बांग्लादेश की धरती से मोदी ने बंगाल को साध लिया? ममता बनर्जी की चिंता समझिए

इधर पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए वोटिंग हो रही थी, उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बांग्लादेश के ओराकांडी में मतुआ समुदाय के लोगों से मिल रहे थे। उनके मंदिर में पूजा कर रहे थे। इससे भड़कीं ममता बनर्जी ने पीएम के बांग्लादेश दौरे पर यह कहते हुए सवाल उठा दिया कि यह चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन है। आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री बांग्लादेश की धरती से पश्चिम बंगाल के चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं। दौरे का इस्तेमाल पश्चिम बंगाल में एक खास तबके के वोटों को हासिल करने के लिए कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर प्रधानमंत्री के दौरे में ऐसा क्या रहा जो ममता इतनी बुरी तरह भड़क गई हैं, क्या मोदी ने बांग्लादेश की धरती से बंगाल को साध लिया है? आइए समझते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बांग्लादेश दौरे, पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव और ममता बनर्जी के भड़कने के बीच एक साझी कड़ी है वह है मतुआ समुदाय। मतुआ समुदाय की पश्चिम बंगाल में अच्छी-खासी आबादी है। यह अनुसूचित जाति के तहत आते हैं। बांग्लादेश में स्थित ओराकांडी मतुआ समुदाय का मूल स्थान है। वही ओराकांडी जहां शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहुंचे थे और समुदाय के लोगों से रूबरू हुए। ओराकांडी में ही मतुआ समुदाय के गुरु और समाजसुधारक हरिचंद ठाकुर का जन्म हुआ था, जिन्हें समुदाय के लोग भगवान मानते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने ओराकांडी में हरिचंद-गुरुचंद मंदिर में पूजा की। समुदाय के लोगों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने पश्चिम बंगाल में काफी प्रभावशाली रहीं दिवंगत बोड़ो मां यानी बीणापाणि ठाकुर की तारीफ की। उनसे अपनी मुलाकात और स्नेह का किस्सा सुनाया। प्रधानमंत्री मोदी बेशक बांग्लादेश में थे, वहां लोगों को संबोधित कर रहे थे लेकिन राजनीतिक संदेश तो सरहद के इस पार यानी पश्चिम बंगाल के लिए छिपा था। फिर क्या था, ममता को बिफरना ही था।

2011 की जनगणना के अनुसार पश्चिम बंगाल में अनुसूचित जाति की आबादी करीब 1.84 करोड़ है और इसमें 50 फीसदी मतुआ संप्रदाय के लोग हैं। पश्चिम बंगाल विधानसभा की करीब 50 से 70 विधानसभा सीटों पर यह समुदाय जीत-हार तय करने में अहम भूमिका निभाता है। 10 लोकसभा सीटों कृष्णानगर, दार्जिलिंग, रानाघाट, कूचविहार, मालदा उत्तरी, रायगंज, मालदा दक्षिणी, जॉयनगर, बर्धमान पूर्वी, बर्धमान पश्चिम सीट पर मतुआ वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने इन 10 में से 7 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की। इसके अलावा, नामशूद्र समाज के लोग भी मतुआ संप्रदाय को मानते हैं। इस समाज के लोगों की पश्चिम बंगाल में 17 फीसदी आबादी है। कुछ दूसरे दलित समाज के लोग भी मतुआ संप्रदाय से जुड़े हुए हैं। इस तरह बंगाल में मतुआ संप्रदाय को मानने वालों की आबादी तकरीबन 3 करोड़ है। इससे पश्चिम बंगाल की सियासत में मतुआ समुदाय की अहमियत को आसानी से समझा जा सकता है।

मतुआ संप्रदाय हिंदू धर्म को मान्यता देता है लेकिन ऊंच-नीच और भेदभाव के बगैर। मतुआ संप्रदाय की शुरुआत 1860 में अविभाजित बंगाल में समाज सुधारक हरिचंद ठाकुर ने की थी। संप्रदाय के लोग उन्हें भगवान विष्णु का अवतार मानते हैं और श्री श्री हरिचंद ठाकुर कहते हैं। 1947 में देश के विभाजन के बाद हरिचंद ठाकुर के परिवार वाले भारत आ गए और पश्चिम बंगाल में बस गए। यहां मतुआ संप्रदाय का जिम्मा हरिचंद ठाकुर के परपोते प्रथम रंजन ठाकुर ने संभाला और उनकी पत्नी बीणापाणि देवी को ही मतुआ माता या बोरो मां कहा जाने लगा। बोरो मां का मतलब है बड़ी मां। बोरो मां ने पाकिस्तान से आए नामशूद्र शरणार्थियों की सुविधा के लिए बांग्लादेश के बॉर्डर पर ठाकुरगंज नाम से एक बस्ती बसाई। नामशूद्र समाज के लोग भी मतुआ संप्रदाय को मानते हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक नामशूद्र समाज के लोगों की संख्या राज्य में 17 फीसदी है। नामशूद्र के अलावा दूसरे दलित समाज के लोग भी मतुआ संप्रदाय से जुड़े हैं। ऐसे में राजनीतिक दलों के लिए अनुसूचित जाति का बड़ा वोट हासिल करने के लिए मतुआ संप्रदाय अहम है।

हरिचंद ठाकुर के परपोते प्रथम रंजन ठाकुर के दौर से ही परिवार का राजनीतिक रसूख और दखल रहा है। वह 1962 में कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा का चुनाव भी जीते थे। उनकी पत्नी बीणापाणि देवी को मतुआ माता या बोड़ो मां कहा जाने लगा। बोड़ो मां यानी बड़ी मां। उन्होंने ही ठाकुरगंज को बसाया। बोड़ो मां मतुआ समुदाय के लोगों के लिए बहुत ही सम्मानित थीं। वह खुद तो राजनीति से दूर रहीं लेकिन 2010 में उनकी ममता बनर्जी से नजदीकियां बढ़ीं और उन्होंने उसी साल दीदी को मतुआ संप्रदाय का संरक्षक घोषित कर दिया। 2011 के चुनावों में ममता बनर्जी को इसका जबरदस्त फायदा मिला। मतुआ वोटों पर टीएमसी की पकड़ मजबूत हो गई। 2014 में पार्टी ने मतुआ माता के बेटे कपिल कृष्ण ठाकुर टीएमसी से लोकसभा पहुंच गए। उनकी मौत के बाद उपचुनाव में टीएमसी ने उनकी पत्नी ममता बाला ठाकुर को टिकट दिया और उन्होंने जीत हासिल की।

पश्चिम बंगाल में राजनीतिक जमीन की तलाश में जुटी बीजेपी की शुरुआत से ही मतुआ समुदाय पर नजर थी। 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पश्चिम बंगाल में चुनाव अभियान का आगाज मतुआ संप्रदाय के 100 साल पुराने मठ से किया। फरवरी 2019 में वह काफी बुजुर्ग हो चुकीं बोड़ो मां का आशीर्वाद लेने पहुंचे। मार्च 2019 में बोड़ो मां के निधन के बाद परिवार राजनीतिक तौर पर बंटा हुआ दिखने लगा। बोड़ो मां के छोटे बेटे मंजुल कृष्ण ठाकुर ने बीजेपी का दामन थाम लिया। उनके बेटे शांतनु ठाकुर को 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बनगांव से उम्मीदवार बनाया। शांतनु टीएमसी उम्मीदवार और अपनी चाची ममता बाला ठाकुर को हराकर सांसद बन गए। पीएम मोदी के बांग्लादेश दौरे पर भी वह उनके साथ गए थे। मतुआ समुदाय पर धीरे-धीरे बीजेपी की मजबूत पकड़ होती जा रही है। पिछले साल दिसंबर में अमित शाह ने बंगाल दौरे पर मतुआ समाज के एक शख्स के यहां भोजन किया। बीजेपी ने वादा किया है कि संशोधित नागरिकता कानून (CAA) के तहत मतुआ समुदाय के उन लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी जो अभी तक इससे वंचित हैं। मतुआ वोटों पर बीजेपी की यही बढ़ती पकड़ी ही ममता बनर्जी की चिंता बढ़ा रही है।

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