एक तरफ लल्लू तो दूसरी तरफ पप्पू को साध कर कांग्रेस कहीं बड़ा खेला ना कर दे! 

18 जनवरी 2025 का शनिवार दिन बिहार की राजनीतीक धारा में कई मुहाने खोलता नजर आ रहा है. देखना दिलचस्प होगा की इस शनीचर का प्रकोप किसके लिए फायदेमंद होता है और किसके लिए हानिकारक. यह बात इसलिए भी समझने योग्य है की एक तरफ राहुल गाँधी पटना में कार्यकर्ता संवाद बुलाते हैँ, ठीक उसी दिन जिस दिन आरजेडी का भी कार्यकर्ता सम्मलेन है 

तेजस्वी से मिलते भी हैँ और पप्पू यादव व लल्लू मुखिया उर्फ़ कर्णवीर सिंह यादव से भी हाथ मिलाकर बड़े यादव वोट बैंक को अपनी और मिलाते भी हैँ. ये सस्पेंस की स्थिति कम से कम इंडिया गठबंधन की सेहत के लिए तो बिलकुल त्वेक नहीं है 

पटना के मौर्य होटल में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की मुलाकात हुई जिसके राजनीतिक संकेत निकाले जा रहे हैं. राजनीति के जानकार इस मुलाकात को बेहद अहम मानते हैं, क्योंकि हाल में ही कांग्रेस और राजद की दूरी बढ़ाने की बातें सामने आई थी.

बीते 9 जनवरी की वह बात… और आज तेजस्वी यादव की मुलाकात, बिहार ही नहीं देश की राजनीति के लिए भी एक अहम क्षण बनकर आया है. ऐसा इसलिए क्योंकि पटना के होटल मौर्य में तेजस्वी यादव और राहुल गांधी की मुलाकात ने कई सारे सियासी सवालों और कयासबाजियों का जवाब मिलता नजर आ रहा है. इंडिया अलायंस के लोकसभा चुनाव के साथ ही समाप्त होने को लेकर तेजस्वी यादव के बयान के बाद कांग्रेस और आरजेडी के बीच कथित दूरी की बातों पर इन दोनों ही नेताओं की मीटिंग के बाद विराम लगने की उम्मीद की जा रही है. इसके न केवल प्रदेश स्तर की राजनीति बल्कि राष्ट्रीय राजनीति के भी एक बड़ा संकेत है.

राजनीतिक के जानकार कहते हैं कि राहुल गांधी से पटना तेजस्वी यादव की मुलाकात से बिहार कांग्रेस और महागठबंधन की खींचतान में जहां कमी होगी वहीं, महागठबंधन की मजबूती दिखेगी. दरअसल, तेजस्वी यादव के इंडिया गठबंधन के लोकसभा चुनाव में खत्म होने की बात कहने के बाद कई कांग्रेसी नेताओं के बयान आए जिसमें यह कहा गया कि कांग्रेस राजद के सामने नहीं झुकेगी. खास तौर पर बिहार में सीट शेयरिंग के मुद्दे को लेकर कांग्रेस मुखर होती रही. आगामी विधानसभा चुनाव में सीटों की हिस्सेदारी को लेकर यह मामला और आगे बढ़ा और कांग्रेस ने कह दिया कि वह 70 सीटों से कम पर लड़ने का सोच ही नहीं रही. इसके बाद तो राजद की ओर से भी बयान आए और तल्खी बढ़ती हुई दिखी थी.

वहीं दूसरी थ्योरी भी है 

जहाँ दूरियां कम हो रही हैँ वहीँ राहुल गाँधी ने एक दौरे से दो निशाने साधे हैँ,  मतलब गंगा के एक तरफ पप्पू यादव और दूसरी तरफ लल्लू मुखिया को अपने पाले में लेकर यादव वोट बैंक में सेंध लगायी है. पिछले एक दशक से लल्लू मुखिया बाढ़ सहित समस्त मुंगेर व पटना ज़िले में राजनीतिक तौर पर सक्रिय रहे हैँ और बीते कई चुनाव में इनका साथ आना धुरंधर  प्रत्याशियों के लिए चुनौती का सबब बना है. इनका अपना बढ़ता जनाधार जिधर जायेगा उस धड़े को नजरंदाज नहीं किया जा सकता. हालांकि जब लल्लूमुखिया जी से बात की गयी तो उन्होंने आज की मुलाक़ात को केवल एक शिष्टाचार भेंट बताया और किसी भी प्रकार के राजनीतिक सवालों को नकार दिया. बात अगर गंगा के दूसरे छोर की करें तो पप्पू यादव किसी तारीफ़ के मोहताज नहीं हैँ और बड़ी मजबूती से बिहार में कांग्रेस की नइया को खेवते दिख रहे हैँ.

आज ही के दिन कांग्रेस और सहयोगी दल आरजेडी के कार्यकर्ताओं का अलग अलग सम्मलेन के माध्यम से जमावड़ा होना इंडिया गठबंधन के लिए अच्छे संकेत नहीं पेश कर रहा 

हाँ दो बड़े यादव नामों का सहारा मिलने से दशकों से देखे जा रहे कांग्रेस के अकेले बिहार में सत्ता में आने के सपने को बल जरूर मिलता दिख रहा है.

बाकी राजनीती है….कब पलट जाये!

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