…तो टाला जा सकता था महाकुंभ हादसा? अतीत से सबक न लेना योगी सरकार को पड़ा भारी

साल 1954 में प्रयागराज के ही कुंभ में हुए हादसे और हरिद्वार में 1986 के कुंभ में हुए हादसे में जो समानता थी, ठीक वही स्थिति 2025 की अमावस्या पर हुई भगदड़ में भी देखने को मिली. तीनों ही दुर्घटनाओं में जो बातें कॉमन थीं, उनमें वीवीआईपी लोगों को स्नान कराने के लिए आम श्रद्धालुओं की अनदेखी करना और भीड़ को डायवर्ट करने की प्रभावी व्यवस्था का ना होना.

प्रयागराज कमिश्नर जब चूरन बांटने वाले की भाषा में बोलेगा तो कौन उसको गंभीरता से लेगा. डिजिटल कुंभ कराने का दावा किया जा रहा था लेकिन सामान्य कुंभ भी ढंग से नहीं हो पाया‘… सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह का बयान ये बताने के लिए काफी है कि पुलिस सिस्टम में टॉप पर रहे अधिकारी भी महाकुंभ क्षेत्र के पुलिसिंग सिस्टम से खुश नही हैं. 29 जनवरी को महाकुंभ क्षेत्र में हुई भगदड़ पर कमेटी गठित कर दी गई है और उसकी जांच भी शुरू हो गई है.

एसटीएफ से लगाकर एटीएस और इंटेलिजेंस की कई टीमें लगी हुई हैं. मगर, मूल प्रश्न अभी भी वहीं खड़ा है कि क्या ये दुर्घटना टाली जा सकती थी? कुंभ के इतिहास में ये कोई पहली दुर्घटना नहीं थी लेकिन दुर्भाग्य यही है कि हर दुर्घटना के पीछे की कहानी वही है. आंकड़ों का खेल और आरोप- प्रत्यारोप का तरीका भी वही है.

तब इसका दोष जवाहर लाल नेहरू पर लगा

साल 1954 में प्रयागराज के ही कुंभ में हुए हादसे और हरिद्वार में 1986 के कुंभ में हुए हादसे में जो समानता थी, ठीक वही स्थिति 2025 की अमावस्या पर हुई भगदड़ में भी देखने को मिली. तीनों ही दुर्घटनाओं में जो बातें कॉमन थीं, उनमें वीवीआईपी लोगों को स्नान कराने के लिए आम श्रद्धालुओं की अनदेखी करना, आने और जाने का एक ही मार्ग होना, भीड़ को डायवर्ट करने की प्रभावी व्यवस्था का ना होना.

ये कुछ ऐसे पॉइंट हैं जो तीनों कुंभ में घटी दुर्घटनाओं में देखने को मिलते हैं. पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के समय में सन 1954 के कुंभ में जब कई लोगों की जान गई, तब इसका दोष पंडित जवाहर लाल नेहरू पर लगा और कहा गया कि नेहरू जी को देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी और भगदड़ मच गई. हालांकि ये बात सामने आई थी कि शाही स्नान के लिए जा रहे हाथियों के बिदकने से ये हादसा हुआ और तभी से शाही स्नान (अब अमृत स्नान) में हाथियों को प्रतिबंधित कर दिया गया था.

इन पॉइंट्स को समिति ने सबसे महत्वपूर्ण माना था

उस समय भी आंकड़ों पर सवाल उठे थे. सरकार ने मरने वालों की संख्या 316 बताई थी. जबकि अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने 800 लोगों के मरने की बात कही थी. तब जवाहर लाल नेहरू ने जस्टिस कमला कांत वर्मा कमेटी का गठन किया था. कमेटी ने कुंभ जैसे बड़े आयोजनों में वीवीआईपी कल्चर को हादसों के लिए सबसे बड़ा कारण माना था. साथ ही आने और जाने के मार्ग अलग-अलग होने और एक साथ भीड़ के अचानक से आ जाने पर उनके डायवर्जन की प्रभावी व्यवस्था के होने को अनिवार्य माना था.

कई पन्नों की रिपोर्ट में इन तीन पॉइंट्स को समिति ने सबसे महत्वपूर्ण माना था. मगर, दुर्भाग्य देखिए कि 1986 के हरिद्वार कुंभ में भी वही गलतियां दोहराई गई जो पंडित नेहरू के समय घटी थीं. तब के सीएम वीर बहादुर सिंह अपनी कैबिनेट के साथ पहुंच गए कुंभ और पूरा प्रशासन उनको स्नान कराने में व्यस्त हो गया और भीड़ बढ़ती गई क्योंकि माननीय स्नान कर रहे थे.

अखिलेश ने जस्टिस ओंकारेश्वर को जांच सौंपी थी

नतीजा ये हुआ कि वहां भी एक बड़ी दुर्घटना घट गई. कई लोगों की जान चली गई. सरकार की खूब आलोचना हुई और किरकिरी से बचने के लिए वीर बहादुर सिंह ने जस्टिस वासुदेव मुखर्जी समिति गठित की. कमिटी ने भी अपनी सिफारिश में कमोवेश वही बातें कहीं, जो जस्टिस वर्मा की कमेटी में थीं. 2013 के कुंभ में भी हुए हादसे में 39 से ज़्यादा लोगों की जान चली गई. हालांकि, वो भगदड़ आज के प्रयागराज और तब के इलाहाबाद रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर हुई थी.

आखिरी समय में प्लेटफॉर्म बदलने से ये हादसा हुआ था. तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जस्टिस ओंकारेश्वर भट्ट को हादसे की जांच सौंपी थी. जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में रेलवे, परिवहन विभाग और इलाहाबाद प्रशासन को इसके लिए जिम्मेदार माना था. अफनी रिपोर्ट में सरकारी मशीनरी के बीच कोऑर्डिनेशन के अभाव को हादसे की मुख्य वजह बताया गया था.

लगता तो यही है कि तैयारी पूरी थी ही नहीं

इस हादसे के 12 साल बाद 29 जनवरी को भी महाकुंभ क्षेत्र में मौनी अमावस्या के दिन तीन अलग-अलग घटनाओं में 49 लोगों की जान चली गई, सैकड़ों लोग लापता हैं. एक्स पर विक्रम सिंह ने कहा, लगता तो यही है कि ऐसे हादसों के लिए तैयारी पूरी थी ही नहीं. आपके पास इतने बड़े आयोजन के लिए कानून और संस्तुतियां दोनों थीं लेकिन उनका पालन किया नहीं गया.

1954 के हादसे के बाद से जितने भी हादसे हुए उन सब में जो कमेटियां बनीं, उन सबने कहा कि महत्वपूर्ण स्नान पर वीवीआईपी पर पूरी तरह रोक लगे. यहां तक कि धार्मिक स्थलों पर भी झांकी दर्शन की ही व्यवस्था हो लेकिन इन तीन घटनाओं में भी वही गलतियां दोहराई गई, जो 1954 और 1986 में दोहराई गई थीं.

पूर्व की कमेटियों ने इस ओर भी इशारा किया था

उस दिन घंटों चलकर संगम नोज पर पहुंची भीड़ के डायवर्जन की कोई प्लानिंग नहीं दिखी. पूरे महाकुंभ में श्रद्धालुओं की यही शिकायत रही कि वीवीआईपी कल्चर से सनातनियों के मन में आक्रोश है. प्लांटून ब्रिजों को बंद करके आम श्रद्धालुओं को भीड़ के रूप में बदला गया और इसके पीछे प्रशासनिक लापरवाही एक बड़ी वजह रही

एक्स पर पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह उन पुलिस अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने के भी पक्षधर दिखे जिन्होंने आम श्रद्धालुओं की जगह वीवीआईपी स्नान के लिए सुरक्षाकर्मियों की ड्यूटी लगाई. विक्रम सिंह ने कहा कि पूर्व की कमेटियों ने इस ओर भी इशारा किया था कि संगम के एक बड़े भूभाग को रिज़र्व एरिया के तौर पर रखा जाए. ताकि आपात स्थिति में उसका उपयोग हो सके. मगर, ये सिफारिश भी भुला दी गई.

विजय विश्वास पंत पंडे की तरह व्यवहार कर रहे थे

उन्होंने कहा, हालांकि योगी सरकार ने अधिकारियों की नियुक्ति, मॉनिटरिंग और मेला क्षेत्र में बाकी व्यवस्था बहुत बेहतर ढंग से की थी. मगर, हादसों की मूल वजहों पर प्रभावी तरीके से काम नहीं कर पाई. विक्रम सिंह वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के व्यवहार पर भी नाराज दिखे. उन्होंने कहा कि प्रयागराज मंडलायुक्त विजय विश्वास पंत किसी पंडे की तरह व्यवहार कर रहे थे. वो चूरन बेचने वाले की तरह बोल रहे थे. उनको कोई गंभीरता से क्यों लेगा? पूरे महाकुंभ की ब्रांडिंग ऐसी की गई थी की मानो यहां न आना जीवन की सबसे बड़ी भूल होगी.

उन्होंने कहा, डिजिटल कुंभ का दावा था लेकिन सामान्य कुंभ भी अच्छे से नहीं हो पाया. उसी का असर रहा कि 29 जनवरी यानी कि मौनी अमावस्या के दिन योगी सरकार के अनुसार करीब छह करोड़ लोग मेला क्षेत्र में मौजूद थे लेकिन उनकी संख्या के अनुपात में ना ही कोई तैयारी थी और ना ही पूर्व की गलतियों से सीखने की कोई भावना ही थी. इतना सब होने के बाद भी जब दुर्घटना हो गई तो सरकार को चाहिए था कि उसे स्वीकार करे और मृतकों की सूची जारी करे.

पूर्व डीजीपी ने कहा, जानकारी मिल रही है कि मृतकों का पोस्टमॉर्टम नहीं हो रहा है. अगर ऐसा है तो ये मामला गंभीर है. योगी सरकार ने अगर पूर्व की गलतियों से सबक ली होती और जस्टिस वर्मा और जस्टिस मुखर्जी की सिफारिशों को लागू की होती. तो सम्भवतः इस घटना से बचा जा सकता था और कई लोगों की जान बच सकती थी.

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