क्या CM नीतीश कुमार की ‘काट’ साबित होगा कन्हैया-तेजस्वी का साथ?

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) को छोड़ कन्हैया कुमार कांग्रेस (Kanhaiya Kumar joined Congress) में शामिल हो गए. जाहिर तौर पर बिहार की राजनीति के परिप्रेक्ष्य में यह बड़ी घटना मानी जा रही है. दरअसल सियासत के जानकार बताते हैं कि कांग्रेस (Congress) को कम से कम एक चेहरा तो मिला. लेकिन इसके साथ ही महागठबंधन (Mahagathbandhan) की भविष्य की राजनीति को लेकर कुछ आशंकाएं जन्म ले रही हैं. दरअसल बीते लोकसभा चुनाव में जिस तरह से कन्हैया कुमार से राजद नेता तेजस्वी यादव (RJD leader Tejaswi Yadav) ने किनारा कर रखा था. पर सवाल यह है कि क्या अब ये दोनों एक मंच पर नजर आएंगे? यह सवाल इसलिए क्योंकि भाकपा बीते बिहार विधान सभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में भी महागठबंधन (GranD Alliance) का हिस्सा थी. तब भी तेजस्वी और कन्हैया एक मंच पर नहीं आए थे. ऐसे में सियासी सवाल उठ रहे हैं कि क्या दोनों ही युवा नेता एक साथ काम करेंगे? क्या ये दोनों ही एक दूसरे की ताकत बनेंगे?

दरअसल, कांग्रेस में शामिल होने से पहले ही बीते 2019 के लोकसभा चुनाव से ही कन्हैया कुमार की तुलना अक्सर लालू प्रसाद यादव की राजनीतिक विरासत संभाल रहे पूर्व डिप्टी सीएम व वर्तमान में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव से की जाती रही है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि विपक्ष के दोनों ही नेता युवा हैं और लगभग हमउम्र भी हैं. इसके साथ ही दोनों की अपनी सियासी क्षमता भी है. एक ओर कन्हैया कुमार ओजस्वी वक्ता हैं तो तेजस्वी यादव का बिहार में बड़ा राजनीतिक जनाधार है.

वर्ष 2020 के बिहार विधान सभा चुनाव से पहले जनवरी-फरवरी में जब कन्हैया कुमार सीएए-एनआरसी के विरोध में ‘जन गण मन यात्रा’ निकाल रहे थे तो उनके मुखर अंदाज की चारों तरफ चर्चा होने लगी थी. यही वजह रही कि उन्होंने मुस्लिम समुदाय में सहानुभूति पाई और अपनी अच्छी पैठ भी बना ली. इसी दौरान कहा जाने लगा कि वह तेजस्वी को टक्कर दे रहे हैं. जाहिर है सियासी कयासबाजी के बीच तेजस्वी ने भी 23 फरवरी से बिहार की यात्रा शुरू कर दी और सीएए, एनआरसी के साथ बेरोजगारी को भी अपने एजेंडे में शामिल कर लिया.

हालांकि, इस दौरान एक कॉमन बात जो नजर आई वह ये कि कन्हैया और तेजस्वी एक-दूसरे पर निशाना नहीं साधते थे. कन्हैया के निशाने पर केन्द्र की मोदी सरकार होती थी तो तेजस्वी के निशाने पर बिहार की एनडीए सरकार और नीतीश कुमार-सुशील मोदी रहे. ऐसा माना जा रहा है कि इस बार भी ऐसी ही तस्वीर देखने को मिलेगी जब ये दोनों एक मंच पर एक साथ नजर आएंगे. लेकिन, सियासी सवाल फिर भी वही है कि क्या ये दोनों ही एक साथ मंच पर नजर आएंगे?

राजनीतिक जानकार यह भी मानते हैं कि अगर कन्हैया कुमार अकेले बिहार में मेहनत करते रहते तो हो सकता है कि वह आने वाले समय में विकल्प भी बन सकते थे. लेकिन, अब वह कांग्रेस में आ गए हैं तो स्थिति अब बदल गई है. उन्हें पार्टी की पॉलिसी को मानना ही पड़ेगा. दूसरी तरफ, तेजस्वी यादव को तैयार विकल्‍प के तौर पर देखा जाता है. बिहार में नीतीश कुमार के विकल्प के रूप में तेजस्वी चेहरा हैं. कन्हैया अच्छा बोलते हैं, पर तमाम सियासी स्थितियों के आधार पर फिलहाल तो यही कहा जा सकता है कि कन्हैया विकल्प दिखते जरूर हैं पर वह तेजस्वी के मुकाबिल सीएम नीतीश के समक्ष चेहरा नहीं हो सकते.

इसके साथ ही यह भी तथ्य है कि कन्‍हैया बिहार की जातिवादी राजनीति में भी फिट नहीं बैठते हैं. ऐसे में कांग्रेस के गिरते जनाधार के बीच कन्हैया कुमार का तेजस्वी यादव के साथ आने से एक बात तो तय हो जाएगा कि आने वाले समय में महागठबंधन के लिए फायदेमंद साबित होंगे. इसके साथ यह भी कि अगर ये दोनों ही एक साथ आते हैं तो दोनों के एजेंडे भी साफ होंगे. एक के निशाने पर पीएम मोदी तो दूसरे के निशाने पर सीएम नीतीश कुमार होंगे. ऐसे भी कन्हैया कुमार सीएम नीतीश कुमार के प्रति सम्मान का भाव रखते हैं और अब तक कभी भी उनके विरुद्ध एक भी शब्द नहीं कहा है.

सियासत के जानकार इसलिए भी इस तथ्य को उभार कर सामने लाते हैं क्योंकि कन्हैया कुमार अक्सर पीएम मोदी को अपने निशाने पर लेते रहे हैं तो तेजस्वी यादव के सबसे अधिक निशाने पर सीएम नीतीश कुमार ही रहते आए हैं. अगर कांग्रेस के सियासी गेमप्लान के बारे में गहराई से देखें तो वह कन्हैया कुमार को एक प्रखर वक्ता के तौर पर इस्तेमाल करना चाहती है और उनका यूपी के विधान सभा चुनाव 2022 में फिलहाल अधिक उपयोग करना चाहती है. इसकी वजह यह है कि राज्य सरकार के बहाने कन्हैया के निशाने पर एक बार फिर सीएम योगी आदित्यनाथ के साथ ही पीएम नरेंद्र मोदी होंगे.

वहीं, तेजस्वी यादव की राजनीति बिहार से आगे अभी नहीं देखी जाती है. वह बिहार में ही अधिक फोकस करते रहेंगे यह भी तय है. हाल में बिहार कांग्रेस नेताओं अजीत शर्मा, मदन मोहन झा व प्रेमचंद्र मिश्रा के बयानों को समझें तो संदेश भी साफ दिखता है कि कांग्रेस फिलहाल राजद से अलग नहीं होना चाहती है और वह भी तेजस्वी को ही बिहार का नेता मानती है. हालांकि, सियासी जानकार यह भी मानते हैं कि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांंग्रेस बिहार के लिए कोई लंबा सियासी प्लान लेकर आगे बढ़ रही है यह भी साफ है.

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