नागरिकता संशोधित कानून को लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन जारी है। दिल्ली, अलीगढ़, पटना, बेंगलुरु में जोरदार प्रदर्शन चल रहा है। सवाल है कि नागरिकता कानून के किस प्रावधान पर मुस्लिम समाज प्रदर्शन कर रहा है। नागरिकता कानून में ये प्रावधान है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आने वाले हिन्दुओं, सिख, इसाई, जैन, बौद्ध और पारसी समुदाय के लोगों को ही भारत की नागरिकता दी जाएगी। इस प्रवधान में इन तीनों देशों के मुसलमानों को बाहर रखा गया है। उत्तर, पूर्व और दक्षिण भारत में इस कानून के इसी प्रवाधान को लेकर उग्र विरोध शुरू हो गया है।
विवाद इस बात को ही लेकर हो रहा है कि यह बिल मुस्लिमों के खिलाफ है, और आखिर धर्म के हिसाब से ये कैसे तय किया जा सकता है कि किसे नागरिकता देनी है, और किसे नहीं। विपक्षी पार्टियों और मुस्लिम संगठनों का कहना है कि ये कानून भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन है। यह इस कानून का सबसे विवादस्पद पहलू है। विपक्ष का कहना है कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर नागरिकता कैसे दी जा सकती है।
भारत का नागरिकता कानून 1955 कहता है कि किसी भी व्यक्ति को भारत की नागरिकता लेने के लिए कम से कम 11 साल भारत में रहना अनिवार्य है। लेकिन नागरिकता संशोधन कानून के जरिए पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों के लिए यह समय सीमा 11 से घटाकर 6 साल कर दी गई है। इसके लिए नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन किए गए हैं। कानून पास होने के बाद 31 दिसंबर 2014 से पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत में आने वाले हिंदु, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों को नागरिकता देने का प्रावधान है।
नागरिकता कानून 1955 :- यह कानून भारतीय नागरिकता से जुड़ा एक विस्तृत कानून है। इस कानून में विस्तार से बताया गया है कि किसी शख्स को किन प्रावधानों के आधार पर भारतीय नागरिकता कैसे दी जा सकती है और भारतीय नागरिक होने के लिए क्या-क्या शर्ते हैं। इस कानून के मुताबिक किसी शख्स को चार तरह से भारत की नागरिकता दी जा सकती है। इस अधिनियम में अब तक पांच बार (1986, 1992, 2003, 2005 और 2015) बदलाव किया जा चुका है।
असम में विरोध की वजह:- असम में इस बिल का विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि नागरिकता संशोधन कानून असम समझौता 1985 का उल्लंघन करता है। इस समझौते के मुताबिक 24 मार्च 1971 से पहले ही दूसरे देशों से भारत आए लोगों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है। लेकिन नए कानून के मुताबिक ये सीमा बढ़ाकर 31 दिसंबर 2014 कर दी गई है। असम समेत पूर्वोत्तर के लोगों का कहना है कि इससे बड़े पैमाने पर असम में दूसरे नस्ल के लोग आकर रहेंगे और असमिया पहचान प्रभावित होगी।