Rahul Gandhi News: राहुल गांधी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS), भारतीय जनता पार्टी (BJP), संविधान, आरक्षण, अंबेडकर और अडानी-अंबानी से इतर कोई मुद्दा नहीं दिखता. उनके ऊटपटांग बोलने की आदत ऐसी कि कई जगहों पर कानूनी पचड़े में उलझने के बावजूद अब अपनी लड़ाई इंडियन स्टेट से बोल कर फिर फंस गए हैं. इन मुद्दों पर बोलते-बोलते वे न केंद्र में सत्ता हासिल कर पाए और न हरियाणा- महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में कोई कमाल कर पाए. अब भी वे इन्हीं हथियारों से बिहार में विधानसभा की जंग लड़ेंगे. बिहार दौरे में वे इसका संकेत दे चुके हैं.
Bihar Politics: महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस ने समीक्षा बैठक की. बैठक में राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने दो महत्वपूर्ण बातें कहीं. पहली बात यह कि संगठन कमजोर हो गया है. दूसरी बात यह कि राज्यों के चुनाव अब राष्ट्रीय मुद्दों पर नहीं लड़े जा सकते. इस बार राहुल गांधी ने खरगे को सलाह दी कि संगठन में व्यापक बदलाव कीजिए. उसके तुरंत बाद यूपी की तमाम कमेटियां भंग कर दी गई. पर राहुल ने खरगे की दूसरी बात पर शायद गौर नहीं किया. लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल ने संविधान, आरक्षण, अंबेडकर और जाति जनगणना का जो सबक रटा, उसे हरियाणा और महाराष्ट्र में भी दोहराया और इस बार बिहार आए तो वहां भी उनकी जुबान पर यही बातें थीं.
अपनी ही धुन में रमे रहते हैं राहुल गांधी
बिहार में मुद्दों की कमी नहीं थी. खबरों के जरिए या अगर अपने नेताओं से उनका संपर्क रहता होगा तो उन्हें जरूर मालूम होता कि तेजस्वी यादव ने अब जाति जनगणना का राग अलापना बंद कर दिया है. संविधान पर भी वे उस तरह अब मुखर नहीं हैं, जैसा लोकसभा चुनाव के दौरान आरजेडी के नेता बोलते थे. शायद तेजस्वी यादव को इस बात का इल्म है कि खोटे सिक्के अधिक दिन तक नहीं खनकते. संविधान और आरक्षण के नैरेटिव से लोकसभा में कांग्रेस और विपक्ष की स्थिति सुधरी जरूर, लेकिन जन जागरूकता के कारण विपक्ष सत्ता से दूर ही रह गया. इसलिए बिहार के मौजूदा मुद्दों पर ही चुनाव लड़ना उचित है. पर, राहुल गांधी तो अपने धुन के पक्के हैं. जो समझ लिया और तय कर लिया, उसी लीक पर चलेंगे.
बिहार में संविधान चर्चा, राजेंद्र को ही भूले
अपनी समाप्ति की औपचारिक घोषणा का घोषणा का इंतजार कर रहे इंडिया ब्लॉक में शामिल विपक्षी पार्टियों को संविधान सुरक्षा की उतनी चिंता नहीं सता रही है, जितनी राहुल गांधी को है. संविधान सुरक्षा को लेकर हुए कांग्रेस के कार्यक्रम में ही राहुल शामिल होने बिहार आए थे. आश्चर्य हुआ कि उन्होंने अंबेडकर को तो शिद्दत से याद किया, लेकिन संविधान सभा के अध्यक्ष रहे डा. राजेंद्र प्रसाद की याद उन्हें नहीं आई. बिहार राजेंद्र प्रसाद की जन्मस्थली है. यह हाल तब है, जब राहुल गांधी संविधान की लाल किताब अपनी जेब में लेकर घूमते हैं. यानी संविधान के बहाने वे बिहार को कनेक्ट नहीं कर पाए. तेजस्वी यादव ने भी उनकी भावना को समझते हुए ही अंबेडकर की प्रतिमा उन्हें भेंट कर दी. राहुल उनकी जड़ खोदने में लगे लालू यादव से भी मिले. लालू ने उन्हें ऐसा पाठ पढ़ाया कि विधानसभा चुनाव तक राहुल की बोलती बंद ही रहेगी.
पिछड़ों के लिए चिंतित, VP की चर्चा नहीं
राहुल दलितों-पिछड़ों के हक के लिए तो खूब बोले, लेकिन उन्होंने पिछड़ों को मुकाम देने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह का भूल कर भी जिक्र नहीं किया. राहुल भूल गए कि पिछड़ों को अगर देश में आरक्षण देकर किसी ने उन्हें सशक्त किया तो वे विश्वनाथ प्रताप सिंह और कर्पूरी ठाकुर ही थे. इतना ही नहीं, भाजपा के उदय की पटकथा का आधार भी वीपी सिंह का आरक्षण ही बना. वीपी सिंह की मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने की घोषणा के बाद मचे देशव्यापी खून खराबे को ही शांत कराने के लिए भाजपा ने कमंडल की अवधारणा पेश की. भाजपा का यह प्रयोग सफल भी रहा. आज भाजपा जिस मुकाम पर है, उसमें आरक्षण विरोधी आंदोलन का भी योगदान है. लेकिन वीपी सिंह के बारे में उन्होंने बोलना मुनासिब नहीं समझा. राहुल तो अपने ही धुन में रहते हैं!
राहुल गांधी को बिहार में नहीं मिले स्थानीय मुद्दे
बिहार में इस साल विधानसभा का चुनाव है. राजनीतिक दलों की बेचैनी देख कर लगता है कि समय से पहले भी चुनाव हो सकता है. सत्ताधारी एनडीए अपनी डबल इंजन सरकार की उपलब्धियां गिना रहा है तो महागठबंधन सरकार की नाकामियां बता रहा है. बिजली का स्मार्ट मीटर, लैंड सर्वे, शराबबंदी कानून की विफलता, बढ़ते अपराध और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है. राहुल गांधी बिहार आए तो ये मुद्दे उन्हें नहीं दिखे. उल्टे उन्होंने उस मुद्दे को महत्वपूर्ण माना, जिससे महागठबंधन का अग्रणी दल आरजेडी अब किनारा कर चुका है. बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) अभ्यर्थियों से राहुल ने मुलाकात की, जिसकी हवा अभ्यर्थियों के आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल जन सुराज के नेता प्रशांत किशोर ने अब यह कह कर निकाल दी कि राहुल इतने चिंतित हैं तो कुछ महंगे वकीलों की व्यवस्था ही करा दें.
बिहार में जाति सर्वे को फेक बता कर फंसे
राहुल ने अपने दौरे में एक नए विवाद का बीजारोपण भी कर दिया. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के दबाव पर नीतीश कुमार ने बिहार में जाति सर्वेक्षण कराया. तब नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ सरकार चला रहे थे. तेजस्वी ने इसकी वाहवाही भी लूटी. सर्वेक्षण में आए आंकड़ों के आधार पर महागठबंधन सरकार ने आरक्षण की सीमा भी बढ़ा कर 75 प्रतिशत कर दी. महागठबंधन सरकार की इस बड़ी उपलब्धि को राहुल ने फर्जी बता दिया. वे भूल गए कि जिस महागठबंधन सरकार ने जाति सर्वेक्षण कराया, उसमें उनकी पार्टी कांग्रेस भी शामिल थी. भाजपा के खिलाफ हवा बनाने के लए लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्षी दलों ने इस उपलब्धि का प्रचार भी किया. राहुल गांधी ने इसे तब बेहतर काम बताया और राष्ट्रीय स्तर पर जाति जनगणना कराने को वादा किया. उन्हें यह मुद्दा इतना प्रभावशाली लगा कि अब तक नगनी टेर छेड़ रहे हैं.
कर्नाटक की जाति सर्वे रिपोर्ट पर चुप्पी
राहुल गांधी का जाति जनगणना के प्रति आकर्षण समझ में आता है, लेकिन वे इसकी राष्ट्रीय स्तर पर जरूरत बताते समय यह भूल जाते हैं कि कर्नाटक में उनकी ही सरकार है. कांग्रेस शासन में ही वर्षों पहले वहां जाति जनगणना हुई थी. रिपोर्ट अब तक लागू क्यों नहीं हुई, यह राहुल गांधी कभी नहीं बताते. जनगणना सिद्धारमैया सरकार ने कराई थी. उसके बाद बनी जेडी (एस)-कांग्रेस गठबंधन की सरकार और अब वर्तमान भाजपा सरकार के भी रिपोर्ट जारी करने में पसीने छूट रहे हैं. इस पर हुए 150 करोड़ रुपए खर्च की भी किसी को परवाह नहीं. नीतीश कुमार ही ऐसे रहे, जिन्होंने कई विवादों के बाद 500 करोड़ खर्च कर जाति सर्वेक्षण करा लिया. आंकड़ों के हिसाब से नीतियां बनाई. आरक्षण की सीमा बढ़ाई. भले वह कानूनी पचड़े में फंस गया.

