सिर्फ सनसनी या फिर सही में जमीनी पकड़? कैसी है बंगाल में बाबरी बनाने वाले हुमायूं कबीर की रातनीतिक ताकत

Humayun Kabir Political Power: पश्चिम बंगाल की राजनीति में हुमायूं कबीर तेजी से उभरते नाम बनकर सामने आए हैं। पहले टीएमसी के नेता रहे कबीर ने बाबरी जैसी मस्जिद बनाने का ऐलान किया, जिसके बाद उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया। कबीर की राजनीतिक पकड़ मुख्यतः मुर्शिदाबाद क्षेत्र में मानी जाती है, जहां मुस्लिम वोटरों का प्रभाव ज्यादा है। अगर उनका जनाधार बढ़ा तो यह टीएमसी के लिए चुनौती बन सकता है, हालांकि उनकी राजनीतिक ताकत कितनी प्रभावी साबित होगी, यह चुनावी नतीजे तय करेंगे.

Humayun Kabir Political Power: पश्चिम बंगाल की राजनीति में इन दिनों कई हलचलें देखने को मिल रहीं हैं। मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी और सत्ताधारी टीएमसी तो रोज एक-दूसरे से टकरा ही रहे हैं, इनके बीच एक और नाम हाल के दिनों में बहुत तेजी से राष्ट्रीय स्तर पर उभरा है, वो हैं हुमायूं कबीर।

हुमायूं कबीर इन दिनों सीधे टीएमसी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी को चुनौती दे रहे हैं। हुमायूं कबीर गारंट लेते हुए दावा कर रहे हैं कि वो राज्य में अगले चुनाव के बाद ममता बनर्जी की सरकार नहीं बनने देंगे। अब सवाल ये है कि जिस ममता बनर्जी के सामने बंगाल में वाम दल और कांग्रेस चुप्पी साधे हुए है, क्या उन्हें हुमायूं कबीर चुनौती दे पाएंगे।

बीजेपी पिछले लगातार दो चुनावों से टीएमसी को हराने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए दिखी है, फिर भी बंगाल में ममता दीदी का राज बरकरार है। ऐसे में हुमायूं कबीर की गारंटी, सच में दमदार है, या फिर इनका भी हाल प्रशांत किशोर जैसा होने वाला है? बिहार में प्रशांत किशोर चुनाव के दौरान काफी चर्चित चेहरा रहे थे, लेकिन उनकी पार्टी जनसुराज एक भी सीट जीते में असफल रही थी।

कैसे अचानक से चर्चित हो उठे हुमायूं कबीर?

हुमायूं कबीर पहले टीएमसी में ही थे, ममता बनर्जी का गुणगान करते थे, लेकिन हाल ही में उन्होंने घोषणा की कि वो पश्चिम बंगाल में बाबरी जैसा मस्जिद बनाएंगे। इस घोषणा के बाद हुमायूं कबीर को ममता बनर्जी ने पार्टी ने निकाल दिया। इसके बाद भी हुमायूं कबीर अड़े रहे और उसी दिन बाबरी मस्जिद की नींव रखने का ऐलान किया, जिस दिन अयोध्या में वो विवादित ढांचा गिराया गया था, जिसे बाबरी मस्जिद कहा जाता था। हुमायूं कबीर के बाबरी बनाने के ऐलान ने उन्हें पैन इंडिया में चर्चित कर दिया। विरोध और पक्ष दोनों में अवाजें उठने लगीं। नींव रखने के दिन हजारों की संख्या में भीड़ उनका साथ देने के लिए पहुंची थी।

कितनी है हुमायूं कबीर की राजनीति ताकत?

हुमायूं कबीर बाबरी की नींव रखने के बाद नई पार्टी का ऐलान भी कर चुके हैं। हुमायूं कबीर ने अपनी पार्टी का नाम जनता उन्नयन पार्टी रखा है और अपनी पार्टी की ओर से 8 उम्मीदवारों की घोषणा भी कर चुके हैं। ये अलग बात है कि एक उम्मीदवार का नाम वो 24 घंटे के अंदर ही वापस ले चुके हैं, जो उनकी पार्टी के अंदर की अंतर्कलह को भी दर्शा रहा है। हुमायूं कबीर की पहचान एक मुस्लिम नेता के तौर पर रही है और उनकी पकड़ मुख्य रूप से अपने ही इलाके मुर्शिदाबाद में है।

मुर्शिदाबाद में 22 सीटें हैं, जिसपर वो प्रभाव डाल सकते हैं, क्योंकि यहां मुस्लिम वोटरों की तादाद ज्यादा है, जो हुमायूं कबीर की ओर जा सकते हैं। जिसमें से ज्यादातर सीटें आज की तारीख में टीएमसी के पास है। अगर हुमायूं कबीर की राजनीतिक चाल सफल रहती है तो टीएमसी के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।

कहां चूक सकते हैं हुमायूं कबीर ?

हुमायूं कबीर जितनी सुर्खिया बटोर रहे हैं, उतना वोट बटोर पाएं ये कहना मुश्किल है। हुमायूं कबीर की नजर मुस्लिम वोट बैंक पर है, जिसपर हाल के कई चुनावों में टीएमसी का कब्जा रहा है।

बंगाल में मुस्लिम वोट, टीएमसी को जाते रहा है, ममता बनर्जी अपने आप को बंगाली अस्मिता के साथ-साथ मुस्लिम हितैषी के तौर पर पेश करती रहीं हैं, ऐसे में हुमायूं कबीर मुस्लिम वोट को अपनी ओर खींच तो सकते हैं, लेकिन कितना खींच पाएंगे, ये बड़ा सवाल है।

हुमायूं कबीर का मुर्शिदाबाद में पकड़ है, जहां कांग्रेस और वाम दल भी कमजोर नहीं है, इनकी ओर भी मुस्लिम वोट बैंक का झुकाव रहा है, ऐसे में सिर्फ मुस्लिम वोट बैंक के सहारे विधानसभा सीट निकालना टेढ़ी खीर साबित हो सकती है।

हुमायूं कबीर बीजेपी में भी रह चुके हैं। ऐसे में टीएमसी उन्हें पहले ही बीजेपी की बी टीम बता रही है। खुद हुमायूं भी पीएम मोदी की तारीफ करते रहे हैं, ऐसे में मुस्लिम वोट उनकी ओर कितना आएगा ये कहना मुश्किल है।

हुमायूं कबीर खुद को एक फेस के तौर पर तो स्थापित कर चुके हैं, लेकिन उनके पास सहयोगियों और जमीनी टीम का अभी भी अभाव है, ऐसे में जनता से सीधे जमीन से जुड़ना उनके लिए एक बड़ी चुनौती होगी।

हुमायूं कबीर ने 2026 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए बॉलीगंज से निशा चटर्जी को उम्मीदवार घोषित करने के बाद यह कहते हुए उनकी उम्मीदवारी मंगलवार को वापस ले ली कि सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीरें और वीडियो उनकी पार्टी की छवि के लिए ठीक नहीं हैं। कबीर का यह फैसला उनकी पार्टी के अंदर की कलह को भी उजागर करता है। उम्मीदवारों के चयन में कमी को दर्शाता है।

अभी ममता बनर्जी चुनाव को लेकर जमीन पर सक्रिय नहीं हुई है, ममता के मैदान में उतरने के बाद कई चुनावों में समीकरण बदलते दिखे हैं, ऐसे में मुर्शिदाबाद में ममता के चेहरे के सामने हुमायूं कबीर का टिकना एक बड़ी चुनौती होगी।

और कैसे मजबूत हो सकते हैं हुमायूं कबीर?

हुमायूं कबीर पूरे बंगाल में अपने आप को खड़ा करने के लिए वाम दलों और ओवैसी की ओर देख रहे हैं। ओवैसी के साथ आने के बाद हुमायूं कबीर जाहिर तौर पर मजबूत हुए हैं। अगर वाम दलों के साथ वो गठबंधन कर सकें तो ज्यादा प्रभाव डाल सकेंगे और फिर जाहिर है कि हुमायूं कबीर टीएमसी को झटका दे सकते हैं।

कभी बीजेपी में थे हुमायूं कबीर

3 जनवरी 1963 को जन्मे हुमायूं कबीर वर्तमान में भरतपुर विधानसभा सीट से विधायक हैं और 2021 से यहां का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, लेकिन उनकी राजनीतिक यात्रा सिर्फ एक सीट या एक दल तक सीमित नहीं रही, बल्कि लगातार दल-बदल, बगावत और नए राजनीतिक प्रयोगों से भरी रही है।

कांग्रेस से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले हुमायूं कबीर 2011 में रिजीनगर से विधायक बने, लेकिन 2012 में इस्तीफा दे दिया। इसके बाद वे तृणमूल कांग्रेस के साथ जुड़े और ममता बनर्जी सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे। हालांकि पार्टी लाइन से हटकर गतिविधियों के चलते 2015 में उन्हें छह साल के लिए टीएमसी से निष्कासित कर दिया गया। निष्कासन के बाद उन्होंने निर्दलीय किस्मत आजमाई लेकिन रिजीनगर सीट बचा नहीं सके। 2018 में उन्होंने भाजपा का दामन थामा और 2019 के लोकसभा चुनाव में मुर्शिदाबाद से मैदान में उतरे, लेकिन यहां भी हार मिली। छह साल का प्रतिबंध खत्म होने के बाद कबीर दोबारा टीएमसी में लौटे और 2021 में भरतपुर से विधायक बने।

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