Uttarakhand UCC Tribal People Will Get Exemption: उत्तराखंड सरकार ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के मैनुअल को मंजूरी दी, जिससे विवाह, तलाक, उत्तराधिकार आदि पर सभी धार्मिक समुदायों के लिए समान कानून लागू होगा. लेकिन आदिवासी समुदाय इससे बाहर रहेंगे.
Uttarakhand UCC Tribal People Will Get Exemption: उत्तराखंड सरकार ने सोमवार को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के मैनुअल (नियमावली) को मंजूरी दे दी. इसके बाद उम्मीद की जा रही है कि यूसीसी का अंतिम नोटिफिकेशन इसी महीने जारी हो सकता है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी इस तरह का संकेत दिया है. मुख्यमंत्री धामी ने पहले कहा था कि मकर संक्रांति के शुभ अवसर से शुरू होने वाले समय में यूसीसी को लागू किया जाएगा. समान नागरिक संहिता उत्तराखंड में 2022 के विधानसभा चुनावों के दौरान भाजपा के प्रमुख चुनावी वादों में से एक थी.
समान नागरिक संहिता का मतलब है एक ऐसा कानून जो विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने और भरण-पोषण जैसे मुद्दों पर सभी धार्मिक समुदायों पर समान रूप से लागू होगा. भारत में अभी एक समान आपराधिक कानून है, लेकिन नागरिक कानून (Civil Law) अलग-अलग धार्मिक समुदायों के लिए अलग- अलग हैं. इसमें हलाला, इद्दत, और तलाक जैसी प्रथाओं पर पूरी तरह से प्रतिबंध है, जो मुस्लिम पर्सनल लॉ का हिस्सा हैं. हालांकि आदिवासी समुदायों को यूसीसी के दायरे से बाहर रखा गया है.
मुस्लिमों में नहीं होगी बहुविवाद की इजाजत
समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद हिंदू, मुसलमान, ईसाई समुदाय के लिए शादी, तलाक, संपत्ति बंटवारा समेत कई चीजों में बदलाव आ जाएगा. अब अलग-अलग धर्म के पर्सनल लॉ की जगह एक समान कानून लागू होगा. लिहाजा, अब मुस्लिम समुदाय में पुरुषों को एक से ज्यादा शादी की इजाजत नहीं होगी. वहीं, निकाह हलाला, इद्दत भी गैरकानूनी हो जाएगा. बता दें कि उत्तराखंड में मुस्लिम ही नहीं कई ऐसे हिंदू समुदाय भी हैं, जो एक से ज्यादा शादियां करते हैं. अब उन पर यूसीसी का क्या असर होगा?
क्या होगा जौनसारी और भोटिया जनजाति का ?
उत्तराखंड की जौनसारी जनजाति में महिलाओं के एक से ज्यादा पुरुषों के साथ शादी करने की परंपरा है. वहीं, भोटिया में पुरुषों के बहुविवाह की परंपरा है. सवाल उठता है कि यूसीसी लागू होने के बाद इन जनजातियों में शादी की परंपरागत व्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा? उत्तराखंड की जनजातियों में जौनसारी, थारू, राजी, बुक्सा और भोटिया जनजाति प्रमुख समूह हैं. उत्तराखंड के देहरादून जिले में लाखामंडल गांव की जौनसारी जनजाति के लोग आज भी अपनी धार्मिक परंपरा के चलते पॉलीऐन्ड्री विवाह करते हैं. आसान भाषा में समझें तो यहां महिलाओं के एक से ज्यादा पुरुषों के साथ शादी करने की परंपरा है.
जनजातियों को क्यों मिलेगी बहुविवाह की छूट?
भोटिया जनजाति में महिलाओं को तो बहुविवाह की छूट नहीं है, लेकिन पुरुषों को एक से ज्यादा शादियां करने की अनुमति है. चूंकि समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी के दायरे से उत्तराखंड की जौनसारी, थारू, राजी, बुक्सा और भोटिया जनजातियों को बाहर रखा गया है. साफ है कि वे अपनी बहुविवाह की परंपराओं को पहले की तरह जारी रख सकते हैं. इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में मुस्लिमों में सबसे ज्यादा बहुविवाह होता है. आईआईपीएस की स्टडी में बताया गया था कि भारत में होने वाले कुल बहुविवाह में मुसलमानों की संख्या 1.9 फीसदी है. इसके बाद अन्य धार्मिक समुदाय आते हैं, जिनकी संख्या 1.6 फीसदी है. वहीं, 1.3 फीसदी के साथ हिंदू तीसरे नंबर पर आते हैं.
किस जनजाति का कितना हिस्सा ?
जनसंख्या के नजरिये से थारू जनजाति उत्तराखंड का सबसे बड़ा जनजातीय समूह है. बुक्सा और राजी जनजाति आर्थिक, शैक्षिक व सामाजिक रूप से अन्य जनजातियों के मुकाबले काफी गरीब तथा पिछड़ी है.
लिहाजा, इन दोनों जनजातियों को आदिम जनजाति समूह की श्रेणी में रखा गया है. साल 1967 में उन्हें अनुसूचित जनजाति घोषित किया गया था. उत्तराखंड की कुल जनजातीय आबादी में थारू जनजाति की आबादी 33.4 फीसदी है. इसके बाद जौनसारी जनजाति 32.5 फीसदी आबादी के साथ दूसरा सबसे बड़ा जनजातीय समुदाय है. वहीं, बुक्सा जनजाति इसमें 18.3 फीसदी आबादी का योगदान करती है. उत्तराखंड के जनजातीय समुदाय में भोटिया 14.2 फीसदी आबादी के साथ सबसे छोटी जनजाति है.
इन सभी जनजातियों को भारत के संविधान में अनुसूचित किया गया है. उत्तराखंड की जनजातियों ने अपनी पारंपरिक जीवन शैली को बरकरार रखा है. इन जनजातियों में हस्त शिल्प का विकास हुआ है. इनका पारंपरिक कौशल पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होता रहा है.

