पिछले करीब सात साल से जारी बातचीत के बाद घरेलू उद्योगों के हित से जुड़ी मूल चिंताओं का समाधान नहीं होने पर आखिरकार भारत ने चीन के समर्थन वाले RCEP समझौते से बाहर रहने का फैसला किया है। RCEP यानी क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी एक ऐसा समझौता है, जिस पर साइन करने से भारत चीन के चंगुल में बुरी तरह फंस सकता था। लेकिन मोदी सरकार ने घरेलू उद्योगों के हितों को देखते हुए इस समझौते में शामिल न होने का फैसला लिया है। प्रधानमंत्री मोदी ने RCEP शिखर सम्मेलन में हिस्सा तो लिया लेकिन वहां भारत के हितों के साथ कोई समझौता नहीं किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को इस शिखर बैठक में अपने संबोधन में ही इस फैसले की जानकारी देते हुए कहा कि भारत RCEP में शामिल नहीं होगा, प्रस्तावित समझौते से सभी भारतीयों के जीवन और आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने कहा कि भारत के उठाए गए मुद्दों और चिंताओं का संतोषजनक ढंग से समाधान नहीं होने की वजह से उसने समझौते से बाहर रहने का फैसला किया है। आपको बता दें इस शिखर सम्मेलन में दुनिया के कई देशों के नेता उपस्थित थे। RCEP समझौता 10 आसियान देशों और 6 अन्य देशों यानी ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, न्यूजीलैंड और दक्षिण कोरिया के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता है। इस समझौते में शामिल 16 देश एक-दूसरे को व्यापार में टैक्स कटौती समेत तमाम आर्थिक छूट देंगे। विशेषज्ञों की माने तो ये समझौता देश के लिए आत्मघाती होता। आपको बता दें RCEP में शामिल होने के लिए भारत को आसियान देशों, जापान और दक्षिण कोरिया से आने वाली 90 फीसदी वस्तुओं पर से टैरिफ हटाना पड़ता. इसके अलावा, चीन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से आने वाले 74 फीसदी सामान को टैरिफ से मुक्त करना पड़ता. ये कदम भारत के लिए आत्मघाती साबित हो सकता था।
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