बिहार में चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। एक तरफ नेता दल बदल कर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक दलों में सीट शेयरिंग को लेकर भी रस्साकशी देखने को मिल रही है। इसका सबसे ताजा उदाहरण है जेडीयू (JDU) और लोजपा (LJP) के रिश्तों में आई दरार। चुनाव नजदीक आने के साथ ही तल्खी बढ़ रही है। दरअसल, इस विवाद की मुख्य वजह 2015 का चुनाव बताया जा रहा है, जब LJP को सबसे अधिक नुकसान JDU से हुआ था। माना जा रहा है कि 2015 में मिली हार का बदला लेने के लिए ही चिराग पासवान के निशाने पर इस बार विरोधी से ज्यादा अपने ही CM यानी नीतीश कुमार हैं।
JDU और LJP के बीच झगड़े की असल वजह बिहार विधानसभा की उन सीटों को बताया जा रहा है जिस पर 2015 के चुनाव परिणाम में LJP महज चंद वोटों से हार गई थी। आसान शब्दों में समझें तो 2015 विधानसभा चुनाव में LJP ने NDA की तरफ से 42 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, 42 में 23 सीटें ऐसी हैं, जिन पर LJP और JDU के बीच आमने-सामने की लड़ाई थी। हालांकि, चुनाव परिणाम उम्मीद के अनुकूल नहीं आया और LJP को महज 2 सीटों पर ही कामयाबी मिल पाई थी।
JDU और LJP के बीच कई सीटों पर तो जीत का अंतर 10 हजार वोटों से कम रहा था। यही कारण है कि इस बार चुनाव को लेकर लोक जनशक्ति पार्टी ज्यादा सीटों की मांग कर रही है और साथ-साथ उन सीटों पर अपना दावा ठोक रही है जहां पर वो दस से पंद्रह हजार वोटों से पिछड़ गई थी। 2015 के चुनाव परिणाम के अनुसार LJP और JDU के बीच जिन सीटों को लेकर के पेच फंस सकता है उनमें कुचायकोट, बेलसंड, नाथनगर, ठाकुरगंज, रफीगंज जैसी विधानसभा सीटें है। इन विधानसभा सीटों पर LJP और JDU के बीच में जीत और हार का फासला 10,000 वोट से भी कम का था।
कुचायकोट विधानसभा से JDU के अमरेन्द्र पांडे ने LJP के काली पांडे को महज 3 हजार 562 मतों के अंतर से हराया था। बेलसंड विधानसभा से LJP के मोहम्मद नसीर अहमद को JDU की सुनीता चौहान ने सिर्फ 5 हजार 575 वोटों से हराया था। नाथनगर विधानसभा से JDU के अजय मंडल ने LJP के अमरनाथ प्रसाद को 7 हजार 825 वोट के अंतर से हराया था। ठाकुरगंज विधानसभा से JDU के नौशाद आलम ने LJP के गोपाल अग्रवाल को 8 हजार 087 वोट के अंतर हराया था। रफीगंज विधानसभा से JDU के अशोक सिंह ने LJP के प्रमोद सिंह को 9 हजार 525 वोट के अंतर से हराया था।
इन 5 सीटों के अलावा कई ऐसी और सीटें हैं जिन पर JDU-LJP के बीच में जीत-हार का फासला महज पंद्रह हजार से भी कम का रहा है, यही कारण है कि LJP सुप्रीमो चिराग पासवान जनता दल यूनाइटेड से सीट शेयरिंग के मसले पर किसी तरीके का समझौता करने के मूड में नहीं है। हालांकि, अब देखना दिलचस्प होगा कि BJP अपने दोनों ही सहयोगी दलों के बीच फंसे इस सीट शेयरिंग के पेच को कैसे सुलझाती है।

