केरल में स्थित सबरीमाला मंदिर भगवान अयप्पा को समर्पित है, जो दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तीर्थस्थल है. सबरीमाला मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां प्रभु के दर्शन करने मात्र से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. आइए जानते हैं कि भगवान अयप्पा किसके अवतार हैं और वे कैसे प्रकट हुए.
केरल में स्थित सबरीमाला मंदिर दुनिया के सबसे बड़े तीर्थस्थलों में से एक है, जहां हर साल करोड़ों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं. यह मंदिर अयप्पा भगवान को समर्पित है, जिन्हें अय्यप्पन हरिहरन, मणिकंदन, धर्मस्थ, और हरिहरपुत्र के नाम से भी जाना जाता है. सबरीमाला मंदिर में भगवान अयप्पा को इरुमुदिकट्टू का प्रसाद अर्पित किया जाता है. अक्सर लोगों के मन में सवाल आता है कि क्या भगवान अयप्पा और कार्तिकेय एक ही हैं या अलग अलग हैं. आइए आपको बताते हैं कि भगवान अयप्पा कौन हैं और किसका अवतार हैं.
अयप्पा भगवान कौन हैं? (Ayyappa Swamy kon hai)
भगवान अयप्पा को हरिहर पुत्र भी कहा जाता है, क्योंकि वे भगवान शिव और भगवान विष्णु के मोहिनी रूप के पुत्र हैं. भगवान अयप्पा का जन्म महिषासुर की बहन महिषी नामक राक्षसी का वध करने के लिए हुआ था. धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान अय्यप्पा को पन्तलम के राजा ने पाला था. उनकी पूजा में 41 दिनों का कठिन व्रत और सबरीमाला मंदिर की 18 सीढ़ियों पर चढ़ना शामिल है.
दर्शन करने से पहले के नियम
अयप्पा स्वामी बाघ की सवारी करते हैं और उनकी पूजा मुख्य रूप से दक्षिण भारत में की जाती है. केरल में 18 पहाड़ियों पर स्थित सबरीमाला मंदिर उनका सबसे प्रसिद्ध मंदिर है. अयप्पा स्वामी के दर्शन करने से पहले भक्तों को 41 दिनों का कठिन व्रत रखना होता है. इस दौरान उन्हें भौतिक सुखों से दूर रहना होता है और अपने माथे पर चंदन का लेप लगाना होता है.
सबरीमाला मंदिर में भक्तों को अपने सिर पर “इरुमुदिकट्टू” नामक थैला ले जाना होता है, जो उनके व्रत और समर्पण का प्रतीक होता है. सबरीमाला मंदिर जाने से पहले भक्तों को पवित्र पम्पा नदी में स्नान करना होता है. इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 18 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं.
भगवान अयप्पा का जन्म कैसे हुआ था?
पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान भगवान अयप्पा का जन्म भगवान शिव और भगवान विष्णु के मोहिनी रूप के मिलन से हुआ था. अयप्पा भगवान का जन्म राक्षसी महिषी का वध करने के लिए हुआ था, क्योंकि उसे ब्रह्मा से यह वरदान मिला था कि उसे केवल शिव और विष्णु की संतान ही मार सकती थी. ऐसी भी मान्यता है कि शिव के वीर्य (जिसे ‘पारद’ कहते हैं) से मोहिनी गर्भवती हुई और उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया.
जन्म के बाद भगवान शिव और मोहिनी ने उस बालक को पंपा नदी के तट पर छोड़ दिया, जहां वे पन्तलम के राजा राजशेखर को वह मिले. राजा निःसंतान थे और उन्होंने उस बालक को अपने महल ले जाकर पाला और उनका नाम ‘मणिकंदन’ रखा. मणिकंदन एक राजकुमार के रूप में पले- बढ़े, लेकिन बाद में उन्होंने राजसी जीवन का त्याग कर सबरीमाला में निवास करने का निर्णय लिया.

