राजनीतिक आंकड़ों की लिहाज से पूर्वोत्तर भारत बीजेपी के लिए शुरू से सबसे कठिन रहा है. बीजेपी अपने जिन सिद्धांतों के चलते पूरे देश में विस्तार करती रही है वो सभी चीजें पूर्वोत्तर में उसके विकास के लिए एक बहुत बड़ा रोड़ा था. पर ऐसा क्या हुआ कि बीजेपी पूर्वोत्तर के राज्यों में फिर सरकार बनाने जा रही है.
दरअसल पूर्वोत्तर के मतदाताओं ने धर्म के ऊपर विकास को तरजीह दी है. पिछले सात दशकों में कांग्रेस राज में अलग-थलग पड़ चुका पूर्वोत्तर खुद को अभी मेनस्ट्रीम में अपने आपको समझ रहा है.
1- मोदी का लृगातार दौरा करीब 8 साल में 53 बार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने 8 साल के कार्यकाल के दौरान पूर्वोत्तर राज्यों (North East States)पर विशेष ध्यान दिया है. सत्ता संभालने के बाद करीब 50 बार से अधिक पूर्वोत्तर भारत का दौरा करने वाले देश के एकमात्र प्रधानमंत्री बन गए. जाहिर है कि आजादी के बाद से इस तरह से फोकस्ड होकर किसी नेता ने इस एरिया के बारे में बात नहीं की. पूर्वोत्तर के लोग शेष भारत से खुद को अलग ही मानते थे. पीएम मोदी ने उनकी इस भावना को समझा और लगातार दौरा, इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास पर जोर देकर उन्हें यह महसूस कराया कि आप भी भारत के अभिन्न अंग हैं.
2- पूर्वोत्तर भारत में कनेक्टिविटी सुधारने पर मोदी सरकार का विशेष जोर
बीते दिनों अरुणाचल प्रदेश में ग्रीनफील्ड हवाई अड्डे डोनी पोलो और अन्य विकास परियोजनाओं के उद्घाटन के अवसर पर पीएम मोदी ने कहा कि कि आजादी के बाद नॉर्थ ईस्ट बिल्कुल अलग तरह के दौर का गवाह रहा है. तब दिल्ली में बैठकर पॉलिसी बनाने वालों को सिर्फ इतने भर से मतलब था कि किसी तरह यहां चुनाव जीत जाएं. जब अटल जी की सरकार बनी, उसके बाद पहली बार इसे बदलने का प्रयास किया गया. वो पहली सरकार थी, जिसने नॉर्थ ईस्ट के विकास के लिए अलग मंत्रालय बनाया लेकिन उनके बाद आई सरकार ने उस मूवटेंम को आगे नहीं बढ़ाया. इसके बाद बदलाव का नया दौर 2014 के बाद शुरू हुआ, जब आपने मुझे सेवा करने का अवसर दिया.
डोनी-पोलो एयरपोर्ट, अरुणाचल का चौथा ऑपरेशनल एयरपोर्ट है. आजादी के बाद से सात दशकों में पूरे नॉर्थ ईस्ट में केवल 9 एयरपोर्ट थे. जबकि हमारी सरकार ने सिर्फ आठ वर्षों में सात नए एयरपोर्ट बना दिए हैं. अब नॉर्थ ईस्ट आने-जाने वाली उड़ानों की संख्या भी दोगुनी से ज्यादा हो चुकी है.
पीएम मोदी के कार्यभार संभालने के बाद से रेल कनेक्टिविटी अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा तक पहुंच चुकी है. पांच अन्य परियोजनाएं लाइन में हैं. इसके साथ ही पूर्वोत्तर क्षेत्र में राष्ट्रीय राजमार्गों की लंबाई वर्ष 2014-15 में 10,905 किलोमीटर से बढ़कर वर्तमान समय में 13,710 किलोमीटर हो चुकी है.
पूर्वोत्तर क्षेत्र में विकास की कमी को दूर करने के लिए केंद्रीय बजट 2022-23 में नई योजना, पीएम-डेवआईएनई की घोषणा की गई थी. मोदी सरकार ने इसके साथ ही सभी मंत्रालयो को पूर्वोत्तर क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए विशेष सहायता निरंतर देने पर विशेष जोर दिया. केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयों और विभागों को उत्तर पूर्व क्षेत्र को लाभान्वित करने के लिए अपने आवंटन से सकल बजट सहायता (जीबीएस) का 10 प्रतिशत खर्च करना आवश्यक है.
3-बीजेपी ने अपने आपको यहां पर बदला है
बीजेपी की छवि आम तौर पर पूरे देश में हिंदुत्व को बढ़ावा देने वाली पार्टी के रूप में है. बीफ को लेकर पार्टी बहुत सेंसेटिव रही है. मगर पूर्वोत्तर में तमाम बीजेपी नेताओं ने पब्लिकली यह स्वीकार किया है कि वो बीफ खाते हैं. ये उनके कल्चर में है. बीजेपी ने यहां इस मुद्दे को लेकर उदार रुख अपनाया है. इसी तरह ईसाई बहुल क्षेत्रों में हिंदुत्व की बात से दूरी बनाए रखी . हिंदी को लेकर भी कहीं जोर जबरदस्ती वाला रुख नहीं है. इस तरह देखा जाए तो पार्टी यहां पर पूरी तरह अपने को बदल चुकी है.
4-सीएए को मुद्दा नहीं बना सका विपक्ष
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम यानी सीएए का मुद्दा पूर्वोत्तर के तीन चुनावी राज्यों त्रिपुरा, नागालैंड, मेघालय में चल रहे चुनाव प्रचार जोर नहीं पकड़ सका. हलांकि किसी राख में दबी चिंगारी की तरह ये मुद्दा पूरे नॉर्थ ईस्ट में अंदर ही अंदर सुलग रहा था. ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (एएएसयू), नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन (एनईएसओ) और कांग्रेस और सीपआई-एम के नेतृत्व वाली वामपंथी पार्टियों के साथ कई दूसरे संगठन भी चुनावी मुहिम के दौरान सीएए का पुरजोर विरोध करते रहे. त्रिपुरा में चुनाव प्रचार के दौरान टिपरा मोथा पार्टी (टीएमपी) सहित कुछ स्थानीय दलों ने सीएए के खिलाफ अपनी आवाज उठाई. टीएमपी ने 16 फरवरी के विधानसभा चुनाव के बाद त्रिपुरा में पार्टी के सत्ता में आने पर 150 दिनों के अंदर सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पास करने का वादा किया था. हो सकता है कि टीएमपी को जो कुछ सीटें मिलीं हैं उनके लिए उनका ये एजेंडा जिम्मेदार रहा हो.
5-चीन का डर
पूर्वोत्तर के लोगों के बीच भी चीन का डर लगातार बना रहता है. बीजेपी को जीताकर लोग समझते हैं कि चीन से उनकी रक्षा हो सकेगी. दरअसल भारतीय सीमाओं पर भारत सरकार की रक्षा संबंधी तमाम योजनाओं ने यहां के लोगों में यह भरोसा जगाया है कि भारत सरकार चीन से टक्कर लेने में पीछे नहीं हटेगी. यहां के लोगों को पिछले सात दशक और आज के दशक में अंतर स्पष्ट दिख रहा है. यहां के लोग चीन की तरफ देखते हैं तो पाते हैं कि तिब्बत के साथ जो हुआ, वैसा ही उनके साथ हो सकता है. अगर म्यांमार के साथ गए तो वहां अल्पसंख्यकों के साथ हुए सलूक को देख चुके हैं. बांग्लादेश के चटगांव में आदिवासियों का क्या हाल हुआ यह किसी से छुपा नहीं है.

