21 अक्‍टूबर को है अहोई अष्‍टमी, जानिए शुभ मुहूर्त और महत्व

अहोई अष्‍टमी का व्रत संतान की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है। मान्‍यता है कि इस व्रत के प्रभाव से संतान फल की प्राप्‍ति होती है। कहा जाता है कि जो भी महिला पूरे मन से इस व्रत को रखती है उसके बच्‍चे दीर्घायु होते हैं। पौराणिक मान्‍यता है कि इस व्रत के प्रताप से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। अहोई अष्‍टमी के दिन माता पार्वती की पूजा का विधान है। यह व्रत मुख्‍य रूप से उत्तर भारत की महिलाएं रखती हैं।

पूजा का शुभ मुहूर्त

शाम 05 बजकर 42 मिनट से शाम 06 बजकर 59 मिनट तक।

अहोई अष्टमी व्रत का महत्व क्या है ?

उत्तर भारत में अहोई अष्‍टमी के व्रत का विशेष महत्‍व है। इसे ‘अहोई आठे’ भी कहा जाता है क्‍योंकि यह व्रत अष्टमी के दिन पड़ता है। अहोई यानी के ‘अनहोनी से बचाना’। किसी भी अमंगल या अनिष्‍ट से अपने बच्‍चों की रक्षा करने के लिए महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं। यही नहीं संतान की कामना के लिए भी यह व्रत रखा जाता है। इस दिन महिलाएं कठोर व्रत रखती हैं और पूरे दिन पानी की बूंद भी ग्रहण नहीं करती हैं। दिन भर के व्रत के बाद शाम को तारों को अर्घ्‍य दिया जाता है। हालांकि चंद्रमा के दर्शन करके भी यह व्रत पूरा किया जा सकता है, लेकिन इस दौरान चंद्रोदय काफी देर से होता है इसलिए तारों को ही अर्घ्‍य दे दिया जाता है। वैसे कई महिलाएं चंद्रोदय तक इंतजार करती हैं और चंद्रमा को अर्घ्‍य देकर ही व्रत का पारण करती हैं। मान्‍यता है कि इस व्रत के प्रताप से बच्‍चों की रक्षा होती है। साथ ही इस व्रत को संतान प्राप्‍ति के लिए सर्वोत्‍तम माना गया है।

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