Bihar Politics: असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम महागठबंधन में शामिल हो सकती है जिससे बिहार में राजनीतिक हलचल बढ़ गई है. अगर ऐसा होता है तो इससे सीमांचल की सियासत में एनडीए को बड़ी चुनौती मिलेगी. अगर एआईएमआईएम यह कदम उठाती है तो यह महागठबंधन का महागेमप्लान है और एनडीए के लिए बड़ा खतरा हो सकता है.
बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच
सियासी बिसात बिछने लगी है. एनडीए और महागठबंधन खेमा एक दूसरे को शह और मात देने की कवायद में अपनी-अपनी रणनीतियां तैयार कर रहा है. ऐसे में बिहार में एनडीए की पांच पर्टियों और महागठबंधन के छह दलों के अतिरिक्त बिहार में दो ऐसे राजनीतिक खिलाड़ी हैं जिन पर दोनों ही गुटों की पैनी नजर है. इनमें एक जन सुराज पार्टी के प्रशांत किशोर हैं तो दूसरे ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) असदुद्दीन ओवैसी हैं. अब खबर यह आ रही है कि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम (AIMIM) कांग्रेस और राजद के साथ महागठबंधन का हिस्सा हो सकता है. खबर सूत्रों से है, लेकिन अगर ऐसा है तो निश्चित तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीएम नीतीश कुमार की अगुवाई वाले एनडीए को मात देने के लिए महागठबंधन का यह ‘महागेमप्लान’ है.
दरअसल, जानकारी यह आ रही है कि एआईएमआईएम से महागठबंधन की आगे बढ़ चुकी है, मगर सीमांचल की सीटों को लेकर पेंच फंसा हुआ है. कहा जा रहा है कि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM सीमांचल क्षेत्र की 24 सीटों पर अपनी दावेदारी ठोक रही है. लेकिन, कांग्रेस और राजद की ओर से अभी अंतिम सहमति नहीं बन पाई है. लेकिन, राजनीति के जानकार इसे बिहार की राजनीति के लिए बड़ा डेवलपमेंट मानते हैं. अगर एआईएमआईएम आने वाले समय में महागठबंधन का हिस्सा हो जाता है तो यह एनडीए के लिए बड़े खतरे का संकेत हो सकता है. इसकी वजह सीमांचल में असदुद्दीन ओवैसी का बढ़ता प्रभाव और महागठबंधन में इनके शामिल होने के बाद मुस्लिम मतों में बिखराव पर ब्रेक, यह दो बड़ी वजह है जो महागठबंधन के लिए बिग बूस्ट साबित हो सकता है.
शाहाबाद में साफ हो गया था एनडीए
इतना ही नहीं सियासी जानकारों की नजर में महागठबंधन सिर्फ सीमांचल में सेफ नहीं होना चाहता है, बल्कि वह 2020 में शाहाबाद में जिस तरह से प्रदर्शन किया था और एनडीए को पूरे तौर पर साफ कर दिया था, वही प्रदर्शन सीमांचल के इलाके में अपनाना चाहता है.
बता दें कि वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन ने शाहाबाद के इलाके से एक तरह से एनडीए को पूरी तौर पर साफ कर दिया था. इस बार सीमांचल से भी वाइप आउट करने की तैयारी कर रहा है. बता दें कि पिछली बार एनडीए को सीमांचल और मिथिलांचल क्षेत्र के साथ चंपारण का साथ मिला था और एनडीए बहुमत के आंकड़े तक पहुंच पाने में सफल हो पाया था. वहीं, शाहाबाद के क्षेत्र में एनडीए को बहुत बड़ा झटका लगा था. यही वजह रही कि बहुमत के 122 के आंकड़े से महज 5 सीटें ही ज्यादा एनडीए गठबंधन जीत पाया था.
महागठबंधन का मजबूत गढ़ शाहाबाद
शाहाबाद क्यों महत्वपूर्ण है इसका समीकरण हमलोग जानते हैं, क्योंकि शाहाबाद क्षेत्र में मोटे तौर पर चार जिले आते हैं जिनमें- भोजपुर, रोहतास, कैमूर और बक्सर शामिल हैं. इन चारों जिलों में कुल मिलाकर 22 सीटें हैं. बीते विधानसभा में इन 22 सीटों में 20 सीटों पर महागठबंधन के उम्मीदवारों ने कब्जा जमाया था, जबकि एनडीए गठबंधन को मात्र दो सीटें ही मिल पाई थी. शाहाबाद महागठबंधन का कितना मजबूत गढ़ है यह आप इस बात से भी समझ सकते हैं कि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में शाहाबाद की चारों लोकसभा सीटें सासाराम, काराकाट, आरा और बक्सर से महागठबंधन के उम्मीदवारों ने जीत प्राप्त की थी. साफ है कि शाहाबाद महागठबंधन के लिए अब भी मजबूत गढ़ है. यही कारण है कि बीते 30 मई को जब पीएम मोदी बिहार दौरे पर आए थे तो सासाराम के विक्रमगंज में चुनावी सभा की थी.
एनडीए की शाहाबाद रणनीति का जवाब सीमांचल
जाहिर है इस बार एनडीए की नजर अपनी इस कमजोरी को दूर करने पर है. ऐसे में महागठबंधन ने असदुद्दीन औवैसी फैक्टर के कारण मुस्लिम मतों में बिखराव को देखते हुए एनडीए का मजबूत गढ़ बन चुके सीमांचल पर अपनी नजर डाल दी है और गलतियों को दुरुस्त करने में अभी से लग गई है. दरअसल बीते चुनाव में सीमांचल पर जिसमें असदुद्दीन ओवैसी के फैक्टर ने एनडीए गठबंधन को फायदा पहुंचाया था और सीमांचल के किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार जिले की 24 सीटों पर ओवैसी की पार्टी ने महागठबंधन को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया था. सीमांचल में एनडीए को 24 में 14 सीटों पर जीत प्राप्त हुई थी और महागठबंधन को बहुत बड़ा झटका लगा था.
एआईएमआईएम ने महागठबंधन को पहुंचाया नुकसान
बता दें कि एआईएमआईएम, बीएसपी और रालोसपा के साथ चुनाव लड़ा था और 20 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. इनमें से 5 सीटों पर ओवैसी की पार्टी की जीत हुई थी. पार्टी को करीब पूरे बिहार में सवा प्रतिशत वोट मिले थे. जिन पांच सीटों पर जीत मिली थी वह सीमांचल की मुस्लिम बहुल-अमौर, कोचाधामन, जोकीहाट, बायसी और बहादुरगंज की सीटें थीं. यहां एआईएमआईएम ने RJD के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाई थी. इस बार ओवैसी की पार्टी 50 से अधिक सीटों पर लड़ने की योजना बना रही थी, ऐसे में राजनीति के जानकार कह रहे हैं कि शायद महागठबंधन ने इस खतरे को भांप लिया है और अपना रुख लचीला कर लिया है.

