बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह ने साफ संदेश देते हुए कहा था कि बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए चुनाव लड़ा जायेगा । इसका परिणाम यह हुआ कि बिहार के नेताओं को नीतीश कुमार का नेतृत्व रास आ गया है । दोनों पार्टियों की तरफ से विवादित और तनाव भरे बयान आने भी कम हो गए । लेकिन उपचुनाव के नतीजों में जेडीयू की करारी हार होने के बाद सियासत का रुख अब कुछ बदला बदला लग रहा है । जिसकी शुरुआत बीजेपी के विधान पार्षद टुन्ना पांडे ने कर दी है और नैतिकता के आधार पर सीएम नीतीश कुमार से इस्तीफे की मांग कर दी है । वहीं, तेजस्वी यादव के लिए कुछ अच्छे संकेत भी सामनेआ रहे हैं. साफ़ है बिहार की सियासत में ये तो अभी शुरुआत है । आने वाले समय में कई और बड़े परिवर्तन होंगे जो बिहार की सियासत की दशा-दिशा दोनों ही तय करेंगे ।
नीतीश कुमार पर बढ़ जाएगा दबाव
अमित शाह के बयान के बाद लग रहा था कि जेडीयू-बीजेपी के बीच अब सब ठीक हो गया है, लेकिन उपचुनाव के परिणाम के बाद अब साफ़ है कि बिहार में बड़ा भाई बने रहने पर जेडीयू की ख्वाहिश को झटका लगेगा । 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश भी सीटों के बंटवारे के दौरान सियासी मोलभाव करने से बचना चाहेगे और बीजेपी बारगेनिंग की स्थिति में रहेगी । ये भी संभव है कि जिस तरह का फॉर्मूला लोकसभा चुनाव में प्रयोग किया गया था वही आगामी विधानसभा चुनाव में भी लागू हो जाए । ऐसे में इसे जेडीयू के लिए पीछे जाना ही कहा जाएगा ।
तेजस्वी महागठबंधन के सर्वमान्य नेता है
दूसरा बड़ा परिवर्तन बिहार की राजनीति में ये हो सकता है कि नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ही महागठबंधन के नेता बने रहे । जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी जैसे नेताओं का विरोध भी कुंद पड़ने की पूरी संभावना है क्योंकि नाथनगर में मांझी की पार्टी और सिमरी बख्तियारपुर में मुकेश सहनी की पार्टी के उम्मीदवार वोटकटवा साबित हुए, इसके बावजूद आरजेडी ने अच्छा प्रदर्शन किया । वहीं कांग्रेस को भी आरजेडी की शरण में ही रहना पड़ेगा क्योंकि जेडीयू की तरफ से कोई सिग्नल नहीं हैं कि वह बीजेपी से अलग होगी या नहीं ।
हो सकता है सुशील मोदी के लिए खतरा?
17 अक्टूबर को बिहार भाजपा ने पार्टी विरोधी गतिविधियों में मिले होने का आरोप लगाते हुए दरौंदा के कर्णजीत सिंह उर्फ व्यास सिंह को पार्टी से बाहर कर दिया । उपचुनाव के परिणाम जब आए तो पार्टी को अपनी भूल का अहसास भी हुआ कर्णजीत सिंह ने जेडीयू प्रत्याशी अजय सिंह को करारी शिकस्त दी। साफ है इससे भाजपा नेता और बिहार के डिप्टी सीएम सुशील मोदी के निर्णयों पर भी सवाल जरुर उठेंगे क्योंकि ये भी कहा जा रहा है कर्णजीत सिंह को पार्टी से निकलने में उनकी ही भूमिका थी। ऐसे में सुशील मोदी की विश्वसनीयता भाजपा नेतृत्व की नजर में कमजोर पड़ सकती है ।