Haryanvi culture

हरियाणा के बहुओं का कैसे बदल गया चौका-चूल्हा और रहन-सहन, जानिए क्या है मामला

समय कैसे बदल जाता है कुछ कहां नहीं जा सकता। कुछ साल पहले तक जब Haryana में लिंगानुपात पूरी तरह से गिरा हुआ था… और लड़कियों को जन्म लेने से पहले ही कोख में मार दिया जाता था, तब यहां के लड़कों की सबसे बड़ी चिंता थी कि उनकी शादियां कैसे होंगी? अपने घरों में लड़कियों को पैदा होने देने से बेहतर इन लोगों ने दूसरे राज्यों की लड़कियां खरीदकर लाना ज्यादा फायदेमंद समझा। प्रदेश में हाल-फिलहाल एक लाख 35 हजार लड़कियां ऐसी हैं, जो पश्चिम बंगाल, असम, केरल, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड से खरीदकर लाई गई। कुछ लड़कियां सीधे खरीदी गई तो कुछ दिल्ली के रास्ते हरियाणा पहुंची।

मजबूरी, गरीबी या अनाड़ीपन… कारण चाहे जो भी रहा हो, यह लड़कियां Haryana तो पहुंच गई, लेकिन बड़ा सवाल यह पैदा हो रहा कि क्या इन लड़कियों ने यहां की संस्कृति, रहन-सहन और पहनावे में खुद को ढाल लिया? उन्हें शुरू में हरियाणवी चौका-चूल्हा समझने में काफी दिक्कत आई, मगर अब उन्होंने रसोई को कुछ इस तरह संभाला कि बाजरे की रोटी और सरसों के साग या चने की दाल के स्थान पर हरियाणवी लोगों की रसोई में अब दही-बड़ा, फिश करी, केले की सब्जी, बड़ा-पाव, इडली, सांभर, दही के कटलेट, नारियल की चटनी और डोसे की डिश भी बनाने लगी है।

पंजाब से अलग होने के बाद से हरियाणा में लड़कियों का संकट रहा है। दक्षिण Haryana खासकर मेवात (नूंह) इलाके के अधिकतर सैन्य कर्मियों की ड्यूटी पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, सिक्किम और दूरदराज के राज्यों में रहती थी। शुरू में वहां से 18 से 20 हजार रुपये में लड़कियां खरीदकर लाई गई।

गुरुग्राम के फर्रूखनगर ब्लाक में 82 साल की एक महिला पश्चिम बंगाल की रहने वाली है। अब वह पूरी तरह से हरियाणवी संस्कृति में रच-बस गई। एक दौर वह भी चला, जब दिल्ली के साथ लगते Haryana के जिलों के जाति विशेष के लोग जीबी रोड पर मौज मस्ती के लिए जाने लगे। यह एरिया गांवों में पापुलर हो गया। जीबी रोड पर सक्रिय दलालों ने जब महसूस किया कि Haryana के कम और ज्यादा दोनों उम्र के लोग यहां सबसे अधिक संख्या में आ रहे हैं तो इन दलालों ने उन्हें मोल की बहू की पेशकश की।


दिल्ली के रास्ते Haryana पहुंची इन लड़कियों में क्रिश्चियन लड़कियां ज्यादा थी, जो केरल और मिजोरम से ज्यादा ताल्लुक रखती थी। उस समय इन लड़कियों की कीमत 70 से 80 हजार रुपये थी। तीसरा दौर ऐसा आया, जब बिहार और उत्तर प्रदेश के मजदूरों ने हरियाणा-पंजाब में काम शुरू किया तो वह यहां के लोगों की दिक्कत समझ गए। मध्यप्रदेश के शिवपुरी एरिया में तो बकायदा लड़कियों का मेला लगता था। यहां खरीदकर लाई गई ल़ड़कियों को मोल की बहु और पारो बोला जाने लगा। मेवात में दक्षिण भारत की सबसे ज्यादा लड़कियां हैं, जिन्हें अब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी हिंदू धर्म में वापस लौटाने की जबरदस्त मुहिम में जुटा हुआ है।


गुरुग्राम के फर्रूखनगर ब्लाक के गांव खरकड़ी में शादियों के रजिस्ट्रेशन के लिए जागरूकता मुहिम। सेल्फी विद डाटर फाउंडेशन के संयोजक सुनील जागलान के साथ महिलाएं। – फोटो फाउंडेशन

बाहरी राज्यों से जितनी भी लड़कियां या महिलाएं हरियाणा आई, उनमें से अधिकतर ने अब यहां घर बसा लिए। खास बात यह है कि यह औरतें परदा नहीं करती, जबकि हरियाणवी महिलाएं पहले दिन से परदा करती रही हैं। सेल्फी विद डाटर फाउंडेशन के संयोजक सुनील जागलान ने पिछले दिनों विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों के जरिये पूरे प्रदेश के ग्रामीण व शहरी इलाकों में जो सर्वे कराया, उसके मुताबिक एक लाख 35 हजार लड़कियों दूसरे राज्यों की Haryana में बहुएं बनकर रह रही हैं। इनमें से अधिकतर अब एडजेस्ट हो चुकी हैं, लेकिन लिंग अनुपात में सुधार के बाद से अब इक्का-दुक्का केस को छोड़कर बाहरी राज्यों की लड़कियां कम ही यहां पहुंच रही हैं। अब प्रदेश के रहन-सहन, खान-पान, संस्कृति, अनुभव, सोच, सामाजिक दायरे तथा लड़कियों के प्रति सम्मान के नजरिये में काफी हद तक बदलाव आया है।
अब लुटेरी बहुओं से सावधान रहने की जरूरत

Haryana में पिछले 3-4 साल से लुटेरी बहुएं सक्रिय हो गई हैं। यह वे बहुएं हैं, जो दलालों के जरिये पूरे सिस्टम के साथ Haryana आती हैं। यदि कोई बहू एक लाख रुपये में खरीदकर लाई गई तो समझो कि वह एक माह से ज्यादा टिकने वाली नहीं है। उसके सिस्टम में शामिल लोग या खुद बहू पुलिस में रिपोर्ट कर देगी कि उसे तंग किया जा रहा है। जो बहू 2 से 3 लाख रुपये में खरीदकर लाई गई है, वह जरूर कुछ समय तक टिक सकती है, लेकिन Haryana से इस प्रवृत्ति को पूरी तरह से खत्म करने के लिए अब सामाजिक संगठनों के साथ-साथ सरकार भी सक्रिय है। इंटेलीजेंस विंग को सक्रिय किया जा रहा है।
परदेसी बहू-म्हारी शान अभियान से मिलेगा सम्मान

हरियाणा की राजनीतिक राजधानी माने जाने वाले जींद जिले की 48 वर्षीय संतरा देवी और 32 वर्षीय नीतू की कहानी एक समान है। एक को वर्षों पहले संपत्ति विवाद सुलझाने के लिए पश्चिम बंगाल से 20 हजार रुपये में खरीदकर लाया गया था और दूसरी को एक नौजवान एक लाख 60 हजार रुपये में खरीदकर लाया। अब दोनों का घर Haryana है और अंतिम समय तक यहीं रहेंगी।
सेल्फी विद डाटर फाउंडेशन ने जुलाई 2017 जुलाई से 2019 तक दिल्ली, पंजाब व Haryana के कई विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों द्वारा कराए गए सर्वे में पता लगाया कि यह महिलाएं संस्कृति, खान-पान, वेशभूषा अलग होने के बावजूद करीब डेढ़ लाख परिवारों का घर आबाद किए हुए हैं। दूसरे प्रदेशों से लाई जाने वाली बहुओं को सम्मान दिलाने के लिए संस्था ने परदेसी बहू-म्हारी शान अभियान शुरू किया है जिससे मोल की बहू और भगोड़ी बहुओं का कलंक इन पर से हटाया जा सके।
अंतरजातीय शादियों को भी मिल रहा बढ़ावा

सेल्फी विद डॉटर फांउडेशन के संचालक एवं बीबीपुर गांव के पूर्व सरपंच सुनील जागलान के अनुसार इन शादियों का एक नया पहलू है कि इनमें से ज्यादातर शादियां अंतरजातीय हैं और दूसरे राज्यों से दलित लड़कियों की शादियां Haryana की बड़़ी संख्या स्वर्णों अथवा अगड़ों में हो रही हैं। अनजाने में ही सही यह शादियां जाति प्रथा को तोड़ने में महत्वपूर्ण काम कर रही हैं। इन शादियों का पंजीकरण बेहद जरूरी है। मैरिज रजिस्ट्रेशन कर उसे आधार कार्ड से जोड़ा जाए, ताकि कोई व्यक्ति धोखे को शिकार न हो सके।

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