क्या फिर से लागू होगा ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’? समिति अध्यक्ष रामनाथ कोविंद ने दिया जवाब

पूर्व राष्ट्रपति और ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ (One Nation One Election) समिति के अध्यक्ष रामनाथ कोविंद (Ramnath Kovind) ने कहा कि इस विचार को दोबारा लागू करने के संबंध में हम सभी दलों से उनके रचनात्मक समर्थन के लिए अनुरोध कर रहे हैं. देश के लिए फायदेमंद. यह राष्ट्रीय हित का मामला है.

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ समिति के अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि समिति के सदस्य जनता के साथ मिलकर इस विचार (वन नेशन-वन इलेक्शन) को दोबारा लागू करने के संबंध में सरकार को सुझाव देंगे. मीडिया से बात करते हुए रामनाथ कोविंद ने कहा, ‘भारत सरकार ने एक उच्च स्तरीय समिति बनाई और मुझे इसका अध्यक्ष नियुक्त किया. समिति के सदस्य जनता के साथ मिलकर इसे दोबारा लागू करने के संबंध में सरकार को सुझाव देंगे!

रामनाथ कोविंद ने कहा कि मैंने सभी राष्ट्रीय स्तर पर पंजीकृत राजनीतिक दलों के साथ संवाद किया है और उनके सुझाव मांगे हैं. हर राजनीतिक दल ने किसी न किसी समय इसका समर्थन किया है. हम सभी दलों से उनके रचनात्मक समर्थन के लिए अनुरोध कर रहे हैं. यह देश के लिए फायदेमंद है. यह राष्ट्रीय हित का मामला है.’ रामनाथ कोविंद ने बताया कि किसी भी राजनीतिक दल का इससे कोई लेना-देना नहीं है और इससे अंततः जनता को फायदा होगा क्योंकि जो भी पैसा बचेगा उसका उपयोग विकास कार्यों में किया जा सकता है

सभी कानूनी और संवैधानिक संभावनाओं पर विस्तार से चर्चापूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द की अध्यक्षता में ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ पर समिति की दूसरी बैठक 25 अक्टूबर को राष्ट्रीय राजधानी में संपन्न हुई. बैठक के दौरान एक देश एक चुनाव के कार्यान्वयन के संबंध में सभी कानूनी और संवैधानिक संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा की गई. इस बीच दिल्ली के जोधपुर ऑफिसर हॉस्टल में पहली मीटिंग करीब 45 मिनट और दूसरी मीटिंग करीब डेढ़ घंटे तक चली.

लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ होंकेंद्र सरकार ने इससे पहले सितंबर में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के मुद्दे की जांच करने और देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए सिफारिशें करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया था. ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ के पीछे केंद्रीय विचार पूरे देश में चुनावों की आवृत्ति को कम करने के लिए सभी राज्यों में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों के समय को समकालिक करना है. यह अवधारणा 1967 तक प्रचलित थी, लेकिन दलबदल, बर्खास्तगी और सरकार के विघटन जैसे विभिन्न कारणों से यह बाधित हो गई.

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