राहुल गांधी के बिहार दौरे पर RJD की रहेगी चौकस नजर, दो दौरों में उनकी उलटबांसी महागठबंधन पर पड़ गई थी भारी

पहले पीएम नरेंद्र मोदी बिहार आए. पीछे अमित शाह भी पहुंच गए बिहार. लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी तो सबसे आगे निकले. 18 जनवरी 2025 से 7 अप्रैल 2025 के बीच वे तीसरी बार बिहार पहुंचने वाले हैं. राहुल ने दो दौरों में अपनी एक टिप्पणी से महागठबंधन में परेशानी पैदा कर दी थी. इस बार वे क्या कहते हैं, इस पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह दो दिनों के दौरे पर बिहार पहुंचे हैं. पिछले ही महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहर आए थे. कांग्रेस नेता राहुल गांधी तो तकरीबन तीन महीने के भीतर तीसरी बार बिहार की यात्रा पर आने वाले हैं. पटना में संविधान सुरक्षा को लेकर होने वाले कार्यक्रम मे वे शिरकत करेंगे. कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता पवन खेड़ा भी हाल ही बिहार आए थे. पीएम मोदी के भी अप्रैल में फिर से बिहार आने की चर्चा है. इन यात्राओं से स्पष्ट है कि बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियां अब रफ्तार पकड़ने लगी हैं. चुनाव अक्टूबर-नवंबर में होने हैं. कांग्रेस ने अब तय कर लिया है कि उसे आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन में रह कर ही चुनाव लड़ना है तो भाजपा और जेडीयू तीन अन्य सहयोगी दलों के साथ एनडीए के बैनर तले चुनाव लड़ेंगे. एनडीए फिर से बिहार में सरकार बनाने के लिए पूरी कोशिश में है तो आरजेडी और कांग्रेस चार अन्य सहययोगियों के साथ इस बार किसी भी चूक से बचने के लिए तैयार हैं. एनडीए इस बार 220 सीटों पर साथ महागठबबंधन का सूपड़ा साफ करने का दावा कर रहा है तो महागठबंधन हर हाल में इस बार एनडीए को पटखनी देने की पुरजोर कोशिश में लगा है.

एनडीए की चुनौतियां

एनडीए के नेताओं के बिहार में शुरू हुए दौरों का मतलाब साफ है. पिछले छह-आठ महीनों में जितने चुनाव हुए हैं, उसमें एनडीए ने परचम लहराया है. हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने न सिर्फ दोबारा सत्ता हासिल की, बल्कि दिल्ली भी उसने आम आदमी पार्टी से झटक ली. सिर्फ झारखंड का चुनाव ऐसा रहा, जिसमें भाजपा की स्थिति 2019 से भी बदतर रही. वर्ष 2024 मे देश भर में हुए उपचुनावों में भी एनडीए विपक्ष भारी रहा. बिहार में दो मौकों को छोड़ दें तो 2005 से ही एनडीए की लगातार सरकार बनती रही है. इसलिए भाजपा के लिए दो चुनौतियां बिहार में दिखती हैं. पहला यह कि किसी भी तरह एनडीए की फिर सरकार बन जाए और दूसरा कि हरियाणा से शुरू हुआ जीत का सिलसिला रुके नहीं. अगले साल बिहार से सटे पश्चिम बंगाल में विधानसभा का चुनाव होना है. बिहार का सीमांचल बंगाल से ही सटता है. पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में भी 2027 में चुनाव होगा. सीमाई सूबों को ध्यान में रख कर भाजपा बिहार फतह को जरूरी समझती है. बिहार की गूंज इन दोनों राज्यों में सुनाई देगी. यही वजह है कि भाजपा के शीर्षस्थ नेता बिहार में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहते.

महागठबंधन की बेचैनी

महागठबंधन में पहले कांग्रेस के रुख को लेकर बेचैनी थी. कांग्रेस ने हरियाणा और दिल्ली के बाद बिहार में भी अपने कड़े तेवर दिखाने शुरू किए थे. पिछले साल दिसंबर में कांग्रेस के एक नेता शाहनवाज आलम बिहार आए. उन्होंने अपने को बिहार का प्रभारी बताते हुए दो महत्वपूर्ण मुद्दे उछाल दिए. उन्होंने कहा कि पिछली बार से कम सीटों पर कांग्रेस चुनाव नहीं लड़ेगी. इसके साथ उन्होंने दो डेप्युटी सीएम की मांग की. इसमें एक मुस्लिम वर्ग से तो दूसरा जेनरल कैटगरी का होगा. यह वही वक्त था, जब ममता बनर्जी ने इंडिया ब्लाक का नेतृत्व संभालने की पेशकश की थी. अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल की तरह लालू प्रसाद यादव ने भी ममता का समर्थन कर दिया था. बाद में लालू के बेटे तेजस्वी यादव ने यह भी कह दिया कि अब इंडिया ब्लाक का अस्तितव ही नहीं है. यह सिर्फ लोकसभा चुनाव तक था. यह राहुल गांधी को आरजेडी का खुला चैलेंज था. हरियाणा के दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी काग्रेस ने जब आम आदमी पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ने का फैसला किया तो महागठबंधन के अगुआ दल आरजेडी समेत अन्य की बेचैनी बढ़ गयी है.

कांग्रेस ने RJD को उलझाया

कांग्रेस ने दक्षिण भारतीय मूल के कृष्णा अल्लावारु को प्रभारी बना कर बिहार भेजा. उन्होंने भी आरजेडी के प्रति जैसी बेरुखी दिखाई, उससे लगने लगा था कि बिहार में भी कांग्रेस हरियाणा और दिल्ली की पुनरावृत्ति करेगी. वे महागठबंधन के अगुआ दल आरजेडी के प्रमुख लालू प्रसाद यादव से नहीं मिले, जबकि अब तक का इतिहास रहा है कि साथ रहते कांग्रेस का कोई बड़ा नेता बिहार आया तो उसने लालू के दरबार में हाजिरी जरूर लगाई. कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष भी बदल दिया. प्रदेश अध्यक्ष रहे अखिलेश प्रसाद सिंह के बारे में कहा जाता रहा है कि वे लालू यादव के इशारे पर चलते हैं. खुद लालू भी दबंगता के साथ कहते हैं कि उनके कहने पर ही सोनिया ने अखिलेश सिंह को पार्टी का अध्यक्ष बनाया और राज्यसभा भेजने की मंजूरी दी. अखिलेश सिंह की जगह जब राजेश कुमार को अध्यक्ष बनाए जाने की घोषणा हुई तो महागठबंधन में बेचैनी और बढ़ गई. तेजस्वी व बनाने के लिए प्रयासरत लालू यादव जहां पांच-सात प्रतिशत अतिरिक्त वोटों के बंदोबस्त में नए सोशल इंजीनियरिंग में लगे हैं, वहीं कांग्रेस के रुख से उन्हें पांच- सात प्रतिशत वोटों का नुकसान दिखने लगा.

राहुल ने उपलब्धि खारिज की

राहुल गांधी का तीन महीने के अंदर 7 अप्रैल को तीसरा बिहार दौरा हो रहा है. राहुल के करीबी और कांग्रेस नेता सुशील कुमार पासी के मुताबिक राहुल 7 अप्रैल को पटना पहुंचेंगे. महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह की याद में शहर के श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में आयोजित होने वाले संविधान सुरक्षा सम्मेलन में हिस्सा लेंगे. इससे पहले वे 18 जनवरी को संविधान सुरक्षा विषय पर ही आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुए थे. दूसरी बार वे 5 फरवरी को पटना आए थे. दोनों अवसरों पर राहुल ने एक ऐसी टिप्पणी कर दी थी, जो महागठबंधन की चुनावी मशक्कत में रोड़े अटकाने वाला था. यह सभी जानते हैं कि तेजस्वी यादव जिस जाति सर्वेक्षण को महागठबंधन सरकार की उपलब्धि बता कर इतराते नहीं थकते हैं, वह मूल रूप से उनके पिता लालू प्रसाद यादव का सपना था. राहुल ने जाति सर्वेक्षण को फर्जी बता दिया. इसे भी आरजेडी और कांग्रेस के बीच अनबन के रूप में देखा गया.

राहुल पर टिकीं सबकी नजरें

कांग्रेस ने अब स्पष्ट कर दिया है कि वह महागठबंधन में रह कर ही चुनाव लड़ेंगी. हालांकि एक मुद्दे पर अब भी कांग्रेस ने दुविधा में रखा है. कांग्रेस के प्रभारी अल्लावारु कहते हैं कि सीएम फेस का फैसला अभी होना बाकी है, जबकि आरजेडी ने तेजस्वी यादव का नाम पहले से ही घोषित कर रखा है. लालू तो यह भी कहते हैं कि कोई माई का लाल नहीं, जो तेजस्वी को इस बार सीएम बनने से रोक सके. बहरहाल, सत्ता पक्ष और विपक्ष की निगाहें राहुल की इस बार की यात्रा पर टिकी हैं. पिछली बार की तरह ही वे इस बार कोई उलटबांसी सुना जाते हैं या बदले रुख में नजर आते हैं.

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