अमेरिकी सेना द्वारा ईरान के जनरल कासिम सुलेमानी को मार गिराए जाने के बाद ईरान और अमेरिका के बीच तनाव काफी बढ़ गया है। ऐसे में इसका असर विश्व के बाकी देशों पर भी दिखाई दे रहा है। भारत मध्य पूर्वी एशिया पर बहुत हद तक निर्भर है। अब अगर इस क्षेत्र में तनाव बढ़ता है तो भारत के व्यापार के साथ तेल आयात भी प्रभावित होगा। जिसके चलते भारत की चिंता भी काफी हद तक बढ़ गई है।
अमेरिका और ईरान के बीच तनाव की वजह से कच्चे तेल के भाव में 4% की तेजी आ गई है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पिछले कुछ महीनों से कच्चे तेल के भाव में तेजी देखने को मिल रही है। अक्टूबर 2019 में कच्चे तेल का भाव 59.70 डॉलर प्रति बैरल पर चल रहा था। वहीं नवंबर में यह करीब 63 डॉलर हो गया। इसी तरह दिसंबर में कच्चे तेल का भाव 65 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गया है।
कच्चे तेल के भाव में तेजी की वजह से भारत में महंगाई बढ़ने की आशंका है। दरअसल, कच्चे तेल के भाव बढ़ने की वजह से हमें दूसरे देशों से इसे खरीदने पर खर्च अधिक करना पड़ता है और चालू खाता घाटा भी बढ़ जाता है। कच्चे तेल के भाव में उछाल की वजह से रुपये पर भी दबाव बढ़ जाता है। ऐसे में भारत को तेल खरीदने पर अधिक डॉलर खर्च करने पड़ते हैं।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत ने पिछले वित्त वर्ष में अपनी जरूरत के लिए 84% कच्चा तेल ईरान से आयात किया था। इस प्रकार कुल आयात तेल के हर 3 में से 2 बैरल तेल ईरान से आयात होता है। अगर अमेरिका और ईरान के बीच तनाव इसी तरह बरकरार रहता है तो इसका सीधा असर तेल के दामों पर पड़ेगा।
अमेरिका और ईरान का तनाव अगर युद्ध का रूप धारण कर लेता है तो तेल के दामों में अप्रत्याशित बढ़त होने की आशंका है, इससे उपभोक्ता वस्तुओं की कीमत बढ़ने और देश के बाहरी घाटे के बढ़ने की भी संभावना है। इसका परिणाम यह होगा कि देश की आर्थिक विकास की रफ्तार धीमी हो सकती है और अर्थव्यस्था पर इसका खासा असर देखने को मिल सकता है।