बिहार प्रदेश कॉंग्रेस कमिटी रिसर्च विभाग एवं मैनिफेसटो कमिटी के चेयरमैन आनन्द माधव ने जनता को अपने ज़िला या कार्यस्थल जानें के लिये अनुमति पत्र प्राप्त करनें में हो रही कठिनाइयों के प्रति अपना रोष प्रकट करते हुये यह कहा है कि, व्यवस्था व्यक्ति के लिये होता है ना कि व्यक्ति व्यवस्था के लिये।
लॉक डाउन के कारण विभिन्न जगहों में फँसे लोगों को अपने गृह जिला या कार्य स्थल पर जाना एक मैराथन के समान हो गया है। इसमें कई त्रुटियाँ है। एक तो ऑन लाइन हर व्यक्ति आवेदन नहीं दे सकता क्योंकि या तो सुविधा नहीं है या फिर जानकारी का अभाव है। दूसरी ओर जो ऑन लाइन भरने का प्रयास भी कर रहे तो उसमें अनेकों तकनीकि अड़चनें आ जा रही हैं। एक-एक फ़ार्म भरने में घंटो समय लग जा रहा है।अब जिसे फ़ार्म भरना है, अपनी यात्रा की अनुमति प्राप्त करने के लिये, चाहे वह बिहार के अंदर का हो या बिहार के बाहर जानें का, अगर वो ऑन लाइन आवेदन के पहले स्तर से आगे बढ़ भी जाते हैं, तो दूसरे स्तर पर उन्हें तीन तीन डॉक्युमेंट अपलोड करना होता है :
१. आधार कार्ड या कोई अन्य सरकारी परिचय पत्र, चलो ये सही है,
२. अधिकारी द्वारा दिया गया पत्र/ प्रमाण पत्र/परिचय पत्र एवं उसके बाद
३. पोर्टल पर उपलब्ध विहित प्रपत्र पर सरकारी डाक्टर का प्रतिवेदन
अब लोग एक तो पहले सरकारी अस्पताल जानें से डरते और जाते भी तो उन्हें डाक्टर से प्रतिवेदन प्राप्त करनें में बहुत पापड़ बेलना पड़ता है।
क्या यह एक आम जनता के लिये सहज है? दरअसल सरकार अपनी व्यवस्था को इतनी जटिल प्रक्रिया बना देती है कि उसे कम से कम काम करना पड़े और वो कम से कम ज़िम्मेवारी उठाये। उसे आम जनता के कष्ट या परेशानी से कोई मतलब नहीं है।
आनन्द माधव ने बिहार सरकार से यह आग्रह किया है कि ज़रूरतमंदों को अपनें कार्यस्थल या अपने गृह ज़िला जाने देनें की प्रक्रिया को सरल करें, जिससे आम जनता को कम से कम परेशानी हो। कहीं ऐसा ना हो कि जनता के सब्र का बाँध टूट जाय। अगर ऐसा हुआ तो बड़ी से बड़ी सत्ता इसमें बह जायेगी, कोई नहीं बचा पायेगा उन्हें।