साइकिल के सफर ने ज्योति के सपनों को दी नई उड़ान

मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है,
पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है…


जी हां यही सच है…और अगर विश्वास न हो तो बिहार के दरभंगा की बेटी ज्योति की कहानी जान लीजिए। जिसने हिम्मत और जज्बे की ऐसी मिसाल कायम की है कि पूरी दुनिया उसे सलाम कर रही है। Lockdown के बीच हरियाणा के गुरुग्राम में फंसे अपने घायल पिता को साइकिल पर बैठाकर बिहार की इस बेटी ने 1200 किलोमीटर का सफर तय किया। कलयुग की इस श्रवण कुमार बेटी के साहस की मुरीद अमेरिकी राष्ट्रपति Donald Trump की बेटी इवांका ट्रम्प भी हो चुकी हैं। साइक्लिंग का शौक रखने वाली ज्योति ने देश के युवाओं को संघर्ष की जो राह दिखाई है, उसकी मिसाल मिलनी मुश्किल है। पूरा देश बिहार की इस बेटी से प्रेरणा ले रहा है। इसके साथ ही तमाम राजनीति हस्तियों ने ज्योति की मदद की भी पहल की है।

केन्द्रीय खेल एवं युवा कल्याण राज्य मंत्री किरेन रिजीजू ने ज्योति का कॅरियर संवारने की जिम्मेदारी ली है। रविवार को एक ट्वीट कर केन्द्रीय मंत्री कहा, मैं विश्वास दिलाता हूं कि साई के अधिकारियों और साइक्लिंग फेडरेशन्स से ज्योति कुमारी के परीक्षण के बाद मुझे रिपोर्ट करने के लिए कहूंगा। यदि संभावित पाया, तो उसे नई दिल्ली में आईजीआई स्टेडियम परिसर में राष्ट्रीय साइक्लिंग अकादमी में प्रशिक्षु के रूप में चुना जाएगा।

किरेन रिजीजू ने यह ट्वीट केन्द्रीय मंत्री राम विलास पासवान के एक ट्वीट कर जवाब देते हुए किया है। श्री पासवान ने केन्द्रीय खेल मंत्री किरेन रिजीजू से अपील की थी कि वह ज्योति पासवान की साइक्लिंग की प्रतिभा को और अधिक संवारने के लिए इसके उचित प्रशिक्षण और छात्रवृति की व्यवस्था करें।

ज्योति पासवान के साहस और जज्बे की तारीफ तो पूरी दुनिया कर रही है। साथ मदद के लिए भी लोग आगे आ रहे हैं। हाल ही में सपा मुखिया अखिलेश यादव ने ज्योति को 1 लाख रुपए की आर्थिक मदद का ऐलान किया है। इसके अलावा संघ विचारक प्रो. राकेश सिन्हा ने भी ज्योति को 25000 हजार रुपए की मदद दी है।

राकेश सिन्हा ने ज्योति व उसके परिवार से फोन पर बात भी की है। राज्य सरकार ने भी ज्योति को हर संभव मदद का आश्वासन दिया है। शनिवार को राज्य शिक्षा विभाग की टीम ने दरभंगा स्थित ज्योति के घर पहुंचकर उसका 9वीं कक्षा में नामांकन कराया। शिक्षा विभाग की टीम ने ज्योति को नई साइकिल, पोशाक, काॅपी-किताबें आदि भी भेंट की। ज्योति ने 2017 में 8वीं पास करने के बाद आर्थिक तंगी के चलते पढ़ाई छोड़ दी थी।

साहस न दिखाती तो भूख से मर जाते बाप-बेटी
दरअसल बिहार के दरभंगा में रहने वाले मोहन पासवान हरियाणा के गुरुग्राम में मजदूरी करते हैं। इस साल की शुरूआत में ही मोहन पासवान किसी हादसे में गंभीर रूप से घायल हो गए। 15 साल की ज्योति अपने पिता की सेवा के लिए जनवरी में गुरुग्राम गई थी। इसी बीच कोरोना महामारी के चलते मार्च में लाॅकडाउन हो गया। दोनों बाप-बेटी वहीं फंस गए। बीमारी के चलते पिता की जेब खाली थी। दोनों के सामने भूखे मरने की नौबत आ गई।

सरकारी मदद से खरीदी पुरानी साइकिल
इसी बीच प्रधानमंत्री राहत कोष से 1 हजार रुपए की मदद मिली। इस समय तक ज्योति ने घायल पिता को लेकर अपने घर दरभंगा लौटने का निश्चय कर लिया था। 1000 रुपए में कुछ पैसे और मिलाकर ज्योति ने एक पुरानी साइकिल खरीदी। जिस पर पिता को बिठाकर घर के लिए निकल पड़ी।

पहले तो पिता ने बेटी को मना किया लेकिन ज्योति की जिद और कोई और रास्ता न होने पर वह तैयार हो गए। 8 दिन में 1200 किलोमीटर का सफर तय कर ज्योति अपने घर दरभंगा के सिरहुल्ली पहुंच गई, और फिर यहीं से ज्योति पूरी दुनिया में साहस और जज्बे की जीती-जागती मिसाल बन गई। मीडिया के पूछने पर पिता मोहन पासवान बस इतना ही कहते हैं कि उन्हें बेटी पर गर्व है। वहीं ज्योति कहती है, मैं अपने पिता की बेटी नहीं, बेटा हूं।

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