उत्तर प्रदेश में जातिवाद को समाप्त करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाया गया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट के 19 सितंबर के फैसले के बाद योगी आदित्यनाथ सरकार ने जाति आधारित सम्मेलनों, रैलियों और सार्वजनिक आयोजनों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है. अब FIR, पुलिस रिकॉर्ड्स, वाहनों और सार्वजनिक स्थलों पर जाति का कोई उल्लेख नहीं होगा.
इस फैसले से जाति आधारित संगठनों में जबरदस्त आक्रोश फैल गया है. कुछ इसे सामाजिक संतुलन के खिलाफ बता रहे हैं, तो कुछ सुप्रीम कोर्ट जाने की धमकी दे रहे हैं.
हाईकोर्ट ने जातिगत भेदभाव को संविधान विरोधी बताया
दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस विनोद दिवाकर ने एक शराब तस्करी मामले में सुनवाई के दौरान फैसला सुनाया, जहां आरोपी प्रवीण छेत्री ने FIR में अपनी जाति (भील) उल्लेख पर आपत्ति जताई थी. कोर्ट ने कहा कि जाति का उल्लेख संविधान की भावना के खिलाफ है और यह समाज में विभाजन फैलाता है. आधुनिक तकनीक के युग में पहचान के अन्य साधन उपलब्ध हैं. कोर्ट के निर्देश पर कार्यवाहक मुख्य सचिव दीपक कुमार ने 21-22 सितंबर को 10-सूत्री आदेश जारी किया, जिसमें जाति आधारित रैलियों पर रोक, सोशल मीडिया पर जातिगत कंटेंट पर IT एक्ट के तहत कार्रवाई, वाहनों पर जातीय स्टिकर लगाने पर मोटर वाहन अधिनियम के तहत जुर्माना और थानों के नोटिस बोर्ड से जातीय नारे हटाने का प्रावधान है. हालांकि SC/ST एक्ट जैसे मामलों में छूट रहेगी.
जातीय संगठनों में नाराजगी
सरकार के इस फैसले से जाति आधारित संगठनों में हड़कंप मच गया है. कई नेताओं ने इसे राजनीतिक साजिश करार दिया और आरक्षण पर सवाल उठाए. करणी सेना के प्रदेश अध्यक्ष संदीप सिंह ने इसे समाज की आवाज दबाने वाला फैसला बताया, बोले कि हम राष्ट्र के लिए समर्पित हैं. उन्होंने आगे कहा कि सरकार पहले एससी-एसटी आरक्षण समाप्त करे और आर्थिक आधार पर आरक्षण दे, उसके ये फैसला लागू करे.
अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रिय अध्यक्ष राजेन्द्र त्रिपाठी ने कहा कि कोर्ट के आदेश का सम्मान है. लेकिन जाति के आधार पर आरक्षण क्यों ? इसे भी बैन करना चाहिए. उन्होंने कहा कि जातीय विद्वेष कौन फैला रहा राजनीतिक दल और नेता और सरकारे.
उधर परशुराम सेना प्रदेश अध्यक्ष पंडित विनय त्रिपाठी ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की बात की है. जबकि विश्व हिन्दू रक्षा परिषद के अध्यक्ष गोपाल राय ने इस आदेश को स्वीकारते हुए कहा कि हम जाति नहीं बल्कि संगठन के रूप में आगे बढ़ रहे हैं.
शाह अल्बी महासभा पसमांदा समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष सैयद मोहम्मद इब्राहीम ने इस फैसले से नाराजगी जाहिर की है. उन्होंने कहा कि अब हमारे समाज की आवाज कौन उठाएगा. ये व्यवस्था ठीक नहीं.
भाजपा के लिए बढ़ी चुनौती
जिस प्रकार से जातीय संगठन इसे अपने समाज को नजरअंदाज करने की बात उठाकर सरकार पर दबाब बना रहे हैं, आने वाले समय में भाजपा सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं. क्यूंकि सभीराजनीतिक दल जातीय समीकरणों के हिसाब से ही अपनी चुनावी रणनीति तय करते हैं.