बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले सियासी भगदड़ की शुरुआत हो चुकी है। सभी अगले पांच साल तक सुरक्षित भविष्य की चाह रखते हैं। इसके लिए चोला और चरित्र भी बदलना पड़े तो कोई गुरेज नहीं। दलीय विचारधारा खूंटी पर टंग गई है। पाला बदलने के लिए सही टाइमिंग का इंतजार कर रहे नेताओं को श्याम रजक (Shyam Rajak) की नई निष्ठा ने रास्ता दिखा दिया है। उन्होंने जनता दल यूनाइटेड (JDU) के साथ 11 साल की वफादारी को ताक पर रख कर फिर से लालू (Lalu Prasad Yadav) की लालटेन थाम ली है।
राजनीतिक दलों ने भी अपनी तरफ से दुविधा के दरवाजे पर खड़े नेताओं की पहचान करनी शुरू कर दी है। उनकी इच्छाओं को प्रोत्साहन मिलने लगा है। जैसे JDU ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के 4 विधायकों का लालू प्रसाद की राजनीति से मोह भंग करवा दिया, उसी तरह अन्य दलों का भी प्रयास जारी है। RJD-JDU के बीच शह-मात के खेल के लिए कई और नेता पूरी तरह तैयार बैठे हैं। लालू के समधी चंद्रिका राय (Chandtika Rai) ने तो JDU में जाने का पहले ही एलान कर रखा है।
आलम यह है कि कभी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) तो कभी लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) तो कभी जनाधिकार पार्टी (JAP) के बारे में तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। वर्तमान विधानसभा के आखिरी सत्र की समाप्ति के बाद अब टिकट के अभ्यर्थी व्यक्तिगत तौर पर हार-जीत की संभावनाओं, वोटों का गणित, क्षेत्र का समीकरण और जुगाड़ की राजनीति का आकलन में जुट गए हैं।
शह-मात के खेल की यह बिसात JDU ने महीने भर पहले ही बिछा दी थी, जब RJD के 5 विधान पार्षदों को तोड़कर अपने पाले में कर लिया था। बदला लेने की बारी RJD की थी। उसने भी बड़ा दांव चल । JDU के वरिष्ठ नेता एवं मंत्री श्याम रजक को ही अपनी ओर आकर्षित कर लिया। इसी प्रयास में तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) को पता चला कि उनके कुछ विधायक भी JDU के संपर्क में हैं तो आनन-फानन में उन्होंने 3 को बाहर का रास्ता दिखा दिया। श्याम रजक के पैंतरे के बाद माना जाने लगा कि विपक्ष में भगदड़ कुछ कम होगी, लेकिन सासाराम वाले अशोक कुशवाहा छुपे रुस्तम निकले। किसी को भनक नहीं लगने दी। आखिरी क्षण में लालू प्रसाद को छोड़कर नीतीश कुमार के हो गए।
ऐसे में कांग्रेस (Congress) भी बहुत दिनों तक खैर नहीं मना सकती है। उसके अभी 26 विधायक हैं। कम से कम 6 की निष्ठा संदिग्ध मानी जा रही है। उनमें से 3 तो 2015 में JDU से ही आए थे। पूर्णिमा यादव, अनिल कुमार और मनोहर सिंह को 5 साल में भी कांग्रेस में अपना नहीं माना गया। नए ठिकाने की तलाश में उन्हीं तीनों के बारे में कयास लगाया जा रहा है। दल बदलने का छिटपुट दौर तो शुरू से ही जारी रहा। JDU ने राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) के दो विधायकों ललन पासवान और सुधांशु शेखर को अपने पाले में करके उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को विधानसभा में शून्य के अंक में पहुंचा दिया था।

