Assembly Elections: अब ईश्वर के भरोसे ही कांग्रेस पार्टी विधानसभा चुनाव लड़ेगी?

पांच राज्यों में विधानसभा का चुनाव (Assembly Elections) जिसका भविष्य में राष्ट्रव्यापी प्रभाव हो सकता है, सिर पर है. कांग्रेस पार्टी (Congress Party) कितनी हताश और निराश है, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जो पार्टी अपने आपको भारत के धर्मनिरपेक्षता (Secularism) का ठेकेदार मानती है, उसे भी अब मंदिर, मस्जिद और चर्च का चक्कर लगाना पड़ रहा है. कांग्रेस के हताश होने का कारण यह नहीं है कि अगर कुछ अप्रत्याशित नही हुआ तो पार्टी पांचों राज्यों में चुनाव हारने की कगार पर है. कांग्रेस पार्टी अप्रत्याशित परिणामों में विश्वास रखती है.

2004 लोकसभा चुनाव का परिणाम अप्रत्याशित था. कांग्रेस पार्टी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि केंद्र में उसकी सरकार बन जाएगी. कांग्रेस पार्टी के हताश होने का कारण है कि उसे अपने प्रत्याशियों पर भरोसा नहीं हो पा रहा है कि अगर वो इस बार 2022 का विधानसभा चुनाव जीत जाते हैं, तो क्या उसके बाद भी पार्टी में बने रहेंगे. 2017 में कांग्रेस पार्टी की पंजाब में अप्रत्याशित जीत हुई थी, पार्टी पूर्ण बहुमत से मणिपुर में तीन सीटों से और गोवा में चार सीटों से पीछे रह गयी थी. दोनों राज्यों में त्रिशंकु विधानसभा का चुनाव हुआ था. और यह अप्रत्याशित ही था कि जहां कांग्रेस पार्टी सरकार बनाने की स्थिति में थी, उसके विधायक पार्टी छोड़ कर बीजेपी में शामिल होने लगे. मणिपुर और गोवा में कांग्रेस पार्टी के 13-13 विधायक भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए, जिस कारण बीजेपी दोनों राज्यों में चुनाव के बाद बहुमत पाने में सफल रही थी और बीजेपी की सरकार पूरे पांच साल तक चली.

कांग्रेस के विधायक बिकाऊ हो गए हैं?
खबर है कि कांग्रेस पार्टी अपने प्रत्याशियों को धार्मिक स्थलों पर ले जा रही है और उन पर दबाव डाला जा रहा है कि भगवान, गुरुग्रंथ, अल्लाह या प्रभुयशु के नाम पर शपथ लें कि चुनाव जीतने की स्थिति में वह कांग्रेस पार्टी छोड़ कर किसी और दल में शामिल नहीं होंगे. जब भी कोई भी व्यक्ति चुनाव जीतता है, विधायक, सांसद बनता है या फिर मंत्री बनता है तो उसे उस पद के लिए शपथ लेनी पड़ती है. उन्हें यह अधिकार होता ही कि वह शपथ या तो ईश्वर के नाम पर लें या फिर संविधान के नाम पर. यदाकदा भी कांग्रेस के नेता ईश्वर के नाम पर शपथ लेते हैं, क्योंकि एक धर्मनिरपेक्ष दल के नेताओं को ईश्वर के नाम पर शपथ लेने में शर्म आती है. पर वही पार्टी अब अपने उम्मीदवारों को ईश्वर की शपथ लेने को कह रही है कि चुनाव के बाद भी वह पार्टी में बने रहेंगे. क्योंकि इसका विश्वास खुद कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं को नहीं है.

एक जमाना होता था जब बहुजन समाज पार्टी के विधायकों को बिकाऊ माना जाता था.अगर बीएसपी के विधायकों के सहयोग से सरकार बनने की गुंजाइश होती थी, तो बीएसपी स्वयं समर्थन दे देती थी या फिर उसके विधायक टूट जाते थे. बीएसपी के बारे में यह विख्यात रहा है कि पार्टी में पैसे ले कर टिकट दिया जाता था. अब जिसने टिकट लेने में पूंजी निवेश की है उसे उसका फायदा तो चाहिए ही ना. अब यह रोल कांग्रेस पार्टी अदा कर रही है, हालांकि कांग्रेस पार्टी पर अभी तक पैसे ले कर टिकट देने का आरोप नहीं है. पर पार्टी के विधायक अब आसानी से टूट जाते हैं.

इसके पीछे कारण क्या है, वह कांग्रेस पार्टी ही जाने. जब 2017 के चुनाव के बाद गोवा में कांग्रेस पार्टी के कुछ विधायक बीजेपी में शामिल हुए तो पार्टी के नेताओं ने आरोप लगाया कि उन्हें तीन करोड़ रुपये दे कर तोड़ा गया था. यानि कांग्रेस पार्टी ने मान ली थी की उसके विधायक बिकाऊ होते हैं.

ज्यादातर प्रदेशों में टूट रहे हैं कांग्रेस के विधायक
गोवा या मणिपुर ही ऐसे राज्य नहीं थे, जहां कांग्रेस पार्टी का साथ उसके विधायकों ने छोड़ दिया. फिलहाल चार ऐसे राज्य हैं जहां बीजेपी चुनाव नहीं जीत पायी थी, पर सरकार बीजेपी की चल रही है. कर्णाटक में बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस पार्टी ने जनता दल (सेकुलर) को समर्थन दिया.

2018 के चुनाव में 224 सदस्यों वाली विधानसभा में बीजेपी के 104, कांग्रेस पार्टी के 80 और जेडीएस के 37 विधायक चुने गए थे. लोकतंत्र का मखौल उड़ाते हुए कांग्रेस ने उस पार्टी के नेता को मुख्यमंत्री बना दिया, जिसके मात्र 37 विधायक थे. एच.डी. कुमारस्वामी की सरकार सिर्फ 14 महीने चली और जेडीएस तथा कांग्रेस के 16 विधायक टूट कर बीजेपी में शामिल हो गए, राज्य में बीजेपी की सरकार बन गयी जो अभी भी चल रही है.

मध्य प्रदेश में 2018 में विधानसभा चुनाव हुआ. 203 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस पार्टी के 114 और बीजेपी के 104 विधायक चुन कर आए, कांग्रेस की सरकार बनी और मात्र 15 महीने ही चल पाई, क्योंकि कांग्रेस पार्टी के 27 विधायक पार्टी छोड़ कर बीजेपी में शामिल हो गए और प्रदेश में बीजेपी की सरकार बन गयी.

गोवा विधानसभा चुनावों (Goa Assembly Elections) से पहले कांग्रेस (Congress) को बड़ा झटका लगा है. सबसे लंबे समय तक विधायक और पूर्व सीएम रहे कांग्रेस के दिग्‍गज नेता प्रताप सिंह राणे (Pratap Singh Rane) ने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है. राणे ने कहा है कि चुनाव न लड़ने का निर्णय उनका निजी फैसला है और अब वह रिटायर हो रहे हैं. उन्‍होंने कहा कि वह हमेशा पार्टी कार्यकर्ता की तरह पार्टी के साथ और पार्टी के लिए काम करते रहेंगे. प्रताप सिंह राणे के इस तरह चुनाव नहीं लड़ने के फैसले ने कांग्रेस को संकट में डाल दिया है. राणे गोवा में छह बार मुख्‍यमंत्री रह चुके हैं और कभी चुनाव नहीं हारे हैं. राणे 1972 से गोवा के पोरीम विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, उस समय से जब गोवा एक केंद्र शासित प्रदेश था और इस निर्वाचन क्षेत्र को सत्तारी के नाम से जाना जाता था.

बीजेपी के साथ-साथ अन्य दल भी लगा रहे हैं कांग्रेस में सेंध
ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ बीजेपी ही कांग्रेस पार्टी के विधायकों को तोड़ने में सफल रही है. तृणमूल कांग्रेस ने गोवा में चुनाव पूर्व कांग्रेस के दो विधायकों को पार्टी में शामिल किया और मेघालय में 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के 21 विधायक चुने गए थे और अब पार्टी में मात्र 5 विधायक रह गए हैं. चार विधायकों ने पहले ही कांग्रेस पार्टी को छोड़ दिया था और नवम्बर के महीने में बचे हुए 17 विधायकों में से 12 तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए.

अब समस्या और भी गंभीर होती जा रही है. चुनाव पूर्व विधायक या नेता एक पार्टी से दूसरी पार्टी में शामिल होते ही रहते हैं, पर इस बार कुछ अलग ही नज़ारा दिख रहा है. कांग्रेस पार्टी जिन्हें टिकट दे रही है, वह प्रत्याशी टिकट लेकर भी अन्य दलों में शामिल हो रहे हैं या चुनाव लड़ने से मना कर रहे हैं.

एक तो कांग्रेस पार्टी का 2014 से बुरा समय चल ही रहा है, ऊपर से अगर उसके चुने हुए विधायक दूसरे दलों में शामिल होने लगे तो फिर पार्टी के पास इसके सिवा कि वह ईश्वर को याद करे, उसकी शरण में जाए और ईश्वर की शपथ अपने नेताओं को दे, बचा ही क्या है. बुरे समय में हर व्यक्ति ईश्वर को याद करता है और जब एक पार्टी ही ईश्वर को याद करने लगे तो फिर साफ़ हो जाता है कि उस पार्टी की क्या मनोदशा है.

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