बिहार में SIR पर बवाल, मतदाता परेशान, बंद का ऐलान… आखिर कहां तक पहुंची वोटर लिस्ट की जांच?

बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के कारण राजनीतिक घमासान मचा हुआ है. विपक्षी दलों ने इसे चुनावी साजिश बताते हुए भाजपा पर आरोप लगाया है. कांग्रेस और आरजेडी ने लगभग दो करोड़ मतदाताओं के नाम हटाए जाने का आरोप लगाया है और नौ जुलाई को बिहार बंद का आह्वान किया है. सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर की गई है. इस बवाल के बीच जानें SIR का क्या हाल है?

बिहार चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने एक जुलाई से मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) का अभियान शुरू किया है. चुनाव आयोग के अभियान शुरू करने के ऐलान के दिन से ही केवल बिहार की विपक्षी पार्टियां ही नहीं, बल्कि अन्य राज्यों की भाजपा विरोधी पार्टियों ने इसे लेकर हमला बोलना शुरू कर दिया है. कांग्रेस और आरजेडी जैसी पार्टियां ने इसे चुनावी साजिश करार देते हुए चुनाव आयोग और भाजपा की मिलीभगत करार दिया है और आरोप लगाया है। कि लगभग दो करोड़ पिछड़े और वंचित मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से काटने की साजिश है.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसकी तुलना एनआरसी से करते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया, वहीं टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.

दूसरी ओर, विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर विपक्षी पार्टियों के साथ-साथ एनडीए के नेताओं में भी असंतोष है. राष्ट्रीय लोक मोर्चा के नेता उपेंद्र कुशवाहा ने विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर असंतोष जताया है और प्रवासी बिहारियों को लेकर चिंता जताते हुए इस पर पुनर्विचार की मांग की है.

सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल

इस बीच, विशेष गहन पुनरीक्षण के खिलाफ कांग्रेस और टीएमसी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपनी जनहित याचिका में कहा कि चुनाव आयोग का यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1)(a), 325 और 328 का उल्लंघन है. उन्होंने दावा किया कि इस प्रक्रिया से लाखों लोगों को मताधिकार से वंचित किया जा सकता है, जिससे लोकतंत्र और स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया पर गंभीर खतरा पैदा होगा.

9 जुलाई को बिहार बंद का ऐलान

इस बीच, महागठबंधन ने चुनाव आयोग के इस फैसले का विरोध किया है. पहले पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने और फिर बाद में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने मुद्दे को लेकर राज्यव्यापी आंदोलन का ऐलान किया है. उन्होंने 9 जुलाई को बिहार बंद और चुनाव आयोग कार्यालय का घेराव करने की चेतावनी दी है. इसके साथ ही आरजेडी और महागठबंधन की पार्टियों ने इसके खिलाफ आंदोलन तेज कर दिया है.

नरम पड़ा चुनाव आयोग, दस्तावेज जरूरी नहीं

सियासी घमासान के बीच बिहार के मुख्य निर्वाचन कार्यालय ने रविवार (6 जुलाई) को सभी प्रमुख अखबारों में विज्ञापन जारी कर मतदाताओं को राहत देने की कोशिश की. विज्ञापन में कहा गया है कि मतदाता बिना आवश्यक दस्तावेजों के भी अपने नाम का सत्यापन करा सकते हैं. चुनाव आयोग ने कहा कि यदि मतदाता दस्तावेज उपलब्ध नहीं करा पाते हैं तो निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी (ERO) स्थानीय जांच या वैकल्पिक प्रमाणों के आधार पर निर्णय ले सकते हैं.

राज्य में क्या है SIR का हाल?

चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, बिहार के 7.89 करोड़ मतदाताओं में से 7.38 करोड़ को गणना फॉर्म वितरित किए गए हैं. हालांकि, पहले 6 दिनों में इनमें से सिर्फ 14% यानी 23.9 लाख फॉर्म ही अपलोड किए जा सके हैं.

बीएलओ (बूथ स्तर अधिकारी) द्वारा सबसे अधिक फॉर्म वैशाली (1.76 लाख), पटना (1.61 लाख), पूर्वी चंपारण (1.43 लाख), नालंदा (1.32 लाख) और समस्तीपुर (1.03 लाख) में जमा किए गए. वहीं, सबसे कम सबमिशन लखीसराय (4,132), बक्सर, कैमूर, मुंगेर और शिवहर में दर्ज हुए.

मतदाता-स्वयं द्वारा अपलोड किए गए फॉर्म में पटना सबसे आगे (8,348 फॉर्म) रहा, उसके बाद गोपालगंज, मधुबनी, नालंदा और मुजफ्फरपुर का स्थान रहा.

77,000 से अधिक बीएलओ अभियान में तैनात

राज्य में 77,895 बीएलओ घर-घर जाकर मतदाताओं की जानकारी इकट्ठा कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त 20,000 से अधिक बीएलओ और 4 लाख स्वयंसेवकों को इस कार्य में लगाया गया है, जिनमें सरकारी कर्मचारी, एनसीसी कैडेट्स और एनएसएस सदस्य शामिल हैं.

बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी विनोद सिंह गुंजियाल का कहना है कि अभियान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी पात्र मतदाता सूची से वंचित न रह जाए। उन्होंने कहा कि सभी जिलों में निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों, सहायक अधिकारियों और जिला निर्वाचन अधिकारियों की सक्रिय भागीदारी से यह काम समय पर पूरा किया जाएगा.

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