मां सरस्वती की पूजा करने से दूर होती है बाधांए, ज्ञान और बुद्धि की वृद्धि के लिए उठाएं लाभ

बसंत पंचमी (Basant Panchami 2020) का पर्व देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन ज्ञान की देवी मां सरस्वती की पूजा होती है। बसंत पंचमी का सीधा संबंध शिक्षा और ज्ञान से है। एग्जाम का माहौल बन चुका है। बसंत पंचमी का दिन विधार्थियों के लिए खास है।

29 जनवरी 2020 को बसंत पंचमी का पर्व है। कुछ विद्वानों के मुताबिक पंचमी तिथि की शुरुआत 29 जनवरी से हो रही है तो इस दिन बसंत पंचमी मनाई जाएगी। तो वहीं कई जानकारों का मानना है कि 29 जनवरी को पंचमी तिथि की शुरुआत सूर्योदय के एक प्रहर बाद हो रही है जिसके चलते 30 जनवरी को सरस्वती पूजा करना अच्छा रहेगा।

इस दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन से ही बच्चों की पढ़ाई शुरू करने की भी परंपरा है। इस दिन छोटे बच्चों के हाथों में किताबे और पेसिंल थमाई जाती है। मान्यता है कि जिन बच्चों की पढ़ाई बसंत पंचमी के दिन से शुरू होती हैं वे बच्चे पढ़ाई में होशियार बनते हैं। मां सरस्वती की कृपा बनी रहे, इसके लिए इस दिन मां सरस्वती की खास पूजा की जाती है। इस दिन छात्रों को पेन किताबों की भी पूजा करनी चाहिए।

इस दिन सुबह उठकर स्नान करने के बाद मां सरस्वती के चित्र को धूप दिखाएं। सरस्वती वंदना का पाठ करें। इससे बुध की नकारात्मकता जीवन से दूर होगी। एग्जाम को लेकर जिन लोगों में घबराहट और भय की स्थिति बनी रहती है ऐसे लोगों को बसंत पंचमी के दिन सरस्वती माता के चित्र पर पीले फूल चढ़ाने चाहिए। सरस्वती वंदना का पाठ करें।सरस्वती मंत्र का जप करने से भी लाभ मिलता है।

बसंत पंचमी के दिन जो छात्र मां सरस्वती की पूजा अर्चना करते हैं उनपर मां सरस्वती का आर्शीवाद बना रहता है। पढ़ाई में मन लगता है और एकाग्रता बनी रहती है।

बसंत पंचमी पंचांग के अनुसार

बसंत पचंमी आरंभ – 10:45 AM 29 जनवरी
बसंत पचंमी समापन – 01:19 PM 30 जनवरी
बसंत पचंमी पूजा मुहूर्त- 10:45 AM से 12:52 PM तक

सरस्वती मंत्र

सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणी, विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु में सदा

बसंत पंचमी की पौराणिक कथा

सृष्टि के रचियता भगवान ब्रह्मा ने जब सृष्टि की रचना की तो इसमें सभी को स्थान प्रदान किया। सृष्टि को भरने के लिए ब्रह्म ने वृक्ष, जंगल, पहाड़, नदी और जीव जन्तु सभी की सृष्टि की। इतना सबकुछ रचने के बाद भी ब्रह्मा जी को कुछ कमी नजर आ रही थी, वे समझ नहीं पा रहे थे कि वे क्या करें। काफी सोच विचार के बाद उन्होने अपना कमंडल उठाया और जल हाथ में लेते हुए उसे छिड़क दिया. जल के छिड़कते ही एक सुंदर देवी प्रकट हुईं। जिनके एक हाथों में वीणा थी, दूसरे में पुस्तक।तीसरे में माला और चौथा हाथ आर्शीवाद देने की मुद्रा में था।

इस दृश्य को देखकर ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए। इस देवी को ही मां सरस्वती का कहा गया। मां सरस्वती ने जैसे ही अपनी वीणा के तारों को अंगुलियों से स्पर्श किया उसमें से ऐसे स्वर पैदा हुए कि सृष्टि की सभी चीजों में स्वर और लय आ गई। वो दिन बंसत पंचमी का था। तभी से देव लोक और मृत्युलोक में मां सरस्वती की पूजा शुरू हो गई।

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