क्या 2024 में होगा दुनिया का सबसे महंगा चुनाव? पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार खर्च होंगे इतने करोड़

उम्मीदवार द्वारा चुनाव अभियान के लिए सार्वजनिक सभाओं, रैलियों, पोस्टर, बैनर वाहनों और विज्ञापनों पर जो खर्च आते हैं, उसे ही चुनावी खर्च के रूप में कैलकुलेट किया जाता है. लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम यानी आरपीए 1951 की धारा 77 के तहत हर उम्मीदवार को नामित होने की तारीख और परिणाम की घोषणा की तारीख के बीच किए गए सभी खर्चों का एक अलग और सही हिसाब रखना होता है.

देश में अगले कुछ माह में लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं. इससे पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड पर रोक लगा दी है, इसके बाद राजनैतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे में कमी आने का अनुमान है. 2019 में हुआ लोकसभा चुनाव दुनिया का सबसे महंगा चुनाव था. सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (सीएमएस) के अनुसार, 2019 में चुनावों में 50,000 करोड़ रुपये खर्च का अनुमान जताया गया था, लेकिन असल में यह 60,000 करोड़ लगा. लोकसभा चुनाव 5 सालों में होते हैं और उतनी ही तेजी से खर्च बढ़ते जाते हैं.

2009 में हुए 15वें लोकसभा चुनाव का बजट भारत में उससे पहले हुए चुनावों से 15 गुना ज्यादा था. इससे पहले की बात करें तो 1993 में लोकसभा चुनावों में 9000 करोड़, 1999 में 10,000 करोड़, 2004 में 14,000 करोड़, 2009 में 20,000 करोड़, 2014 में 30,000 करोड़ और 2019 में 60,000 करोड़ रुपये चुनाव पर खर्च हुए. इस लिहाज से देखें तो 2014 के चुनाव का खर्च 2009 से डेढ़ गुना बढ़ा था. इसी तरह 2019 के चुनाव में 2014 के हिसाब से लागत दोगुनी हुई थी. इस आंकड़े को आधार मानें तो 2024 के चुनाव में 1 लाख 20 हजार करोड़ रुपये का खर्च आ सकता है. जो दुनिया का सबसे महंगा चुनाव हो सकता है.

ऐसे होता है चुनाव खर्च का बंटवारा

यदि 2019 में चुनाव पर खर्च हुई राशि की बात करें तो इसमें से 20 प्रतिशत यानी 12 हजार करोड़ रुपये चुनाव आयोग ने चुनाव प्रबंधन पर खर्च किए. 35 प्रतिशत यानी 25000 करोड़ रुपए राजनैतिक पार्टियों द्वारा खर्च किया गया. 25000 करोड़ में से 45% बीजेपी ने खर्च किए जबकि कांग्रेस ने 20% और बाकी ने 35% खर्च किया. 2019 में अकेले 5000 करोड़ रुपये सोशल मीडिया पर खर्च किए गए.

उम्मीदवार की खर्च लिमिट तय, पार्टी पर पाबंदी नहीं

चुनाव आयोग द्वारा उम्मीदवार के खर्च पर लिमिट तय की गई है, लेकिन पार्टियों के ऊपर कोई पाबंदी नहीं है. लोकसभा चुनाव में पार्टी उम्मीदवारों के समर्थन करन वाली रैली, प्रचार-प्रचार और दूसरी चीजों में खर्च करती है. सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज ने चुनावी खर्च को लेकर जो रिपोर्ट जारी की है, उसके हिसाब से हर लोकसभा क्षेत्र में औसतन 100 करोड रुपये से अधिक खर्च हुए हैं. इसको अगर वोटर के हिसाब से देखा जाए तो यह ₹700 प्रति वोटर आएगा. वैसे चुनाव खर्च का यह अनुमान भर है.

कितना खर्च कर सकते हैं लोकसभा और विधानसभा उम्मीदवार

इलेक्शन कमीशन ऑफ़ इंडिया ने उम्मीदवारों के खर्च किए एक सीमा तय की है. लोकसभा चुनाव के प्रसार में बड़े राज्यों के लोकसभा सीट का कैंडिडेट अधिकतम 95 लाख खर्च कर सकता है. वहीं छोटे राज्यों के लिए सीमा 75 लाख रुपये तय की गई है. बात करें विधानसभा चुनाव की तो विधानसभा चुनाव में बड़े राज्यों से चुनाव से चुनाव लड़ने वाले कैंडिडेट प्रति सीट 40 लाख रुपए खर्च कर सकते हैं, जबकि छोटे राज्यों में 28 लाख रुपये लिमिट तय की गई है. भारतीय चुनाव आयोग के मुताबिक, चुनाव प्रचार में होने वाले खर्च के लिए प्रत्याशी को एक बैंक अकाउंट खुलवाना होगा और इसी से प्रचार का सारा ट्रांजैक्शन करना होगा. चुनाव प्रचार के बाद अपने बैंक खाते से होने वाले खर्च का पूरा हिसाब किताब चुनाव आयोग को देना होगा. इस बीच अगर प्रत्याशी चुनाव में निर्धारित लिमिट से अधिक खर्च करते हैं तो लोक प्रतिनिधि अधिनियम 1951 की धारा 10ए के तहत 3 साल की सजा के हकदार होंगे.

उम्मीदवार द्वारा चुनाव अभियान के लिए सार्वजनिक सभाओं, रैलियों, पोस्टर, बैनर वाहनों और विज्ञापनों पर जो खर्च आते हैं, उसे ही चुनावी खर्च के रूप में कैलकुलेट किया जाता है. सभी उम्मीदवारों को चुनाव पूरा होने के 30 दिनों के भीतर अपने खर्च का विवरण चुनाव आयोग को देना जरूरी होता है. गलत खाता या अधिकतम सीमा से अधिक खर्च करने पर चुनाव आयोग द्वारा लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 10 एक के तहत 3 साल तक के लिए उम्मीदवार को अयोग्य घोषित किया जा सकता है. चुनाव आयोग द्वारा चुनावी खर्च की सीमा तय करने का मकसद यह होता है कि धनबल और नाजायज खर्च के बल पर निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया प्रभावित न हो और लोकतंत्र का सही मकसद भी तभी पूरा होता है.

2021 में क्यों बढ़ाई गई रकम?

दरअसल, चुनावी खर्च की सीमा का अध्ययन करने के लिए इलेक्शन कमीशन ने साल 2020 में एक समिति का गठन किया था. समिति ने इसमें कास्ट फैक्टर और अन्य संबंधित मुद्दों का अध्ययन करने के बाद यह पाया कि साल 2014 के बाद से मतदाताओं की संख्या और लागत मुद्रास्फीति सूचकांक यानी कॉस्ट इन्फ्लेशन इंडेक्स में पर्याप्त वृद्धि हुई है. चुनाव आयोग ने इसमें चुनाव प्रचार के बदलते तौर-तरीकों को ध्यान में रखा जोकि अब फिजिकल के साथ धीरे-धीरे वर्चुअल मोड में बदल रहा है. इलेक्शन कमीशन ने इस बारे में और बताते हुए कहा कि साल 2014 से 2021 के बीच 834 मिलियन से 936 मिलियन यानी 12.23 फ़ीसदी मतदाताओं की वृद्धि हुई है, जबकि लागत मुद्रास्फीति सूचकांक यानी कॉस्ट इन्फ्लेशन इंडेक्स में भी 2014-15 के मुकाबले 2021- 22 में 32 पीसीबी की बढ़ोतरी हुई है. इसी आधार पर चुनाव आयोग ने उम्मीदवारों के लिए मौजूदा चुनाव खर्च की सीमा बढ़ाने का फैसला किया है.

2023 विधानसभा चुनावों में पकड़ा गया था 1760 करोड़ कैश

2023 में 5 राज्यों के चुनाव के दौरान चुनाव आयोग ने एक रिपोर्ट पेश की है, इसमें बताया गया है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में 1760 करोड़ रुपए से अधिक की जब्ती की गई है. यह रकम पिछली बार की गई जब्ती से 7 गुना ज्यादा है. इन राज्यों में पिछली बार 2018 में विधानसभा चुनाव हुए थे, जहां 239.15 करोड़ रुपए जब्त किए गए थे. चुनाव आयोग की सख्ती और लगातार कार्यवाही के बाद भी चुनावों में पैसे का खेल खत्म होता नहीं दिख रहा है. चुनाव आयोग ने बताया कि छत्तीसगढ़ में 76.9 करोड़, मध्य प्रदेश में 323.7 करोड़, राजस्थान में 650.7 करोड़, तेलंगाना 659.2 करोड़ और मिजोरम में 49.6 करोड़ जब्त किए गए हैं.

अकेले राजस्थान में 93.17 करोड़ रुपए नगद राशि जब्त की गई है. इसके अलावा 51.9 करोड़ रुपए की शराब, 91.71 करोड़ रुपए के ड्रग्स, 73.36 करोड़ की कीमती धातु और 341.24 करोड़ रुपए के मुफ्त का समान पकड़ा गया. वहीं बात मध्य प्रदेश की करें तो यहां पर 33.72 करोड़ रुपए नगद राशि जब्त की गई है. इसके अलावा 69.85 करोड़ रुपए की शराब, 15.53 करोड़ रुपए के ड्रग्स, 84.1 करोड़ की कीमती धातु और 120.53 करोड़ रुपए के मुफ्त का समान पकड़ा गया.

छत्तीसगढ़ में भी जब्त की गई राशि

छत्तीसगढ़ में 20.77 करोड़ रुपए नगद राशि जब्त की गई है. 2.16 करोड़ रुपए की शराब, 4.55 करोड़ रुपए के ड्रग्स, 22.76 करोड़ की कीमती धातु और 26.68 करोड़ रुपए का मुफ्त का समान पकड़ा गया. इसके साथ ही तेलंगाना में 225.23 करोड़ रुपए नगद राशि जब्त की गई है. 86.82 करोड़ रुपए की शराब, 103.72 करोड़ रुपए के ड्रग्स, 191.02 करोड़ की कीमती धातु और 52.41 करोड़ रुपए का मुफ्त का समान पकड़ा गया. वहीं मिजोरम में नगद राशि तो नहीं मिली, लेकिन 4.67 करोड़ रुपए की शराब, 29.82 करोड़ रुपए के ड्रग्स और 15.16 करोड़ रुपए का मुफ्त का समान पकड़ा गया.

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