Arvind Kejriwal Politics: अरविंद केजरीवाल के वो पांच फैसले, जिसको बीजेपी आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा बना सकती है. क्या दिल्ली की मौजूदा सीएम आतिशी, केजरीवाल का ‘शीशमहल’, कैलाश गहलोत और राजकुमार आनंद का ‘आप’ से इस्तीफा या फिर कुछ और आप को नुकसान पहुंचा सकता है? पढ़ें यह रिपोर्ट…
दिल्ली के पूर्व सीएम और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल अब राजनीति के चतुर और चालाक खिलाड़ी बन गए हैं. केजरीवाल के पास बेशक राजनीति में 10-12 सालों का ही अनुभव है. लेकिन, उनके हाल में लिए कई फैसले बड़े-बड़े दिग्गजों को सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि अब ये क्या कर दिया?
केजरीवाल एक बार फिर से विपक्षी पार्टियों को दिल्ली के आगामी विधानसभा चुनाव में पानी पिलाने का प्लान तैयार कर रहे हैं. लेकिन, इस प्लान में उनके करीबी ही उनका खेल बिगाड़ते प्रतीत हो रहे हैं. एक के बाद एक करीबी केजरीवाल का साथ छोड़ रहे हैं.
केजरीवाल बेशक अपने फैसलों के जरिये राजनीति का चतुर-चालाक खिलाड़ी बनना चाह रहे हैं. लेकिन, शायद वह भूल जाते हैं कि दिल्ली के आगामी विधानसभा चुनाव में उनके सामने बीजेपी के रूप में एक ऐसा खिलाड़ी और टीम है, जिसके पास हर परिस्थिति के लिए अलग योजना और रणनीति पहले से ही तैयार हो जाती है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल अपने फैसले की वजह से चतुर और चालाक साबित होंगे या फिर बीजेपी के जाल में फंस जाएंगे?
हाल के दिनों में अरविंद केजरीवाल ने पांच ऐसे फैसले लिए हैं, जिसको बीजेपी आगामी विधानसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा बना सकती है. पहला, दिल्ली सरकार पुराने शराब कानून की जगह नई शराब नीति क्यों लेकर आई? अगर लाई तो फिर वापस क्यों ले लिया? दूसरा, जब केजरीवाल सीएम रहते जेल में छह महीने रह सकते हैं तो जेल से बाहर आने के बाद सीएम पद से इस्तीफा क्यों दिया? तीसरा, जब मंत्रिमंडल में कैलाश गहलोत नंबर-2 थे, तो फिर आतिशी को दिल्ली का सीएम क्यों बनाया? चौथा, बीते लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस के साथ गठबंधन था तो विधानसभा में गठबंधन के साथ लड़ने से परहेज क्यों? और आखिर में पांचवां, राजकुमार आनंद और कैलाश गहलोत ने ‘शीशमहल’ और भ्रष्टाचार का मुद्दा क्यों बनाया?
बीजेपी ने बना लिया है ‘आप’ को घेरने का ये प्लान
बीजेपी दिल्ली चुनाव में मुद्दा बनाएगी कि आखिर केजरीवाल के सहयोगी क्यों उनका साथ छोड़ रहे हैं? बीजेपी अरविंद केजरीवाल के हर चाल पर नजर रख रही है. मेयर चुनाव के बाद दिया उनका भाषण, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर बीजेपी जीतती तो सिविक सेंटर से बीजेपी मुख्यालय तक रोड-शो होता और पीएम मोदी पार्टी ऑफिस में आकर कार्यकर्ताओं को संबोधित करते. ये बात तर्कसंगत नहीं लग रही है, क्योंकि पीएम मोदी उस समय विदेश में थे तो फिर विदेश से बीजेपी ऑफिस कैसे आ जाते?
कैलाश गहलोत बनेंगे दिल्ली बीजेपी का बड़ा चेहरा?
आप से इस्तीफा देकर बीजेपी ज्वाइन करने वाले कैलाश गहलोत ने अरविंद केजीरीवाल पर कटाक्ष करते हुए कई आरोप लगाए हैं. उन्होंने सीएम आवास से जुड़े विवाद से लेकर भ्रष्टाचार तक कई मामलों को जिक्र किया है.
कैलाश गहलोत का दिल्ली देहात इलाके में अच्छी पकड़ है. शायद कैलाश गहलोत के जाने से हुए नुकसान की भरपाई करने के लिए ही अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली देहात के एक और विधायक रघुविंदर शौकीन को मंत्री बनाया. कांग्रेस के एक और पूर्व विधायक सुमेश शौकीन को भी पार्टी में शामिल कराया. इससे पहले बीजेपी के पूर्व विधायक अनिल झा भी आप में शामिल हो चुके हैं.
दिल्ली में जाट वर्सेज जाट और दलित वर्सेज दलित की लड़ाई? दिल्ली देहात के जाट नेता रघुविंदर शौकीन को कैलाश गहलोत की जगह आतिशी कैबिनेट में शामिल कराने का फैसला केजरीवाल की भविष्य की राजनीति का परिचायक है. केजरीवाल ने इस फैसले से बीजेपी पर दो निशाने साधे हैं. पहला, दिल्ली देहात के एक जाट नेता को कैबिनेट में जगह दी, जो गहलोत के जाने के बाद खाली हुई थी. दूसरा, उन्होंने बीजेपी और कैलाश गहलोत के संदेश दिया कि उनकी जगह लेने के लिए आम आदमी पार्टी में कई नेता मौजूद हैं और बाहर से भी लोग आ सकते हैं. रघुविंदर शौकीन दो बार नांगलोई जाट से विधायक रह चुके हैं. साथ में दो बार पार्षद भी रह चुके हैं. पेशे से वह सिविल इंजीनियर भी हैं.
कुल मिलाकर, अरविंद केजरीवाल जाट की जगह जाट और दलित की जगह दलित की पॉलिटिक्स कर बीजेपी को करारा जवाब दे रहे हैं. लेकिन बीजेपी के पास भी आने वाले दिनों में अरविंद केजरीवाल को घेरने के लिए कई प्लान बनकर तैयार हैं.

