वाजपेयी ने पासवान से क्यों कहा- ब्राह्मणों के बहुत खिलाफ हैं आप

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के समय से ही पिछड़ों को सरकारी नौकरी में आरक्षण देने की कोशिशें हो रही थीं। लेकिन इस दिशा में काफी दिनों तक कोी सफलता हाथ नहीं लगी थी। आरक्षण को लेकर जिस काका कालेकर आयोग को नेहरू ने गठित किया था, उसकी रिपोर्ट भी ठंडे बस्ते में चली गई थी। प्रधानमंत्री बनने के बाद 1979 में मोरारजी देसाई ने इसी मुद्दे पर वीपी मंडल की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया। मोरारजी की सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं टिक सकी। इसके बाद कई सरकारों ने इसको लेकर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। हालांकि रामविलास पासवान ने इस मुद्दे को कई बार संसद में उठाया।

रामविलास पासवान की जीवनी (रामविलास पासवान- संकल्प, साहस और संघर्ष) के मुताबिक, रामविलास के प्रस्ताव पर जब 11 और 12 अगस्त 1982 को मंडल आयोग की रिपोर्ट पर लोकसभा मे चर्चा हुई तो बहस करीब 18 घंटे तक चली। पासवान दोनों दिन बोले। अपने भाषण के दौरान उन्होंने ब्राह्मणवाद के खिलाफ जमकर बोला।

पहले दिन रामविलास पासवान को इस मुद्दे पर बोलने का पूरा समय नहीं मिलने पर स्पीकर ने उन्हें दूसरे दिन भी बोलने का मौका दिया। रामविलास पासवान ने जब सदन में मंडल आयोग की रिपोर्ट पर अपना भाषण खत्म कर लिया तो बगल में बैठे अटल बिहारी वाजपेयी न धीरे से पासवान से मजाकिया लहजे में कहा, ‘पासवान जी ब्राह्मणों के बहुत खिलाफ हैं आप।’

पासवान के लिए मंडल आयोग की सिफारिशों को पास कराना आसान नहीं था। कई अडंगे आए। किताब में दावा किया गया है कि अधिकारियों की तरफ से भी अवरोध खड़ा किया गया। संवैधानिक मामला उठाया गया। कहा गया कि अदालत में यह नहीं टिक पाएगा। कैबिनेट और पार्टी स्तर पर भाजपा और जनता दल के कुछ नेताओं को सवर्णों का वोट छिटकने का डर था। कुछ को इस बात की चिंता सता रही थी कि जाट, पटेल, गूजर जैसी छोटी जातियों को शामिल नहीं किया गया तो वे जनता दल से छिटक जाएंगे।

आपको बता दें कि मंडल ने अपनी रिपोर्ट में करीब 3900 जातियों को पिछड़े वर्ग में रखा था। वहीं, काका कालेकर की रिपोर्ट में 2900 जातियों को इस श्रेणी में रखा गया था। इस मामले में राज्यो से भी लिस्ट मंगाई गई। बिहार, आंध्र प्रदेश, केरल जैसे कुछ राज्यों में पिछड़ों के लिए आरक्षण की व्यवस्था पहले से ही थी। इसलिए इन राज्यों को लिस्ट देने में कोई दिक्कत नहीं थी। हालांकि कुछ राज्य ऐसी भी थे, जिन्होंने पिछड़ों की लिस्ट तैयार ही नहीं की थी।

आपको बता दें कि रामविलास पासवान की इस जीवनी को वरिष्ठ पत्रकार और लेखक प्रदीप श्रीवास्तव ने लिखा है और इसका प्रकाशन पेंगुइन(हिंद पॉकेट बुक्स) ने किया है।

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