Atal Tunnel Inauguration

पीएम मोदी ने रोहतांग में दुनिया की सबसे बड़ी सुरंग ‘अटल टनल’ देश को किया समर्पित

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रोहतांग में दुनिया की सबसे बड़ी ‘Atal Tunnel ‘ का लोकार्पण किया। रोहतांग में स्थित 9.02 किलोमीटर लंबी ये टनल मनाली को लाहौल स्फीति से जोड़ती है। इस टनल की वजह से मनाली और लाहौल स्फीति घाटी सालों भर एक-दूसरे से जुड़े रह सकेंगे।
लाहौल घाटी के बाशिंदों के लिए आज बड़ा दिन है। सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण ‘Atal Tunnel ‘ का उद्घाटन किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रोहतांग में दुनिया की सबसे बड़ी ‘अटल टनल’ का लोकार्पण किया। इस दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी मौजूद रहे. यह सुरंग 9.02 किमी लंबी है।

PM मोदी दोपहर 12 से 12:45 तक सिस्सू में जनसभा करेंगे, जबकि 12:50 पर वापस टनल होकर सोलंगनाला पहुंचेंगे और भाजपा नेताओं को संबोधित करेंगे।

रोहतांग में स्थित 9.02 किलोमीटर लंबी ये टनल मनाली को लाहौल स्फीति से जोड़ती है। इस टनल की वजह से मनाली और लाहौल स्फीति घाटी सालों भर एक-दूसरे से जुड़े रह सकेंगे। इससे पहले बर्फबारी की वजह से लाहौल स्फीति घाटी साल के 6 महीनों तक देश के बाकी हिस्सों से कट जाती थी।
बता दें कि ‘अटल टनल’ का निर्माण अत्याधुनिक तकनीक की मदद से पीर पंजाल की पहाड़ियों में किया गया है। ये समुद्र तट से 10,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। ‘Atal Tunnel ‘ के बन जाने की वजह से मनाली और लेह के बीच की दूरी 46 किलोमीटर कम हो गई है और दोनों स्थानों के बीच सफर में लगने वाले समय में 4 से 5 घंटे की कमी आएगी।

‘अटल टनल’ का आकार घोड़े की नाल जैसा है। इसका दक्षिणी किनारा मनाली से 25 किलोमीटर की दूरी पर समुद्र तल से 3060 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जबकि उत्तरी किनारा लाहौल घाटी में तेलिंग और सिस्सू गांव के नजदीक समुद्र तल से 3071 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

10.5 मीटर चौड़ी इस सुरंग पर 3.6 x 2.25 मीटर का फायरप्रूफ आपातकालीन निकास द्वार बना हुआ है। ‘Atal Tunnel ‘ से रोजाना 3000 कारें, और 1500 ट्रक 80 किलोमीटर की स्पीड से निकल सकेंगे।

‘अटल टनल’ में सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम किए गए हैं। हर 150 मीटर की दूरी पर टेलीफोन की व्यवस्था की गई है ताकि आपात स्थिति में संपर्क स्थापित किया जा सके। हर 60 मीटर की दूरी पर अग्निशमन यंत्र रखे गए हैं। 250 की दूरी पर सीसीटीवी की व्यवस्था है।

वायु की गुणवत्ता जांचने के लिए हर 1 किलोमीटर पर मशीन लगी हुई हैं। गौरतलब है कि रोहतांग दर्रे के नीचे इसको बनाने का फैसला 3 जून 2000 को लिया गया था। इसकी आधारशिला 26 मई 2002 को रखी गई थी।

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