भ्रष्टाचार की कीमत चुकानी पड़ी योगी के चार मंत्रियों को …


मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चार मंत्रियों के इस्तीफे लेकर अपनी सरकार में सुचिता व पारदर्शिता की राह चलने का साफ संदेश दिया है। यह भी काफी हद तक साफ करने की कोशिश की है कि सरकार की छवि को लेकर वह कोई भी समझौता नहीं करेंगे। कहना गलत न होगा कि मुख्यमंत्री द्वारा बार-बार भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टालरेंस का संदेश दिए जाने के बावजूद उनकी सरकार के कुछ मंत्री उनकी मंशा को सही से समझ नहीं सके। नतीजतन, उन्हें कैबिनेट की कुर्सी गंवानी पड़ी सियासी तौर पर अब उन्हें अपने क्षेत्र में दुश्वारियां झेलनी पड़ सकती हैं सो अलग। 

राजेश अग्रवाल: कार्यप्रणाली पर उठे सवाल
बरेली कैंट के विधायक राजेश अग्रवाल को कैबिनेट मंत्री बनाते हुए वित्त जैसा महत्वपूर्ण विभाग दिया गया। वित्त मंत्री रहते हुए उनकी कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान शुरुआती दौर से ही लगते रहे। वित्त विभाग के मुखिया से उनकी नहीं पट रही थी। तबादले को लेकर भी राजेश अग्रवाल और अपर मुख्य सचिव में ऐसी ठनी कि मुख्यमंत्री को हस्तक्षेप कर मामले को शांत कराना पड़ा। कहते हैं कि इसके बाद से ही राजेश अग्रवाल पर मंत्रिपद से हटाए जाने की तलवार लटकने लगी थी। मंत्रिपद से इस्तीफा देने के बाद भले ही उनकी तरफ से उम्र का हवाला दिया है, लेकिन चर्चाएं इसके हटकर ही रहीं।

धर्मपाल सिंह: विभाग की छवि हुई खराब
धर्मपाल सिंह इस बार चौथी बार विधायक बने। कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, रामप्रकाश और मायावती की सरकार में मंत्री रहे। योगी आदित्यनाथ की सरकार में सिंचाई जैसा महत्वपूर्ण विभाग मिला। विभाग पाते ही धर्मपाल की कार्यप्रणाली चर्चाओं में आ गई। कुछ आरोप लगे कि ठेकेदारी में कमीशन  से लेकर तबादले तक में गड़बड़ियां हैं। हालांकि कुछ खुलकर सामने नहीं आया, न ही किसी मामले में जांच बिठाई गई लेकिन कई मौकों पर उन्हें चेतावनी दी गई। विभाग की बिगड़ती छवि के चलते उन्हें कुर्सी गंवानी पड़ी। यह बात दीगर है कि कई बार उनके प्रदेश अध्यक्ष बनने की चर्चा रही।

अनुपमा जायसवाल: विवादों के घेरे में रहीं
अनुपमा जायसवाल बहराइच से पहली बार विधायक बनीं और उन्हें स्वतंत्र प्रभार के रूप में बेसिक व बाल विकास पुष्टाहार जैसा भारी-भरकम विभाग मिला। चर्चाओं में रहने वाले इस विभाग की बागडोर संभलते ही अनुपमा विवादों के घेरे में आ गई। मंत्री बनने के तुरंत बाद चाहे सम्मान समारोह हो या उनकी कार्यप्रणाली हमेशा सवालों के घेरे में रही। तबादला हो या शिक्षक भर्ती। यहां तक ड्रेस खरीद के टेंडर में गड़बड़ी तक में उन पर छींटे आए। विभागीय मुखिया से न पटना हमेशा चर्चाओं में रहा। विभागीय मुखिया की शिकायत पर उनके दोनों निजी सचिव तक रातों-रात हटा दिए गए।

अर्चना पांडेय: सुस्ती पड़ी भारी
अर्चाना पांडेय छिबरामऊ कन्नौज से पहली बार विधायक बनीं और उन्हें भूतत्व व खनिकर्म एवं आबकारी मद्यनिषेध जैसे महत्वपूर्ण महकमे का राज्यमंत्री बनाया गया। उन्हें भले ही राज्य मंत्री बना दिया गया हो, लेकिन उनकी रुचि इसमें कभी नहीं दिखी। उनकी सुस्त कार्यप्रणाली की चर्चाएं आम होती रहीं। उनके हटाए जाने की मुख्य वजह इसी को बताया जा रहा है। वहीं उनके भी निजी सचिव का विवाद उनके मंत्री पद गंवाने का कारण बना।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

बिहार के इन 2 हजार लोगों का धर्म क्या है? विश्व का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड कौन सा है? दंतेवाड़ा एक बार फिर नक्सली हमले से दहल उठा SATISH KAUSHIK PASSES AWAY: हंसाते हंसाते रुला गए सतीश, हृदयगति रुकने से हुआ निधन India beat new Zealand 3-0. भारत ने किया कीवियों का सूपड़ा साफ, बने नम्बर 1