लगा है। देश की अर्थव्यवस्था रसातल में जा रही है और उसकी विदेश नीति तदर्थता का शिकार हो गई है। वे यह भी मानते हैं कि सिर्फ कांग्रेस ही ऐसी पार्टी है जो भारत को फिर से वैश्विक मंच पर स्थापित कर सकती है। पाठकों का संजय झा के निष्कर्षों से मतभेद हो सकता है, लेकिन इसमें कोई दोराय नहीं है कि वे इस पुस्तक में एक सच्चे कांग्रेसी की भूमिका में नजर आए हैं।

देश के सबसे पुराने प्रबंधन संस्थानों में शामिल जमशेदपुर के जेवियर स्कूल आफ मैनेजमेट के ग्रेजुएट संजय झा कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों में उच्च पदों पर रहने के बाद राजनीति की दुनिया में आए हैं। इसलिए कांग्रेस को उनकी बातों पर ध्यान देना चाहिए, लेकिन यह तभी संभव है जब पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ट्विटर और दूसरे इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्मों से बाहर निकल कर सड़क पर उतरे और जनता के संघर्षों में शामिल हो। इसके बिना कांग्रेस का पुनरुद्धार की दूर-दूर तक संभावना नजर नहीं आती है।

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