इंसानी Memory का अध्ययन हजारों सालों से विज्ञान और मनोविज्ञान का विषय रहा है। Memory क्या हैं, ये कैसे बनती हैं ? ये चंद सवाल हैं जिनके बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है।
Memory बुनियादी तौर पर पेचीदा प्रक्रिया है। इसके अंतर्गत जानकारी हासिल करना, याद करना और याद को बरकरार रखना होता है। हर यादें एक जैसी नहीं होतीं। Memory जानकारी हासिल करने, सुरक्षित करने, बरकरार रखने और बाद में उसे दोबारा प्राप्त करने में इस्तेमाल होती है। इसमें Storage, Encoding, Retrieval शामिल होता है। नई यादों के बनने के लिए जानकारी को इस्तेमाल के योग्य बदलना जरूरी होता है। जिसे हम इनकोडिंग के नाम से जानते हैं। कुछ यादें बहुत संक्षिप्त यानी सिर्फ चंद सेकंड तक की होती हैं। अल्पकालिक स्मृति 20-30 सेकंड लंबी होती हैं। ये यादें ज्यादातर उन जानकारी पर निर्भर होती हैं जिन पर फिलहाल हमारा ध्यान रहता है या जिनके बारे में हम सोच रहे होते हैं। कुछ यादें हफ्तों, महीनों और दहाइयों तक हमारे अवचेतन में रहती हैं।
1968 में एटकिन्स और शेफरिन ने Memory का मॉडल दुनिया के सामने पेश किया था। जिसमें उन्होंने 3 अलग-अलग चरण अल्पकालिक स्मृति संवेदी स्मृति और दीर्घकालिक स्मृति के बारे में बताया। संवेदी स्मृति शुरुआती चरण है। इस दौरान माहौल से संबंधित संवेदी जानकारी को बहुत ही संक्षिप्त समय के लिए सुरक्षित किया जाता है। आम तौर पर देखकर जानकारी के लिए डेढ़ सेकंड और सुनकर जानकारी के लिए 3-4 सेकंड से ज्यादा का अंतराल नहीं होता। हम संवेदी स्मृति के सिर्फ चंद पहलुओं में शिरकत करते हुए कुछ जानकारी को अगले चरण यानी संक्षिप्त Memory में शिफ्ट करने की इजाजत देते हैं। संक्षिप्त Memory को सक्रिय याददाश्त भी कहा जाता है। ये ऐसी जानकारी है जिसके बारे में हम फिलहाल सोच रहे होते हैं। फ्राइडियन मनोविज्ञान में उसे सचेत मन (Conscious mind) कहा जाता है। संवेदी Memory अल्पकालिक स्मृति की जानकारी में इजाफा करती है। दीर्घकालिक याददाश्त से तात्पर्य स्मृति में जानकारी का लगातार संचित होना होता है।