इलाज के लिए चरवा उरांव ने 10 हजार में बेचीं अपनी दुधमुही बच्ची

एक तरफ देश चाँद पर पहुंचने से केवल दो कदम दूर रह गया लेकिन दूसरी तरफ गुमला की एक सत्य घटना बताती है हम वास्तविकता से अभी कोसो दूर हैं। अपने इलाज के लिए झारखंड में एक गरीब दंपती ने अपनी मासूम बच्ची को 10 हजार रुपये में बेच दिया। फिर भी बच्ची की मां की जान नहीं बची। पिता भी गंभीर रूप से बीमार हैं। बच्ची को बेचने वाले दंपती का नाम चरवा उरांव (45) और झिबेल तिर्की हैं। झिबेल की मौत के बाद उसका अंतिम संस्कार चंदा जमाकर किया गया।

गरीबी व लाचारी की यह कहानी गुमला शहर से उतनी ही दूरी की है जितनी दुरी से हम चाँद पर पहुंचने से रह गए मतलब महज दो किलोमीटर। पुग्गू पंचायत के चंपानगर गांव की है। यह गांव नेशनल हाइवे-43 के ठीक किनारे है और चरवा का घर मारुति शो-रूम के ठीक सामने है। चरवा की मां भोंदो उराइन ने बताया कि उसका बेटा चरवा एक सप्ताह से बीमार है। बहू झिबेल तिर्की गर्भवती थी। 22 अगस्त को घर में ही एक बच्ची को जन्म दिया। बेटी के जन्म के बाद झिबेल की स्थिति नाजुक हो गयी। गांव की सहिया की पहल पर उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन अधिक रक्तस्राव की वजह से झिबेल की स्थिति नाजुक हो गयी। घर पर चरवा बीमार था और झिबेल अस्पताल में भर्ती थी। घर में फूटी कौड़ी नहीं था। राशन कार्ड नहीं होने की वजह से गोल्डेन कार्ड भी बनाना संभव नहीं था।
इसलिए झिबेल और चरवा के इलाज के लिए नवजात बच्ची को 10 हजार रुपये में बेचने का फैसला हुआ। 23 अगस्त, 2019 को बच्ची को बेचा गया और तीन दिन बाद 26 अगस्त को झिबेल की मृत्यु हो गयी।

चरवा रिक्शा चलाकर परिवार का पालन-पोषण करता था। वहीं, झिबेल एक दुकान में मजदूरी करती थी। चरवा के पास एक रिक्शा है। रिक्शा खराब होने के बाद वह घर पर ही रहने लगा। पत्नी झिबेल तिर्की शहर के एक दुकान में मजदूरी करती थी। इन दोनों के पहले से सात बच्चे हैं। इसमें चार लड़की व तीन लड़की हैं। सभी की उम्र चार साल से 18 साल तक है।

पुग्गू पंचायत के मुखिया बुधू टोप्पो ने शोक जताते हुए माना कि चरवा उरांव का परिवार गरीबी में जी रहा है। उन्होंने राशन कार्ड बनवाने के लिए चरवा से आधार कार्ड की फोटो कॉपी मांगी थी। मुखिया ने कहा कि वह शर्मिंदा हैं कि चरवा उरांव के परिवार के लिए वह कुछ नहीं कर पाये। चरवा की पत्नी झिबेल की मौत गरीबी के कारण हुई है। मुखिया ने कहा कि वह अपने फंड से चरवा उरांव के परिवार की मदद करेंगे।

गांव का मुखिया तो शर्मिंदा है क्या नैतिकता और शर्मिंदगी का अंश मात्र भी शेष है हम मे और उन सब मे जो इस हालत के लिए जिम्मेदार हैं या वह जिन्हे इस तरह की किसी भी घटना को अंजाम न लेने देने की जिम्मेदारी के साथ हम चुन कर हम अपनी नुमाइंदगी सौंपते हैं।

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