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Uniform Civil Code: क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड, क्यों पीएम मोदी के बयान के बाद हो रही चर्चा

Uniform Civil Code: लोकसभा चुनाव में अब एक वर्ष से भी कम वक्त बचा है. यही वजह है कि राजनीतिक दलों ने अपने-अपने एजेंडों पर काम करना शुरू कर दिया है. इन्हीं एजेंडों में से एक एजेंडे को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने बयान के जरिए छेड़ दिया है. ये एजेंडा है देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिकता संहिता लागू करना. पीएम मोदी ने यूसीसी लागू करने की बात क्या कही पूरे देश में इसको लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है. इन चर्चाओं पर गौर करने से पहले समझ लेते हैं कि आखिर यूसीसी है क्या?

क्या है UCC?
भारत में पिछले कुछ वक्त से लगातार यूसीसी को लेकर चर्चाएं हो रही हैं. दरअसल यूसीसी को आसान भाषा में समझा जाए तो इसका मतलब है हर धर्म, जाति, वर्ग, समुदाय या संप्रदाय के लिए एक राष्ट्र में एक ही नियम हो. यानी एक समान कानून की व्यवस्था हो. फिलहाल देश में आपराधिक कानून तो समान है लेकिन नागरिकता कानून नहीं. अलग-अलग धर्मों के अपने-अपने नियम हैं. जो समानत के अधिकारों का हनन भी करते हैं.

इसे और आसान भाषा में समझें तो अलग-अलग धर्म में तलाक, शादी, विरासत या फिर गोद लेने के लिए अलग-अलग नियम और शर्तें लगाई गई हैं. ऐसे में केंद्र सरकार का तर्क है कि एक देश एक घर की तरह की और एक घर में एक ही नियम चलना चाहिए. हर सदस्य के लिए अलग-अलग नियम नहीं होना चाहिए. धर्म कोई भी हो लेकिन नागरिकों को समान अधिकार मिलने चाहिए.

संविधान का अनुच्छेद 44 भी यही कहता है. इस आर्टिकल के तहत देश में सभी नागरिकों के लिए समान कानून की बात कही गई है.

भारत में क्या है UCC की स्थिति
भारत में यूसीसी की बात की जाए तो इसको लेकर धार्मिक मामलों में कानून अलग-अलग हैं. इनमें काफी अंतर भी है. संपत्ति ट्रांसफर करना हो या फिर किसी को गोद लेना या फिर तलाक हर संबंध में अलग-अलग धर्मों के मुताबिक अलग-अलग नियम चलते हैं. इतना ही नहीं कहीं पर बेटी को पिता की संपत्ति में समान अधिकार है तो कहीं पर नहीं है. कहीं पति की संपत्ति में पत्नी को अधिकार है तो कहीं पर नहीं है. लेकिन यूसीसी अपने-अपने धर्म के मुताबिक सभी समान रूप से जीने का अधिकार देता है.

हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों में अलग-अलग मान्यताएं
देश में यूसीसी लागू नहीं होने के पीछे विविधता भी बड़ा कारण है. दरअसल चाहे हिंदू हों या फिर मुस्लिम दोनों ही धर्मों में अलग-अलग तरह का मान्याताओं का प्रचलन है जो यूसीसी को लागू करने में बड़ा रोड़ा साबित हो रहा है. हिंदुओं राज्यों के हिसाब से अलग-अलग मान्यताओं का प्रचलन है जबकि मुस्लिम समाज में सुन्नी, शिया, अहमदिया से लेकर अलग-अलग रिवाज चल रहे हैं.

भारत में UCC लागू होने के बाद क्या होगा?

UCC का कौन कर रहा विरोध?
यूसीसी का विरोध करने वालों में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड है. उनका कहना है कि इससे सिर्फ मुसलमान ही नहीं अन्य धर्म के लोगों को भी नुकसान होगा. बोर्ड के सदस्य खालिद रशीदी की मानें तो इस मामले पर विचार करने के लिए दिया गया एक महीने का वक्त भी बहुत कम है. यूसीसी लाने के पीछे देश के मुख्य मुद्दों से सिर्फ ध्यान हटाना है.

राजनीतिक दलों की राय
वहीं कांग्रेस भी यूसीसी का विरोध कर रही है. कांग्रेस महासचिव वेणुगोपाल राय का कहना है कि देश में ऐसे कई मुद्दे हैं जिन्हें प्राथमिकता पर सुलझाने की जरूरत है. लेकिन यूसीसी को लेकर केंद्र सरकार सिर्फ ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है. महंगाई, बेरोजगारी से लेकर मणिपुर हिंसा तक कई मुद्दों पर चुप्पी साधी हुई है.

वहीं डीएमके ने यूसीसी को लेकर एक अलग ही राग अलापा है. नेता टीकेएस का कहना है कि यूसीसी सबसे पहले हिंदू धर्म में लागू होना चाहिए उसके बाद इसे अन्य धर्मों पर लागू किया जाना चाहिए. इसके लिए हिंदू मंदिरों को हर धर्म के लोगों के लिए खोल देना चाहिए.

वहीं तृणमूल कांग्रेस ने भी कहा है कि केंद्र सरकार युवाओं को रोजगार नहीं दे पा रही है, महंगाई को नियंत्रित नहीं कर पा रही है इसलिए यूसीसी जैसे मुद्दों पर चर्चा हो रही है. हालांकि जनता दल यू का कहना है कि यूसीसी लागू किया जाना है तो इसको लेकर सभी राजनीतिक दलों के साथ चर्चा की जानी चाहिए. वहीं शिवसेना नेता और राज्यसभा सांसद संजय राउत ने इसे शिवसेना की ओर से उठाया गया मुद्दा बताया.

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