केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक रहे Ram Vilas Paswan अब पंचतत्व में विलीन हो चुके हैं। इसके साथ ही चिराग पासवान के सिर से सियासी संतुलन बनाए रखने वाला हाथ भी उठ गया है। चिराग ने पार्टी पर मजबूत पकड़ बनाई है, साथ ही बिहार में मुख्यमंत्री Nitish Kumar का विरोध करते हुए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में केंद्र की सत्ता में संतुलन भी बनाया है, लेकिन पिता की गैर मौजूदगी में अपनी स्थिति को मजबूत बनाए रखना उनकी बड़ी चुनौती होगी। इसमें आगामी विधानसभा चुनाव भी किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं होगा।
LJP की कमान संभालने के बाद चिराग पासवान ने 2 बड़े सियासी फैसले लिए हैं। पहला झारखंड में NDA से अलग होकर चुनाव लड़ने का तो दूसरा मुख्यमंत्री Nitish Kumar के कार्यकाल में भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर उनके खिलाफ बिहार में NDA से अलग होने का। चिराग ने प्रधानमंत्री Narendra Modi में आस्था प्रकट करते हुए कहा है कि अगर बिहार में BJP के नेतृत्व में सरकार बनी तो उनकी पार्टी उसे समर्थन देगी।
JDU की खिलाफत के दूरगामी परिणाम होने तय
जाहिर है, चिराग पासवान के इस बयान के राजनीतिक अर्थ निकाले जा रहे हैं। चिराग ने जिस तरह नीतीश कुमार पर हमलावर होते हुए बिहार में NDA से अलग हो कर जनता दल यूनाइटेड के खिलाफ चुनाव लड़ने का फैसला किया, उसके दूरगामी परिणाम तय हैं। LJP के प्रत्याशी अगर बड़े पैमाने पर वोट काटने में सफल रहे तो कई सीटों पर JDU का परिणाम प्रभावित हो सकता है। ऐसा हुआ तो चुनाव परिणाम के बाद के अंकगणित में BJP ‘बड़ा भाई’ बन कर उभर सकती है।
NDA में सत्ता समीकरण बदलना चाहते हैं चिराग
BJP ने पहले से ही घोषित कर रखा है कि चुनाव परिणाम जो भी रहें, NDA के मुख्यमंत्री Nitish Kumar ही बनेंगे, लेकिन BJP तथा LJP को अधिक सीटें मिलने पर चिराग बिहार में NDA का सत्ता समीकरण बदलने की कोशिश तो कर ही सकते हैं। चिराग यही चाहते भी हैं। चिराग कहते हैं कि बिहार में BJP के नेतृत्व में सरकार बननी चाहिए, जिसका वे समर्थन करेंगे। अगर ऐसा हुआ तो चिराग बिहार की राजनीति में किंग मेकर की भूमिका में नजर आएंगे। ऐसा हीं भी हुआ, लेकिन LJP को पहले से अधिक सीटें मिलीं और वह JDU के चुनाव परिणाम को प्रभावित कर BJP को बढ़त दिलाने में कामयाब रही, तब भी चिराग का मकसद सधता दिख रहा है। ऐसी स्थिति में भी चिराग मजबूत होकर उभरेंगे।
पार्टी व परिवार को एकजुट रखने की बड़ी चुनौती
लेकिन, बड़ा सवाल यह है कि अगर ऐसा नहीं हुआ तब? जाहिर है, तब चिराग को मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। तब चिराग के सामने पार्टी को एकजुट रखने की चुनौती खड़ी हो सकती है। राम विलास पासवान पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं के साथ रह स्तर पर घुलते-मिलते रहते थे। पार्टी कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित करते हुए संतुलन बिठाकर चलना चिराग के लिए आसान नहीं होगा, क्योंकि अभी तक वे कार्यकर्ताओं से अधिक घुलते-मिलते नहीं रहे हैं। चिराग के सामने पार्टी के साथ परिवार को भी एकजुट रखने की चुनौती है। Ram Vilas Paswan ने परिवार को कई लोगों की राजनीति में एंट्री कराई। वे पार्टी में अहम स्थान रखते हैं। परिवार को सहजेकर रखने से पार्टी में भी मजबूती मिलनी तय है।
क्या पिता की तरह बन पाएंगे बड़ा दलित चेहरा?
Ram Vilas Paswan बिहार की राजनीति की हर नब्ज को पहचानते थे। उन्होंने जिस तरह बिहार और केंद्र की राजनीति में तालमेल बैठाते हुए आधी सदी तक राजनीति में अपनी अहमितयत बनाए रखी, वह साधारण बात नहीं है। राम विलास पासवान के निधन के साथ बिहार की राजनीति का एक बड़ा दलित चेहरा भी नहीं रहा। उन्होंने हर वर्ग से तालमेल बैठाते हुए दलित राजनीति को अपना आधार बनाए रखा। ऐसा कर पाना भी Chirag Paswan के सामने बड़ी चुनौती होगी। खास कर तब, जब बिहार में Congress की मीरा कुमार से लेकर हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के Jiranram Manjhi तक कई दलित चेहरे पहले से मौजूद हैं।