Bihar By-election: विधानसभा की दो सीटों पर उपचुनाव के बहाने दोनों गठबंधन, एनडीए और महागठबंधन (NDA and Mahagathbandhan) आर-पार की लड़ाई लड़ रहे हैं। उपचुनाव पहले भी हुए हैं। कुछ में तो विपक्ष ने चुनाव लड़ने की महज औपचारिकता निभाई। लेकिन, कुशेश्वरस्थान और तारापुर के उपचुनाव में जीत हासिल करना दोनों पक्षों को जरूरी लग रहा है। तैयारी भी उसी ढंग से हो रही है। मानों चूक हुई तो परेशानी बढ़ जाएगी। मतदान 30 अक्टूबर को है। वोटों की गिनती दो नवंंबर को होगी।
स्थितियां सत्तारूढ़ दल के लिए उपयुक्त
दो स्थितियां सत्तारूढ़ दल के लिए उपयुक्त हैं। एक, आम चुनाव में दोनों पर जदयू (JDU) की जीत हुई थी। दो, अक्सर उप चुनाव में सत्तारूढ़ दल की जीत होती है। इसके बावजूद जदयू चुनाव को बेहद गंभीरता से ले रहा है। कुशेश्वरस्थान में तो जदयू ने अपने दिवंगत विधायक शशिभूषण हजारी के पुत्र को टिकट दे दिया। लेकिन, तारापुर के लिए उसने कई दावेदारों के बीच राजीव कुमार सिंह का चयन किया। राजीव कभी जदयू (JDU) में थे। लेकिन, तीन चुनावों में लगातार बेटिकट होने के चलते अलगाव में चले गए थे। उन्हें मजबूत उम्मीदवार माना जा रहा है।
उम्मीदवारों के चयन जाति प्रमुख घटक है। राजनीतिक दलों ने खुद को जातियों में रखा है। राजनीतिक तौर पर सक्रिय और प्रभावशाली जातियां खास-खास राजनीतिक दलों में बंटी हुई हैं। इस बार राजद ने जाति और उससे जुड़ी पार्टी की प्रचलित मान्यता को तोड़ दिया है। तारापुर में अरुण साह (वैश्य) और कुशेश्वरस्थान में गणेश भारती (मुसहर) को उम्मीदवार बनाया है। अवधारणा के स्तर पर ये दोनों जातियां एनडीए से जुड़ी मानी जाती हैं। हिसाब यह कि उम्मीदवार अपनी जातियों का वोट ले आएं और उसमें राजद के परंंपरागत वोटर जुड़ जाएं तो जीत की संभावना बनेगी। विधानसभा के आम चुनाव में कुछ सीटों पर ऐसा हो चुका है। राजद के पांच विधायक वैश्य बिरादरी के हैं। 2015 के चुनाव में यह संख्या सिर्फ एक थी।
एक दूसरे की कमजोरी का आसरा
तैयारी के बावजूद दोनों गठबंधन को एक दूसरे की कमजोरी का आसरा है। दोनों सीटों पर राजद और कांग्रेस के उम्मीदवार खड़े हैं। उनके बीच समर्थक वोटों का विभाजन हुआ तो जदयू (JDU) की जीत आसान हो जाएगी। राजद और कांग्रेस के बीच सुलह की कोशिश हो रही है। नाम वापस लेने की आखिरी तारीख 13 अक्टूबर है। दोनों सीटों पर महागठबंधन और एनडीए के बीच आमने-सामने की लड़ाई की नौबत आती है तो जीत के लिए एनडीए (NDA ) को अधिक मेहनत करनी होगी।
दोनों पक्षों के लिए जीत क्यों है जरूरी
बिहार विधानसभा की कुल सदस्य संख्या 243 है। साधारण बहुमत के लिए 122 विधायक चाहिए। राजद, कांग्रेस, वाम दल और एमआइएम के विधायकों की संख्या 115 है। विपक्ष की जीत होती है तो उनकी संख्या 117 हो जाएगी। इस संख्या बल से सरकार की सेहत पर फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन, उसके दो सहयोगियों-हिन्दुस्तानी अवामी मोर्चा और वीआइपी का दबाव झेलना उसके लिए मुश्किल हो जाएगा। इनके चार-चार विधायक हैं। ये दोनों एनडीए (NDA ) के प्रति गैर-प्रतिबद्ध रहे हैं। महागठबंधन (Mahagathbandhan) से भी इनकी दोस्ती रही है। जीतनराम मांझी के पुत्र संतोष सुमन राज्य सरकार में मंत्री हैं, वे राजद की मदद से ही विधान परिषद के सदस्य बने थे।