कोरोना के असर को कम करने की चुनौती, हालात सामान्य होने में लगेगा समय

Coronavirus के संक्रमण पर नियंत्रण पाने के अभियान के कुछ सार्थक नतीजे दिखना एक शुभ संकेत है। कोरोना संक्रमित लोगों की वृद्धि दर में गिरावट से भारत सही दिशा में बढ़ता दिख रहा है। हालांकि अभी लंबी लड़ाई लड़नी है, क्योंकि 700 से अधिक जिलों में लगभग 350 ऐसे हैं जो कोरोना संक्रमण से बचे हुए हैं। संक्रमण की दृष्टि से गंभीर खतरे वाले जिलों की अच्छी-खासी संख्या के साथ महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, दिल्ली आदि की नाजुक हालत को देखते हुए अभी सतर्कता बरतने की ही जरूरत है। इसी कारण सरकार ने Lockdown की समय-सीमा 3 मई तक बढ़ाई है। यदि स्थितियां नियंत्रण में रहीं और लोगों ने संयम और अनुशासन का परिचय दिया तो इसकी संभावना है कि 3 मई के बाद देश के एक बड़े हिस्से में Lockdown समाप्त हो जाए और 20 अप्रैल से दी जाने वाली रियायतें भी बढ़ जाएं।

आज जब हर भारतीय Lockdown की समाप्ति और कामकाज शुरू होने का इंतजार कर रहा है तब उसे इसके लिए भी तैयार रहना होगा कि देश-दुनिया पहले जैसी नहीं रह जाएगी। लोगों को शारीरिक दूरी का परिचय देने के साथ सेहत और सफाई के प्रति सतर्क रहना होगा। वास्तव में लोगों को अपना दैनिक व्यवहार और सामाजिक तौर-तरीके बदलने होंगे। हम भारतीयों की जगह-जगह थूकने की एक गंदी आदत है। पान, गुटखा आदि थूकने को लेकर तो पहले भी रोक-टोक थी, अब इसे अपराध के दायरे में लाया गया है। ऐसा करना वक्त की जरूरत थी। इससे बेहतर और कुछ नहीं कि Coronavirus का प्रकोप भारतीयों की इस गंदी आदत को छोड़ने के लिए विवश करे।

Coronavirus के प्रकोप में कमी के बीच सरकार 20 अप्रैल से कई क्षेत्रों में कामकाज की छूट देने जा रही है। कृषि, डेयरी, मछली पालन को तो पूरी छूट मिलने जा रही है, इसके अलावा कुछ चुनिंदा कारोबारी और कंस्ट्रक्शन से जुड़ी गतिविधियों को भी कुछ शर्तों के साथ शुरू करने की अनुमति दी जा रही है। छूट के दायरे में स्वरोजगार के काम भी शामिल हैं और हाईवे पर ट्रकों का परिचालन भी। इस छूट के बाद भी हालात जल्द सामान्य होने वाले नहीं। कारोबार जगत को अभी सब्र करते हुए आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियों के सामान्य होने की प्रतीक्षा करनी होगी, क्योंकि अभी रेल और हवाई सेवा तो बंद हैं ही, अन्य अनेक गतिविधियां भी पाबंदी के दायरे में रहेंगी।

सीमित कारोबारी गतिविधियों को शुरू करने की तैयारी के बीच रिजर्व बैंक ने अर्थव्यवस्था का संकट टालने के लिए दूसरे पैकेज की घोषणा की है। उसने छोटे-मझोले उद्यमों, NBFC के लिए एक लाख करोड़ रुपये के फंड का प्रबंध किया है। बैंकों को कर्ज देने के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से उसने NPA के प्रावधान भी बदले हैं। स्वाभाविक तौर पर इन कदमों का स्वागत हुआ है, लेकिन कारोबार जगत के लिए यह आवश्यक है कि वह संकट के बीच अपनी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के कुछ नए तौर-तरीके खोजे। उसे संकट के बीच सक्रिय होने के साथ-साथ अपने खर्च नियंत्रित करने के उपाय करने होंगे।

उम्मीद है कि केंद्र सरकार अपने दूसरे आर्थिक पैकेज के साथ इसमें मददगार बनेगी। सरकार को इसकी चिंता करनी होगी कि निजी क्षेत्र के कारोबारी अपने कर्मचारियों को अप्रैल माह का वेतन कैसे दें? वह इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकती कि कुछ सेक्टर कोरोना के कहर से बुरी तरह प्रभावित हैं और उन्हें उबारने का काम प्राथमिकता के आधार पर होना चाहिए। ऐसा करके ही वह लोगों को राहत दे सकेगी और साथ ही अर्थव्यवस्था पर कोरोना के असर को कम करने में सक्षम होगी।

जहां भारत कोरोना के कहर को थामता दिख रहा है वहीं दुनिया के तमाम देश अभी भी गहन संकट में दिख रहे हैं। अमेरिका की हालत दिन-प्रतिदिन विकट होती जा रही है। न्यूयार्क और फ्लोरिडा तो कोरोना के कहर के सामने असहाय से दिख रहे हैं। इसका कारण यही है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने समय रहते ठोस कदम उठाने से इन्कार किया और अमेरिकी समाज ने भी पर्याप्त सतर्कता बरतने की जरूरत नहीं समझी।

राष्ट्रपति ट्रंप अपनी गलती मानने के बजाय औरों पर दोष मढ़ रहे हैं। उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO पर निशाना साधते हुए उसे दी जाने वाली आर्थिक मदद रोकने का फैसला किया है। ध्यान रहे कि अमेरिका WHO के लिए सबसे बड़ा दानदाता देश है। इससे इन्कार नहीं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपना काम सही तरह नहीं किया और उसने चीन की हां में हां मिलाकर दुनिया को गहरे संकट में डाला, लेकिन यह समय इस संगठन को कमजोर करने का नहीं, बल्कि उसे सक्षम और जिम्मेदार बनाने के उपाय तलाशने का है।

इसमें कोई दोराय नहीं हो सकती कि चीन की लापरवाही और उसकी अपारदर्शी नीतियों के कारण आज पूरा विश्व Coronavirus से पीड़ित और आतंकित है, लेकिन यह भी सही है कि पहली जरूरत कोरोना के प्रकोप को थामने की है। कोरोना वायरस के विश्वव्यापी कहर के बीच यह सवाल उठना भी स्वाभाविक है कि अगर भारत समय रहते चेत गया तो अमेरिका क्यों नहीं चेत सका? वास्तव में यह बात यूरोपीय देशों पर भी लागू होती है।

आज अमेरिका की तरह ब्रिटेन और यूरोपीय समुदाय के देशों और खासकर इटली, स्पेन और फ्रांस का भी बुरा हाल है। चूंकि दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था वाले सभी देश कोरोना वायरस के कहर से दो-चार हैं इसलिए विश्व गंभीर आर्थिक मंदी की ओर तेजी से बढ़ रहा है। एक तरह से देखें तो इसकी जड़ में चीन ही है।

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