चाइना बॉर्डर पर 45 साल बाद हिंसक झड़प

भारत-चीन सीमा विवाद अब बड़े तनाव में तब्दील होता जा रहा है। सोमवार रात लद्दाख की गालवन वैली में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हो गई। इसमें भारत के एक कर्नल और दो जवान शहीद हो गए। जो कर्नल शहीद हुए, वे इन्फैंट्री बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर थे।

भारत-चीन सीमा पर 45 साल यानी 1975 के बाद ऐसे हालात बने हैं, जब भारत के जवानों की शहादत हुई है। इस बार कोई गोली नहीं चली। सैनिकों के बीच पथराव हुआ। डंडों से एकदूसरे पर हमला किया गया। भारतीय जवानों की जवाबी कार्रवाई में चीन के 5 सैनिक मारे गए हैं और 11 जवान घायल हुए हैं। चीन के अखबार द ग्लोबल टाइम्स ने ही इसे कन्फर्म किया है।

सूत्रों के मुताबिक चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि भारत एकतरफा कार्रवाई न करे, नहीं तो मुश्किलें बढ़ेंगी। वहीं, चीन के अखबार द ग्लोबल टाइम्स ने चीन के विदेश मंत्रालय के हवाले से बताया कि बॉर्डर पर दोनों देशों के बीच रजामंदी बनी थी, लेकिन भारतीय जवानों ने इसे तोड़ दिया और बॉर्डर क्रॉस किया। इसके बाद चीन के सैनिकों पर हमला किया। इसी वजह से हिंसक झड़प हुई।

वहीँ दूसरी तरफ आर्मी की तरफ से जारी बयान में कहा गया, ‘‘कल यानी सोमवार रात को गालवन वैली में डी-एक्स्केलेशन प्रोसेस चल रही थी, लेकिन तभी हिंसा हो गई। हमारे एक अफसर और दो जवान शहीद हो गए। अभी दोनों देशों की सेनाओं के सीनियर ऑफिसर तनाव कम करने के लिए मौके पर ही मीटिंग कर रहे हैं।’’

थोड़ी देर बाद सेना ने दोबारा बयान जारी कर कहा कि हिंसक झड़प में दोनों तरफ के सैनिकों की जान गई है। सेना के सूत्रों ने कहा कि दोनों देशों के बीच अब मेजर जनरल लेवल की बातचीत चल रही है।

इसी संवेदनशील मुद्दे पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत, तीनों सेनाओं के चीफ और विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ मीटिंग की।

आपको बताते चलें कि 20 अक्टूबर 1975 को अरुणाचल प्रदेश के तुलुंग ला में असम राइफल की पैट्रोलिंग पार्टी पर एम्बुश लगाकर हमला किया था। इसमें भारत के 4 जवान शहीद हुए थे।

दोनों देशों के बीच 41 दिन से सीमा पर तनाव है। इसकी शुरुआत 5 मई से हुई थी। इसके बाद दोनों देशों की सेनाओं के बीच जून में ही चार बार बातचीत हो चुकी है। बातचीत में दोनों देशों की सेनाओं के बीच रजामंदी बनी थी कि बॉर्डर पर तनाव कम किया जाए या डी-एक्स्केलेशन किया जाए। डी-एक्स्केलेशन के तहत दोनों देशों की सेनाएं विवाद वाले इलाकों से पीछे हट रही थीं।

पूर्व डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) विनोद भाटिया बताते हैं कि दोनों ओर के सैनिकों के बीच ये हिंसक झड़प और उसमें एक कर्नल और दो जवानों की शहादत बेहद चिंता की बात है। दोनों ही पक्षों को आपस में मिल-बैठकर हालात को तुरंत काबू में लाना होगा। यह हिंसक झड़प बताती है कि हालात बेहद तनावपूर्ण हैं। इसे हल्के में न लिया जाए।

1962 की जंग के बाद 11 सितंबर 1967 को सिक्किम के नाथू-ला में भारत और चीन के बीच हिंसक झड़प हुई थी। उसके बाद 15 सितंबर 1967 को भी झड़प हुई। विवाद अक्टूबर 1967 में जाकर थमा था। चीन ने तब दावा किया था कि भारत के 65 सैनिक शहीद हुए थे। वहीं, चो ला झड़प में भारत के 36 जवान शहीद हुए थे।अनुमान है कि पूरे टकराव के दौरान 400 चीनी सैनिकों की भी मौत हुई थी।

भारत चीन सीमा विवाद काफी पहले से चला आ रहा है। दोनों देशों के बीच यूं तो लंबी पर्वतमाला है, लेकिन जिस जिस क्षेत्र को लेकर विवाद है, उसका आकार आठ उंगलियों जैसा है। इसी वजह से उसे 8 फिंगर्स कहते हैं। पढ़ने में आपको कुछ अजीब लग रहा होगा कि सीमा पर उंगलियों का क्या मतलब है? आइए हम आपको बताते हैं…
क्या है आठ फिंगर्स का विवाद?
पैंगोंग झील के बारे में आप में से अधिकतर लोग जानते ही होंगे। आपको बता दें कि करीब 14,500 फीट की ऊंची पहाड़ी पर मौजूद पैंगोंग झील के पास आठ पहाड़ियां हैं जो कि हाथ की उंगलियों के आकार की हैं और सीमा विवाद फिंगर 4 से लेकर फिंगर 8 तक है, क्योंकि भारतीय सेना के कब्जे में फिंगर 4 तक का इलाका है, जबकि फिंगर 4 से फिंगर 8 तक इलाका दोनों सेनाओं का पेट्रोलिंग इलाका है।

चीन ने फिंगर 4 तक अपनी सड़क बना ली है, जबकि झील के किनारे पर भारतीय सेना का बेस कैंप है जहां पर सैनिकों की तैनाती है। फिंगर 4 से भारतीय सेना फिंगर 8 तक पैदल गश्त करती है। पांच मई के बाद से चीन की सेना फिंगर 4 पर आ गई है और अब वह भारतीय सेना को फिंगर 8 तक जाने नहीं दे रही है। चीन फिंगर 4 के आगे जाना चाहता है। 

भारतीय सेना पहले की तरह फिंगर 8 तक गश्त लगाना चाहती है लेकिन चीन को इस पर आपत्ति होने लगी है। इस वक्त भारतीय सेना, चीनी सेना को किसी भी कीमत पर फिंगर 4 से आगे बढ़ने नहीं दे रही है। भारतीय सेना चाहती है कि चीन पहले की तरह फिंगर 8 तक ही रहे।

अब सवाल यह है कि आखिर चीन फिंगर 4 से अंदर क्यों आना चाह रहा है। जानकारों के मुताबिक चीन की सेना को पैंगोंग के दक्षिण से उत्तरी इलाके में आने-जाने में एक लंबा सफर तय करना पड़ता है। ऐसे में चीन चाहता है कि भारत पीछे हट जाए और उसे रास्ता मिल जाए, लेकिन वास्तव में ऐसा होने वाला नहीं है।

कैसी है पैंगोंग झील?
इस झील का पूरा नाम पैंगोंगे त्सो है जो 134 किलोमीटर लंबी है। यह झील हिमालय में करीब 14,000 फुट से ज्यादा की ऊंचाई पर स्थित है। इस झील का 45 किलोमीटर क्षेत्र भारत में पड़ता है, जबकि 90 किलोमीटर क्षेत्र चीन में आता है। बता दें कि इसी झील के किनारे बॉलीवुड फिल्म थ्री इडियट्स की शूटिंग हुई थी।

वास्तविक नियंत्रण रेखा इस झील के बीच से गुजरती है। कहा जाता है कि पश्चिमी सेक्टर में चीन की तरफ से अतिक्रमण के एक तिहाई मामले इसी पैंगोंग त्सो झील के पास होते हैं। इसकी वजह ये है कि इस क्षेत्र में दोनों देशों के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर सहमति नहीं है।

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