गोल्डन मैन (बप्पी दा) मना रहे हैं आज अपना 67वां जन्मदिन

पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर में 27 नवंबर 1952 को जन्में बप्पी का मूल नाम आलोकेश लाहिरी था। उनका रूझान बचपन से ही संगीत की ओर था। उनके पिता अपरेश लाहिरी बंगाली गायक थे जबकि मां वनसरी लाहिरी संगीतकार और गायिका थीं। माता-पिता ने संगीत के प्रति बढ़ते रूझान को देख लिया और इस राह पर चलने के लिये प्रेरित किया।

हिंदी फिल्म में बप्पी लाहिरी उन गिने चुने संगीतकारों में शुमार किये जाते है जिन्होंने ताल वाद्ययंत्रों के प्रयोग के साथ फिल्मी संगीत में पश्चिमी संगीत का समिश्रण करके बाकायदा ‘डिस्को थेक’ की एक नयी शैली ही विकसित कर दी। अपने इस नए प्रयोग की वजह से बप्पी को करियर के शुरूआती दौर में काफी आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा लेकिन बाद में श्रोताओं ने उनके संगीत को काफी सराहा और वह फिल्म इंडस्ट्री में ‘डिस्को किंग’ के रूप में विख्यात हो गये।

बचपन से ही बप्पी यह सपना देखा करते थें कि संगीत के क्षेत्र में वह अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर सकें। महज तीन वर्ष की उम्र से ही बप्पी लाहिरी ने तबला बजाने की शिक्षा हासिल करनी शुरू कर दी। इस बीच उन्होंने अपने माता-पिता से संगीत की प्रारंभिक शिक्षा भी हासिल की।

बप्पी की किस्मत का सितारा वर्ष 1975 में प्रदर्शित फिल्म ‘जख्मी’ से चमका। सुनील दत्त, आशा पारेख, रीना रॉय और राकेश रौशन की मुख्य भूमिका वाली इस फिल्म में ..आओ तुम्हे चांद पे ले जाये..और ..जलता है जिया मेरा भीगी भीगी रातो में ..जैसे गीत लोकप्रिय हुये लेकिन ..जख्मी दिलों का बदला चुकाने ..आज भी होली गीतों में विशिष्ट स्थान रखता है।

वर्ष 1976 में बप्पी लाहिरी के संगीत निर्देशित में बनी एक और सुपरहिट फिल्म ‘चलते-चलते’ प्रदर्शित हुयी। फिल्म में किशोर कुमार की आवाज में ..चलते चलते मेरे ये गीत याद रखना ..आज भी श्रोताओं में बीच अपनी अपनी अमिट पहचान बनाये हुये है। फिल्म जख्मी और चलते चलते की सफलता के बाद बप्पी बतौर संगीतकार अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गये।

वर्ष 1982 में प्रदर्शित फिल्म ‘नमक हलाल’ बप्पी के करियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में शुमार की जाती है। प्रकाश मेहरा के निर्देशन में बनी इस फिल्म में सुपर स्टार अमिताभ बच्चन ने मुख्य भूमिका निभाई थी। फिल्म में किशोर कुमार की आवाज में बप्पी का संगीबतद्ध यह गीत ..पग घुंघरू बांध मीरा नाची थी ..उन दिनों श्रोताओं में क्रेज बन गया था और आज भी जब कभी सुनाई देता है तो लोग थिरकने पर मजबूर हो उठते है।

वर्ष 1983 में प्रदर्शित फिल्म ‘डिस्को डांसर’ बप्पी के करियर के लिये मील का पत्थर साबित हुयी। बी.सुभाष के निर्देशन में मिथुन चक्रवर्ती की मुख्य भूमिका वाली इस फिल्म में बप्पी के संगीत का नया अंदाज देखने को मिला। …आइ.एम.ए डिस्को डांसर… …जिमी जिमी जिमी आजा आजा.. जैसे डिस्कों गीत ने श्रोताओं को झूमने पर विवश कर दिया। फिल्म में अपने संगीतबद्ध गीत की सफलता के बाद बप्पी डिस्को किंग के रूप में मशहूर हो गये।

वर्ष 1984 में बप्पी के सिने कैरियर की एक और सुपरहिट फिल्म ‘शराबी’ प्रदर्शित हुयी। इस फिल्म में उन्हें एक बार फिर से निर्माता प्रकाश मेहरा और सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के साथ काम करने का अवसर मिला। फिल्म में अपने संगीतबद्ध सुपरहिट गीत …दे दे प्यार दे… …मंजिले अपनी जगह है …के जरिये बप्पी ने श्रोताओं को अपना दीवाना बना दिया।वह कैरियर में पहली बार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित भी किये गये।

नब्बे के दशक में बप्पी की फिल्मों को अपेक्षित सफलता नही मिली। हालांकि वर्ष 1993 में आंखे और दलाल के जरिये उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में वापसी की लेकिन इसके बाद उनकी फिल्मों को अधिक कामयाबी नही मिल सकी। बप्पी ने कई फिल्मों में अपने पार्श्वगायन से भी श्रोताओं को अपना दीवाना बनाया है। बप्पी को फिल्म इंडस्ट्री में आये हुये साढ़े चार दशक हो चुके हैं।

बतौर संगीतकार बप्पी ने अपने कैरियर की शुरूआती वर्ष 1972 में प्रदर्शित बंग्ला फिल्म ‘दादू’ से की लेकिन फिल्म टिकट खिड़की पर नाकामयाब साबित हुयी। अपने सपनों को साकार करने के लिये बप्पी ने मुंबई का रूख किया। वर्ष 1973 में प्रदर्शित फिल्म ‘नन्हा शिकारी’ बतौर संगीतकार उनके करियर की पहली हिंदी फिल्म थी लेकिन दुर्भाग्य से यह फिल्म भी टिकट खिड़की पर नकार दी गयी।

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